ये
रामगढ सेठान का गंगा मैया मंदिर है | इस मंदिर बनने के पीछे एक नेत्रहीन सेठानी की
रोचक कहानी जुड़ी है | रामगढ क़स्बा राजस्थान
के शेखावाटी आंचल में बसा है | इसे रामगढ शेखावाटी के नाम से भी जाना जाता है | इस
कस्बे को सेठों ने बसाया था और यहाँ रियासती काल में एक से बढ़कर एक धनी सेठ निवास
करते थे | दूर दूर तक इन सेठों का व्यापार फैला था | यहाँ के सेठों की दरियादिली व
धर्मपरायणता के अनेक किस्से आज भी क्षेत्र के लोगों की जुबान परहै | स्थानीय
साहित्यकारों ने इन सेठों के किस्सों पर खूब कलम चलाई है तो कवियों ने इन सेठों के
किस्सों पर दोहे घड़े हैं | आज हम इस वीडियो में एक यहाँ की नेत्रहीन सेठानी से जुड़ा एक किस्सा
सुनायेंगे और किस्से की बदौलत बना एक खुबसूरत मंदिर दिखायेंगे |
कस्बे
में एक सेठानी नेत्रहीन थी | एक दिन उसने अपने पुत्रों को बुलाकर कहा कि – मैं देख
तो नहीं सकती पर यह जानना चाहती हूँ कि एक लाख रूपये कितने होते हैं ? पुत्रों ने कहा
यह तो बहुत छोटी सी बात है और सेठ पुत्रों
ने तिजोरी से एक लाख रूपये निकालकर माँ के सामने ढेर लगा दिया | उस काल चांदी के
रूपये चलते थे अत: सेठ पुत्रों ने माँ के सामने एक लाख चांदी के सिक्कों का ढेर
लगा दिया और माँ से कहा कि ये देखलो एक लाख रूपये |
नेत्रहीन
सेठानी रुपयों को देख तो नहीं सकती थी पर उसने चांदी के सिक्कों के ढेर पर हाथ फेर
कर अंदाजा लगा लिया कि आखिर एक लाख रूपये इतनी मात्रा में होते हैं | माँ के देखने
के बाद पुत्रों ने रुपयों को तिजोरी में रखना शुरू किया तब सेठानी बोली – मैंने इन
रुपयों पर हाथ फैरा है सो अब ये तिजोरी में नहीं रखें जा सकते | पुत्रों को बात
समझ नहीं आई कि माँ के हाथ लगाने से रुपयों को तिजोरी में क्यों नहीं रखा जा सकता ?
पूछने पर सेठानी ने बताया कि – ये रूपये मुझे दान करने है सो जोशी को बुलाओ और दान
कर दो |
सेठानी
के पुत्रों ने अपने कुल के जोशी के बुलाया और माँ की एक लाख रूपये दान करने की
इच्छा बताते हुए जोशी को दान में एक लाख रूपये के चांदी के सिक्के पकड़ा दिए | दान
देते वक्त सेठानी के बड़े लड़के ने जोशी को बड़े गर्व से कहा कि – जोशी जी ! हम जैसे सेठ
देखें है जो इतना बड़ा दान दे रहे हैं |
जोशी
भी बड़ा स्वाभिमानी व्यक्ति था, उसने तुरंत अपनी जेब से चांदी का एक रुपया निकाला
और एक लाख में मिलाकर एक लाख एक रूपये सेठ पुत्र को देते हुए कहा कि – मेरा जैसा
जोशी देखा है कहीं जो जिनसे लेना चाहिए उन जजमानों को एक लाख एक रुपया दान कर रहा
है |
अब
सेठ जोशी से दान कैसे ले ? क्योंकि आजतक तो सेठ जोशी को दान करते आये थे आज स्थिति
विपरीत हो गई | एक लाख एक रुपया ना सेठ ले, ना जोशी वापस ले | समस्या यह हो गई कि
आखिर अब इन रुपयों का किया क्या जाये ?
अंत
में सेठानी ने तय कि यदि जोशी जी रूपये नहीं ले रहे तो इन रुपयों से गंगा माता का एक
भव्य मंदिर बनाया जाये और ओरण में एक पक्का तालाब जहाँ पशुधन के पीने हेतु वर्षा
जल संग्रहित किया जा सके | आखिर उन एक लाख एक हजार रुपयों से गंगा माई का मंदिर व
एक पक्का जोहड़ बनाया गया |
इस
कहानी में कई बातें व भाव छिपें हैं, पहला सेठानी के मन में एक लाख रूपये दान कर पूण्य
कमाने का भाव | दूसरा सेठानी के पुत्र द्वारा इतना बड़ा दान देने का अहंकार और दान
लेने वाले जोशी के मन में स्वाभिमान का भाव | जोशी ने सेठ पुत्र के बड़े बोल के आगे
अपने स्वाभिमान को बनाये रखने लिए एक लाख रूपये का त्याग कर दिया | और सबसे बड़ी
बात कि इन तीनों पक्षों के मन में जनहित का भाव | मंदिर के साथ साथ पक्का जोहड़
जनहित बेहतरीन उदाहरण है | क्योंकि उस ज़माने में राजस्थान में पानी की कमी रहती थी
और बीड़ यानी ओरण में पक्का तालाब बनवाना सबसे बड़ा जनहित समझा जाता था | ये तालाब
स्थानीय जनता ही नहीं उनके पशुधन के लिए भी प्रमुख पेयजल के स्त्रोत हुआ करते थे |
तो
ये थी रामगढ सेठान स्थित गंगा माई के मंदिर निर्माण के पीछे की कहानी | इसी कस्बे
के एक सेठ में जंगल में गीदड़ों के लिए पक्का तालाब बनवा दिया था, जिसकी जानकारी हम
अगले वीडियो में देंगे और साथ ही दिखायेंगे वह तालाब जो एक सेठ ने गीदड़ों के पेयजल
के लिए बनवा दिया था |
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