दुश्मनी मिटाने के बदले मिला था सीकर और बना रियासत की राजधानी

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खंडेला के राजा के राजा रायसल दरबारी के पुत्र तिरमलजी को सम्राट अकबर ने उनकी वीरता से प्रभावित होकर राव की पदवी और कासली व नागौर का पट्टा दिया था| पर शहजादा सलीम व अमीर खुसरो के मध्य दिल्ली की गद्दी को लेकर हुए विवाद में नागौर तिरमलजी के हाथ से निकल गई| कुछ समय बाद कासली भी उनके पुत्र राव गंगाराम के हाथ से निकल गई, ऐसे में राव गंगारामजी के पोत्र व राव श्यामरामजी के पुत्र कुंवर जसवंतसिंह ने अपने बाहुबल से खड़ेला ठिकाने का दुजोद गांव गांव दबा लिया और वहां गढ़ी बनाकर रहने लगे| खंडेला के राजा बहादुरसिंहजी ने दुजोद गांव वापस पाने के लिए जसवंतसिंह पर हमला भी किया पर जसवंतसिंह ने दुजोद गांव पर अपना कब्ज़ा बरक़रार रखा|

इसी झगड़े को निपटाने के लिए खंडेला के राजा बहादुरसिंहजी ने जसवंतसिंहजी को खंडेला अपने किले में बुलाया | जसवंतसिंह के किले खंडेला किले में प्रविष्ट होते ही किले के दरवाजे बंद कर दिए, जिससे जसवंतसिंह के अपने खिलाफधोखा समझा और अपनी तलवार निकालकर गद्दी पर बैठे राजा बहादुरसिंहजी पर वार किया| राजाजी तो हट गए पर जसवंतसिंह के वार से उन्हें बुलाकर ले जाने वाले प्रेमसिंह टकनेत के दोनों हाथ कट गए| उधर दुसरे लोगों ने जसवंतसिंह का काम तमाम कर दिया| यह घटना बेशक गफलत में हुए हो पर इसे षड्यंत्र समझा गया|

राव जसवंतसिंहजी के बाद उनके पुत्र राव दौलतसिंहजी दुजोद की गद्दी पर बैठे| खंडेला के राजा बहादुरसिंहजी ने सदभाव स्थापना के लिए “वीरभान का वास” नामक गांव जो खंडेला के अधीन था, जिसको सीकर भी कहते थे, राव दौलतसिंहजी को दिया| ताकि पिता की हत्या को लेकर उनका खंडेला से बैर नहीं सदभाव बना रहे| इस अवसर पर खड़ेला राजा स्वयं दुजोद पधारे और जसवंतसिंह के कनिष्ट पुत्र फतहसिंह को सम्मान सहित खंडेला भी ले गए|

आपको बता दें, राव दौलतसिंहजी को सदभाव के लिए उपहार में मिला “वीरभान का वास” ही आज सीकर के नाम से जाना जाता है जिसे खंडेला से मिलने के बाद उसे अपनी राजधानी बनाया और सीकर का विकास किया| इस तरह सीकर सीकर के राजाओं को दुश्मनी भुलाने व सदभाव बनाये रखने के बदले मिला था, यदि ऐसा नहीं हुआ होता तो आज आपका जिला सीकर नहीं दुजोद के नाम से होता और आपका सीकर दुजोद नगर का एक मुहल्ला होता|

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