Durgadas Rathore वीर शिरोमणि दुर्गादास राठौड़

Gyan Darpan
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मेवाड़ के इतिहास में स्वामिभक्ति के लिए जहाँ पन्ना धाय का नाम आदर के साथ लिया जाता है वहीं मारवाड़ के इतिहास में त्याग,बलिदान,स्वामिभक्ति व देशभक्ति के लिए वीर दुर्गादास का नाम स्वर्ण अक्षरों में अमर है वीर दुर्गादास Durgadas Rathoreने वर्षों मारवाड़ की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया,ऐसे वीर पुरुष का जनम मारवाड़ में करनोत ठाकुर आसकरण जी के घर सं. 1695 श्रावन शुक्ला चतुर्दसी को हुवा था आसकरण जी मारवाड़ राज्य की सेना में जोधपुर नरेश महाराजा जसवंत सिंह जी की सेवा में थे अपने पिता की भांति बालक दुर्गादास में भी वीरता कूट कूट कर भरी थी,एक बार जोधपुर राज्य की सेना के ऊंटों को चराते हुए राईके (ऊंटों के चरवाहे) आसकरण जी के खेतों में घुस गए, बालक दुर्गादास के विरोध करने पर भी चरवाहों ने कोई ध्यान नहीं दिया तो वीर युवा दुर्गादास का खून खोल उठा और तलवार निकाल कर झट से ऊंट की गर्दन उड़ा दी,इसकी खबर जब महाराज जसवंत सिंह जी के पास पहुंची तो वे उस वीर बालक को देखने के लिए उतावले हो उठे व अपने सेनिकों को दुर्गादास को लेन का हुक्म दिया अपने दरबार में महाराज उस वीर बालक की निडरता व निर्भीकता देख अचंभित रह गए,आस्करण जी ने अपने पुत्र को इतना बड़ा अपराध निर्भीकता से स्वीकारते देखा तो वे सकपका गए परिचय पूछने पर महाराज को मालूम हुवा की यह आस्करण जी का पुत्र है,तो महाराज ने दुर्गादास को अपने पास बुला कर पीठ थपथपाई और इनाम तलवार भेंट कर अपनी सेना में भर्ती कर लिया


उस समय महाराजा जसवंत सिंह जी दिल्ली के मुग़ल बादशाह औरंगजेब की सेना में प्रधान सेनापति थे,फिर भी औरंगजेब की नियत जोधपुर राज्य के लिए अच्छी नहीं थी और वह हमेशा जोधपुर हड़पने के लिए मौके की तलाश में रहता था सं. 1731 में गुजरात में मुग़ल सल्तनत के खिलाफ विद्रोह को दबाने हेतु जसवंत सिंह जी को भेजा गया,इस विद्रोह को दबाने के बाद महाराजा जसवंत सिंह जी काबुल में पठानों के विद्रोह को दबाने हेतु चल दिए और दुर्गादास Durgadas rathore की सहायता से पठानों का विद्रोह शांत करने के साथ ही वीर गति को प्राप्त हो गए

उस समय उनके कोई पुत्र नहीं था और उनकी दोनों रानियाँ गर्भवती थी,दोनों ने एक एक पुत्र को जनम दिया,एक पुत्र की रास्ते में ही मौत हो गयी और दुसरे पुत्र अजित सिंह को रास्ते का कांटा समझ कर ओरंग्जेब ने अजित सिंह की हत्या की ठान ली,ओरंग्जेब की इस कुनियत को स्वामी भक्त दुर्गादास ने भांप लिया और मुकंदास की सहायता से स्वांग रचाकर अजित सिंह को दिल्ली से निकाल लाये व अजित सिंह की लालन पालन की समुचित व्यवस्था करने के साथ जोधपुर में गदी के लिए होने वाले ओरंग्जेब संचालित षड्यंत्रों के खिलाफ लोहा लेते अपने कर्तव्य पथ पर बदते रहे अजित सिंह के बड़े होने के बाद गद्दी पर बैठाने तक वीर दुर्गादास को जोधपुर राज्य की एकता व स्वतंत्रता के लिए दर दर की ठोकरें खानी पड़ी,ओरंग्जेब का बल व लालच दुर्गादास को नहीं डिगा सका जोधपुर की आजादी के लिए दुर्गादास ने कोई पच्चीस सालों तक सघर्ष किया,लेकिन जीवन के अन्तिम दिनों में दुर्गादास को मारवाड़ छोड़ना पड़ा महाराज अजित सिंह के कुछ लोगों ने दुर्गादास के खिलाफ कान भर दिए थे जिससे महाराज दुर्गादास से अनमने रहने लगे वस्तु स्तिथि को भांप कर दुर्गादास ने मारवाड़ राज्य छोड़ना ही उचित समझा और वे मारवाड़ छोड़ कर उज्जेन चले गए वही शिप्रा नदी के किनारे उन्होने अपने जीवन के अन्तिम दिन गुजारे व वहीं उनका स्वर्गवास हुवा दुर्गादास हमारी आने वाली पिडियों के लिए वीरता,देशप्रेम,बलिदान व स्वामिभक्ति के प्रेरणा व आदर्श बने रहेंगे |


१-मायाड ऐडा पुत जाण,जेड़ा दुर्गादास भार
मुंडासा धामियो, बिन थम्ब आकाश
२-घर घोड़ों,खग कामनी,हियो हाथ निज मीत
सेलां बाटी सेकणी, श्याम धरम रण नीत


वीर दुर्गादास का निधन 22 nov. 1718 में हुवा था इनका अन्तिम संस्कार शिप्रा नदी के तट पर किया गया था "उनको न मुगलों का धन विचलित कर सका और न ही मुग़ल शक्ति उनके दृढ हृदये को पीछे हटा सकी वह एक वीर था जिसमे राजपूती साहस व मुग़ल मंत्री सी कूटनीति थी "(सर जदुनाथ सरकार )


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21टिप्पणियाँ

  1. सचमुच जबर्जस्त..........बहुत बढिया.....

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  2. वीर दुर्गादास जी को शत शत नमन

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    1. Rastra Param Veer Shri Veer DurgaDas Ji Ko sat sat naman avm Pranam

      Samunder Singh Jalra
      Abhishek Singh
      Abhiman Singh

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    2. Rastra Param Veer Ver Shromani Shri Durga Das Ji ko sat sat naman Avm Ajit Singh ko dhikar hein jisne auise veer ko samn nahi diya

      Samunder Singh
      Abhishek Singh
      Abhiman Singh
      Jalra VPO Bhesana Pali

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  3. Your all article is very useful for us please keep share with great Rajasthan History with us. Nice work Thanks Admire RegardingRajasthan Tourism India

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  4. Askarn rathore to grbhvati ptni Ko Chodkr chla Gya or bad m usi ptni se veer durgadas ka janm hua.....

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  5. सं. 1731 में गुजरात में मुग़ल सल्तनत के खिलाफ विद्रोह को दबाने हेतु जसवंत सिंह जी को भेजा गया,इस विद्रोह को दबाने के बाद महाराजा जसवंत सिंह जी काबुल में पठानों के विद्रोह को दबाने हेतु चल दिए और दुर्गादास की सहायता से पठानों का विद्रोह शांत करने के साथ ही वीर गति को प्राप्त हो गए
    वीर दुर्गादास का निधन 22 nov. 1718 में हुवा था

    1731 me yudh me sath the to 1718 me Nidhan kese ho gaya HUKAM

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    1. (सं.)संवत और अंग्रेजी सन में फर्क कर लीजिये !!

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  6. Rashtveer Durgadas ji Rathore ki 376 Jyanti ki Rathore Patrika Pariwar ki aur se Hardik Shubhkamanaye,

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  7. Rastarveer durgadas Rathore ko koti koti naman

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  8. Shri Shiromani veer Durgadas ji Rsthore ko mera sat sat naman karta hu..

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  9. हमारे समाज के लिये महान वीर दुरगादास राठोर जी एक मिसाल है हमे इन वीरो पर नाज है की ऐसी महान वीर ने हमारे समाज मे जनम लिया राठौर जी को शत शत नमन

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  10. Rastra Param Veer Shri Veer DurgaDas Ji Ko sat sat naman avm Pranam

    YASHWANT PRATAP SINGH RATHOD
    MAHARANA PRATAP COLLEGE, VIDISHA
    9425463073, 9827069710

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  11. इक दिन औरॅग यु कहे
    काई- काई वालो थने दुर्गेश।
    निज मुखङे सू माॅगे देव ओ नरेश।।

    अर्थात : हे दुर्गादास,तुम यह विद्रोह छोड़ और तुम्हे मारवाड के बदले क्या क्या वाला(प्यारा) है जो भी प्यारा है वो मुंह से माॅग ले मैं तुम्हे अभी दे देता हुॅ।

    तब प्रतित्तर मे दुर्गादासजी कहते है कि...
    खग वालो जग वालो, वालो मरूधर देश।
    श्याम धर्म तो सदा ही वालो, नित वालो नरेश।।

    अर्थात : मुझे पशु पक्षियो के साथ सम्पुर्ण मारवाड़ प्यारी है, साथ ही साथ मुझे मेरा श्याम और क्षत्रिय धर्म हमेशा ही प्यारा है, सबसे बढ कर मारवाड़ नरेश (अजीतसिंहजी) मुझे हर रोज प्यारे है।

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