हाथ लुळीयौ जकौ ई आछौ = हाथ झुका वही बहुत

Gyan Darpan
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हाथ लुळीयौ जकौ ई आछौ = हाथ झुका वही बहुत

सन्दर्भ कथा - एक मुस्टंड साधू सवेरे सवेरे कंधे पर झोली टांग कर बस्ती में घर घर आटे के लिए घूमता | एक घर में एक ताई के अलावा उसे कोई भी मना नहीं करता था | फिर भी वह बिना नागा किये ताई के घर भी फेरी लगता | ताई उसे बहुत बुरा भला कहती - पांच आदमियों जितना काम करे ऐसा मुस्टंडा है , भीख मांगते लाज शर्म नहीं आती ? तेरी खातिर खेतों में पसीना नहीं बहाते ! अनाज का एक एक दाना हमारे खून से पैदा हुआ है | सो तुझे पिसा -पिसाया आता डाल दे ! खबरदार जो मेरे घर की और मुंह किया तो दांत तोड़ दूंगी ! मुझे निट्ठले आदमी से कुत्ते जैसी घिन्न है |... पर ठंडे दिमाग वाले साधू ने उसके कहने का कुछ भी बुरा नहीं माना | दुसरे दिन भी सबसे पहले वह उसी ताई के घर गया | ताई बाहर के आँगन में फूस निकाल रही थी | गुस्से में झाडू फेंका तो साधू की पीठ पर थोडा लगा | साधू झाडू हाथ में लेकर उसे देने की खातिर आगे बढा | ताई ने मुंह मस्कोर कर झाडू वापस तो ले लिया पर कहा कुछ भी नहीं | साधू चुपचाप लौट गया | लेकिन साधू भी कम जिद्दी नहीं था | भीख मांगना उसका धर्म था ! धर्म के मार्ग में कठिनाइयाँ तो आती ही है | इतनी जल्दी वह हार कैसे मान लेता ? अगले दिन तीन घडी दिन चढ़े ,उसने ताई के खुले दरवाजे पर खड़े होकर आवाज दी - ताई , आटा डालना तो ...|
आवाज की भनक कानो में पड़ते ही ताई समझ गई कि वही निर्लज्ज साधू है और इस बार उसे सबक सिखाना ही होगा कि आइन्दा इस रास्ते पर ही नहीं आये | ताई चूल्हे के पास बैठी सोगरे (बाजरे की रोटियां ) बना रही थी | आग बबूला होकर बाहर आई सामने ही एक गोल पत्थर पड़ा था | उसे उठाने के लिए झुकी तो साधू ठट्ठा मारकर हंसा | ताई ने पत्थर तो उतावली में उठा लिया ,पर फेंका नहीं | वह हतप्रद सी वहीँ खड़ी रही | साधू उसी तरह हंस रहा था | ताई ने पत्थर को कसकर मुट्ठी में पकडा | और पूछा - मैंने तो तुझे मारने के लिए पत्थर उठाया था और तू निर्लज्ज की तरह दांत निकाल रहा है ? साधू ने उसी तरह मुस्कराते हुए कहा - जब मन में ख़ुशी होती है तो होंटो पर हंसी आ ही जाती है |
ख़ुशी ? ख़ुशी किस बात की ? सिर फूटने की ?
नहीं सिर तो अभी सलामत है | मुझे तो तुम्हारा हाथ झुकने की ख़ुशी हुई है | आज पत्थर के लिए हाथ झुका तो कल आटे के लिए भी झुकेगा | बस, आदत पड़नी चाहिए | मनुष्य के जीवन में आदत ही तो सब कुछ है | इतना कह कर मुस्कराते हुए वह साधू रवाना हो गया | वह कोई पांच सात कदम ही आगे बढा होगा कि पीछे से ताई की आवाज सुनाई पड़ी - थोडा रुकिए ! मेरी आदत तो एक ही बार में बदल गयी | वह जल्दी से रसोई घर में गई और और एक बड़ा सा बर्तन आटे का भर लाइ और सारा आटा साधू की झोली में खाली कर दिया |
अपार धैर्य हो तभी भिक्षा जैसे धर्म का निबाह होता है | आदत तो जैसी पटको ,वैसी ही पड़ जाती है | आकस्मिक हृदय परिवर्तन के लिए वैसा ही सशक्त आधार अपेक्षित है |

विजयदान द्वारा लिखित ;;

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8टिप्पणियाँ

  1. अपार धैर्य हो तभी भिक्षा जैसे धर्म का निबाह होता है | -सत्य कहा!! अच्छी लगा पढ़कर!!

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  2. बहुत बढि्या ज्ञान वर्धक कथा-आभार

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  3. शिक्षाप्रद।

    पर ताई को ताऊ संभालते पसीना आ जाता था, ये साधू और आ जुटा (-:

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  4. Bahut Badhya Baat hein ki Sixaprad kahaniya likhna koi Choti Baat nahi hein Sadhu Vastav Mein Dhanya hein yadi atal viswas ho to savbhav palta ja sakta

    Dhanyavad Thanks

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