ठिकाना दांता के कुछ ऐतिहासिक पत्र
इतिहास, भाषा
शास्त्रीय अध्ययन अेवं रीति-रिवाज और लेखन प्रणाली आदि की परिचिति के लिए प्राचीन
ताम्र पत्र, शिला लेख
और शासन पत्र बड़े उपयोगी माने गये हैं। शासन पत्रों में पट्ट, परवाने, खासा रुक्के, फरमान, सनद, कुकुमपत्रियां, टीप, खातरी, उठन्तरी तहरीर लिखावट और उरकी आदि
नाम से कागज प्राप्त होते हैं। इन कागजों में तत्कालीन इतिहास की कतिपय महत्वपूर्ण
घटनाओं और व्यक्तियों के जीवन सम्बन्धी ज्ञातव्य उपलब्ध होते हैं। राजस्थान में
छोटे-बड़े हजारों ठिकाने थे, और उनके स्वामियों में किसी न किसी का राजस्थान के निर्माण
एव युद्ध, रक्षा के
लिये दान, साहित्य
और बलिदान आदि के द्वारा योगदान रहा ही था। इस दृष्टि से इन दस्तावेजों का बड़ा
महत्त्व है। श्राज तक ये कागजात सावधानी और सुरक्षा- पूर्वक सम्हाल कर रखे जाते थे, पर अब इनकी ओर उपेक्षा बरती जा
रही है। अतः यह महत्त्वपूर्ण सामग्री निकट भविष्य में ही लुप्त हो जायेगी ।
जयपुर महाराजा सवाई जयसिंहजी ने मथुरा से ठाकुर गुमानसिंहजी दांता को विक्रमाब्द १७७९ मार्गशीर्ष शुक्ला एकादसी को लिखा था। इसमें तुर्कों की फौज के मुकाबले के लिये उन्हें बुलाया है। मूल पत्र इस प्रकार है-
॥ १ श्री रामजी
मोहर
महाराजा जी श्री अधराजजी जैसींधजी
सिरेनामा की लिखावट
ठा. राज श्री गुमानी सीघजी
२
॥ श्रीरामजी ।।
चिह्न भाला
सिधि श्री महाराजाधिराज श्री सवाई माधवसिंघजी देव वचनातू भवानी- स्यंध सेषावत दसे सुप्रसाद वंच्या अपरंच अरज पहौंची जो दिषण्या की फोज दांत आई सो फुरमांवां छां षातरि जमा राषिया नै दस पदरा दिन अटकाये ओझापाड़िज्यो इमै थांको मुजरो छै दोय च्यारि हजार रुपिया षेड़ि षरच का लागेला तो थांनै मुजरा दीज्येला थे गढ़ में बहोत मजबूती स्यौं र हैज्यो मिती मागश्र बदी क सवत १८१५ ।
तीसरा पत्र संवत् १८२५ पौष कृष्णा १२ का लिखा हुआ है। यह पत्र करौली महाराजकुमार निहालपालजी ने ठाकुर भवानीसिंहजी दांता को लिखा था। पत्र की भाषा निम्न प्रकार है-
१ श्री गोपालजी
मोहर
सीधी श्री सरब उपमां लाइक राजश्री ठाकुर भवानीसिंघजी जोग्य लिषा-इतं श्री महाराज कुंवार श्री कूंवर हालपालजी केन्य जुहार वंच्या ह्यां के स्मांचार श्री जी के प्रताप सौं भले हैं आपके स्मांचार सदा भले चाहिजे तो आनन्द होई अप्रंचि काग स्मांचार आयै घर्ने दिन भए सु व्यौरे सहित लिषा-वत रहोगे ह्मां ब्यौहार अप जानौंगे कोई वात की जुदाइगी न जानगे ह्यां लाइक कांम काज लि होगे मिती पोष वदि १२ संवत् १८२५ ।
भै०किसोरदास को मुजरा वंच्या
सिरे नामा
।। ७४ ।। राजश्री ठाकर भवांनीसिंघजी
चौथा पत्र महाराजा पृथ्वीसिंह जयपुर लिखित है। यह मोहरी खासा रूक्का है। ऊपर भाला का चिह्न है। इसमें जाटों के युद्ध का संकेत है। संभव है यह भरतपुर के राजाओं के युद्ध सम्बन्धी हो ? पत्र पढिये-
४
श्रीरामजी
सिधि श्री महाराजाधिराज महाराजा श्री सवाई पृथ्वीसिंघजी देव वचनात भवांनीस्यघ सेषावत दसे सुप्रसाद वंच्या अपरंच श्री वडा महाराज छता भी जाटसु राड़ि थे ही करी छी अव थे ही करवा वाला छो जीमैं ई राज्य की माछी दीर्ष सो करोला मीती चैत बदी ६ सवत् १८२४ ।
५
स्विस्यि श्री राज राजेश्वर महाराजाधिराज महाराजा श्री रामसिंघजी देव बचनात सेषावत भवानीसिंघ सवाईसीधोत दास सुप्रसाद बाच जो तथा दीली रौ मुकदमो फैसल हूवा ने आपाजी रो कुच मारवाड़ नै हूवौ छँ ने रघुजी फोज साथै छे सो कुच जोधपुर ने हूवौ छँ सो थांरा भाई बैटां ने जमीयत देने सीताब हजुर मैल जो हुकम छै सरा १८१० रा असाढ सुदी ४ मु० ॥ झील उपर गांव हसतताल
सिरेनामा -- ॥ सेषावत भवांनीसिघ सवाईसीघौत दासे
छठा रुक्का महाराजा मानसिंहजी जोधपुर का ठा० नवलसिंहजी के नाम का है । यह मुद्रांकित पत्र है
। इसमें संवत् नहीं है, केवल
तिथि माघ वदि ७ अंकित है । रुक्का पठनीय है -
६
॥ श्री नाथजी सत छँ
सेषावत नवलसिंघजी दिसे सुप्रसाद वंचज्यो तथा वारोठीयु सु धीरसीघ कजीयो कीयो सु वंदगी मालम हुई षातर षुसी राषजो महावद ७
लिफाफा की इबारत -- ॥ सेषावत नवलसिंघजी दिसे
सातवां पत्र भी ठाकुर नवलसिंहजी के नाम पर जयपुर नरेश महाराजा जयसिंह तृतीय का है । यह किसी युद्ध में सम्मिलित होने का जातीय निमन्त्रण है। पत्र प्रस्तुत है--
७
॥ श्री रामजी
नवलस्यंघजी दिसे अपरंच वांचतां रुका के आछी जमीयत साथि ले सिताव हजूरि आज्यो आजि दिन वंदगी को बषत छँ जाति कछवाहो होसी तो ढील न करसी मीती काती बुदी ४ संवत् १८८१
लिफाफे की लिपि —रुको पास नवलसिंघजी नें से० दांता का
आठवां पत्र महाराजा जगतसिंहजी के टीके के निमन्त्रण का सूचक है।
पत्र पर भाले का चिह्न है। मूल इस प्रकार है-
८
सिधि श्री महाराजाधिराज महाराजा श्री सवाई जगतसिंघजी देव वच- नात नवलस्यंध सेषावत दिसे सुप्रसाद वंच्या अपरंच मिती महा सुदि ७ सुक्र- वार नें टीको ठाहरह्यो छँ सो टीका परि सिताव आज्यो मीती पोस वुदी १० स १८७३
ठिकाना दांता के सरदारों के अतिरिक्त अच्छी सैनिक सेवाओं के उपलक्ष में जयपुर और जोधपुर से नई जागीरें भी प्राप्त करने के पट्टे प्राप्त हुए हैं। उदाहरण के लिए नागौर परगने का भदाणा ग्राम शार्दूलसिंहजी को जोधपुर महाराजा मानसिंहजी ने जागीर में प्रदान किया था। प्रमाण स्वरूप सिंघवी इन्द्रमल दिवान जोधपुर लिखित पट्टे की प्रतिलिपि प्रस्तुत है -
९
|| श्री जलंधरनाथजी सती छ
स्विस्त श्री राजराजेश्वर महाराजाधिराजा महाराजा श्री मानसिंहजी बचनात सिघवी इंदरमल दिसे सुप्रसाद वाचज्ये तथा सेषावत सादुलसिंघ नवल-सिंह अमानीसिघोत सु मैहरवान होय नै पटो इनायत कीयौ है सो सबत १८८४ री साष सांवणु था अमल दे जो गांव में बिना हुकंम सासण डोली देण न पाव दांण जमै बंधी वगेरे बाब दरबार री है
४०००) १ नागोर रो गांव भदांणो षादा ईनायत षालसा रो रेष च्यार हजार री गाव लकै संवत १८८४ रा प्रथम असाढ वद ६ दुवो श्रीमुष मुकांम पायत षत गढ जोधपूर
आगे का पत्र वर्त्तमान दांता रामगढ़ तहसील के केन्द्र स्थान परगना रामगढ़ के अभिलान के नाम जयपुर के दीवान श्री खुशहालीरामजी बोहरा है । पत्र इस प्रकार है-
१०
श्रीरामजी
राजस्थान की रियासतों से अंग्रेजों की सैनिक संधियां हुई, उसके पश्चात् शेखावाटी को भी संधि के लिए विवश करने के लिए अंग्रेजों ने एक सैनिक संगठन तैयार किया और शेखावाटी के विद्रोही ठिकानों के किलों को तोपों से तोड़ा गया। उस समय ठिकाना दांता के इलाके का डांसरोली का प्रसिद्ध सुदृढ़ ९ बुर्जा पहाड़ी दुर्ग भी तोड़ा गया। तदनंतर शेखावाटी के अन्य ठिकानों की भाँति दांता ने भी अंग्रेजों से मेलजोल स्थापित कर 'शेखावाटी ब्रिगेड' में शामिल हुए। शेखावाटी ब्रिगेड का कमांडिंग अफसर मेजर फास्टर था। ठाकुर नवलसिंहजी को लिखे गये फास्टर के कई पत्र हैं। नमूने के लिए एक पत्र २ जौलाई सन् १८३६ का उद्धृत किया जा रहा है-
११
श्रीरामजी
सीध श्री सरबोपमा राजा श्री ठाकरां नोलसींघजी जोग लीषायतू मेजर फास्तर साहेब कैन मूजरा बाचजो अठा का समाचार भला छे राज का सदा भला चाहेजे प्रप्रच कागद राज का वासते सीष कराबा लाखणसीघ के आया समाचार मालूम हुवा सो लाषरणसीघ कू हीसाब तंषा वा दीन दीन का मय के घोड़ों समळायैर सीष दीनी छँ सो राज कनैं पोहचसी अरे लाषरणसीघजी जब तांई हमारे कने रहा हम यासू बोहत षूसी रहा ओर जो काम काज हमारे लायक हो सो हमेसा लीबाबा करते रहोला मती साढ़ बुदी ३ स० १८९३ का
Camp Shekhawati 2 July 1836
इस प्रकार कुल ग्यारह पत्र प्रस्तुत किये गये हैं। शेखावाटी के ठिकानों में दांता का अपना प्रमुख स्थान रहा है। यह कछवाहा राज्य वंश की शेखावात शाखा के रायसलोत शेखावतों के प्रमुख संस्थान खण्डेला के गिरधरदासोत राज वरसिंहदेव के पुत्र ठाकुर अमरसिंहजी की संतति का ठिकाना था और रिया- सतों के विलीनीकरण के पूर्व तक यह जयपुर राज्य की दांता रामगढ़ तहसील का प्रमुख तथा बड़ा ठिकाना था।
लेखक : सौभाग्य सिंह शेखावत (पुस्तक : "राजस्थानी निबंध संग्रह" - हिंदी साहित्य मंदिर, गणेश चौक, रातानाडा जोधपुर द्वारा 1974 में प्रकाशित)
