राघोगढ़ की कवयित्री रानी सुन्दर कुंवरी राठौड़

Gyan Darpan
2
यह किशनगढ़ के महाराजा राजसिंह की पुत्री थी| इनका जन्म महाराणी बांकावतजी की कुक्षि से वि.स.१७९१,कार्तिक सुदि ९ के दिन मथुरा में हुआ था|
सुन्दरकुंवरी का विवाह राघोगढ़(मालवा) के खींची नरेश महाराजा बलभद्र सिंह के राजकुमार बलवंत सिंह के साथ हुआ था| इस सम्बन्ध में इन्होंने अपने ग्रन्थ रस्पुंज में लिखा है कि-

यह ग्रन्थ की वारता, बिद गूढ़ मति गाय|
प्रगट भयो खींची धण, राघवगढ़ सुखदाय ||

महारानी सुन्दर कुंवरी का ससुराल जीवन सुखद नहीं रहा| पारिवारिक कलह से इनका मन गृहस्थ जीवन से विरक्त हो गया और यह दिनों दिन कृष्ण भक्ति की और बढती चली गई| इन्होंने छोटे बड़े ११ ग्रंथों का प्रणयन किया था, जिनकी रचना कालानुसार सूची इस प्रकार है-
नेहनिधि (1817) , वृन्दावन महात्म्य (1830), संकेत युगल (1830), रसपुंज (1834), प्रेम संपुट (1845), सार संग्रह (1845), रंगझर (1845), गोपी महात्म्य (1846), भावना प्रकाश (1849), राम रहस्य (1853), और पद तथा फुटकर कवितादि छंद|
कवयित्री का भाषा पर पूर्ण अधिकार है| भाव-सौंदर्य अनूठा है और शब्द-विन्यास में प्रत्येक पंक्ति में आंतरिक युगल-बंधों (श्रुत्यानुप्रास) की छटा मोहक है|

भगवान कृष्ण की नृत्य लीला का वर्णन में तो कवि हृदया लेखिका ने परतों में अपना हृदय ही उड़ेल दिया है| श्री कृष्ण की नृत्य-भाव मुद्राओं का सागर की स्रोत लहरों तथा क्रियाओं के साथ सुन्दर रूपक रचा है| समुद्र और कृष्ण की चेष्टाओं के साथ शब्दों की चेष्टाएं भी पाठक के समक्ष चित्र सा उपस्थित कर देती है- एक उदाहरण में देखिए-

श्याम रूप सागर में नैन्वार पारथ के,
नचत तरंग अंग अंग रंग मगी है|

गाजत गहर धुनि बाजत मधुर बैन,
नागिन अलक जुग सीधे रूगवगी है|

भंवर त्रिमंगताई पान पलुनाई तामें,
मोती मणि जालान की जोति जगमगी है|

काम-पौन प्रबल छुकावलोपी पाज तातें,
आज राधे लाज की जहाज डगमगी है|

राधिका की लज्जा रूपी नौका कृष्ण रूपी रूपी
काम-पवन झोकों से डगमगाने लगी है|

सुन्दर कुंवरी का वर्णन-कौशल शब्द-संयोजन और भाव एक से बढ़ चढ़कर है| ब्रज ही नहीं उनका फारसी भाषा का ज्ञान भी उत्तम जान पड़ता है| इनकी रचनाओं में राजसी- वैभव वर्णन के साथ उनके लौकिक का ज्ञान का भी परिचय मिलता है| भाषा में मुहावरों का प्रयोग नि:संदेह उनके अध्ययन तथा ज्ञान की सीमाओं का विस्तार करते प्रकट होता है|

महारानी सुन्दर कुंवरी ने कृष्ण भक्त होते हुए भी राम के प्रति भी उतनी ही भक्ति और प्रगाढ़ प्रेम प्रकट किया है| अबध के राव श्री रामचंद्र पर रचित एक सवैया देखिए जो राजसी सवारी के वर्णन का है—

चारुं चमुज अपार लखे गजराज की पीठ पे होत नागारो|
नीकी अनीकिनी पीत निशाँ यों सहत छवि नैननिहारो||

सांवरे रंग अनुपम अंग अनंग हू तौ समनाहि विचारो|
आयो यह सीख ओध के राव सु पाहन पाँव उडावनहारो||

इस प्रकार स्त्री कवयित्रियों सरस साहित्य-सरोवर में सुन्दरकुंवरी के सम्मोहक भक्ति काव्य-स्वर का सुमन अपनी सौरभ से साधु मना सहृदयों को आप्लावित करने में सबल है|

लेखक : श्री सौभाग्यसिंह शेखावत,भगतपुरा


राजपूत नारियों की साहित्य साधना श्रंखला की अगली कड़ी में राघोगढ़ की ही एक साहित्य साधक कवयित्री रानी छत्र कुंवरि राठौड़ का परिचय दिया जायेगा|


sundar kunwari rathore,rani sunder kanwari, queen of raghogarh malva,raghogarh ki rani sundar kunwari,rajput mahila,rajput nari,sahitykar, krishn bhakt rani

एक टिप्पणी भेजें

2टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें