मानवेन्द्र सिंह का स्वाभिमान के नाम पर कांग्रेस में जाना

Gyan Darpan
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भाजपा में अपनी व अपने पिता की घोर उपेक्षा के चलते मानवेन्द्र सिंह ने भाजपा छोड़ कांग्रेस की राह पकड़ ली| आपको बता दें मानवेन्द्र सिंह के पिता पूर्व केन्द्रीय मंत्री भाजपा के बड़े नेता थे, जिन्हें पिछले लोकसभा चुनाव में टिकट तक नहीं दिया और उनके सामने कांग्रेस से आये सोनाराम को टिकट दी गई| जसवंतसिंह ने प्रतिरोध की राह चुनी और निर्दलीय चूनाव लड़ा, लेकिन सफल नहीं हुए| मानवेन्द्र सिंह इसी उपेक्षा का बदला लेने के लिए मौके की तलाश में थे और उन्होंने चार साल बाद चुनावी माहौल में मौका तलाशा| मानवेन्द्र सिंह ने भाजपा को चुनावी पटकनी देने की रणनीति के तहत 22 सितम्बर को स्वाभिमान रैली की जिसमें उम्मीद से ज्यादा लोगों ने भाग लिया|

एक तरह से इस स्वाभिमान रैली के माध्यम से मानवेन्द्र सिंह ने अपनी राजनैतिक ताकत और क्षेत्र में पकड़ प्रदर्शित की| जिसके बाद कांग्रेस ने उन्हें पार्टी में शामिल कर लिया| मानवेन्द्र सिंह के कांग्रेस में शामिल होते ही सोशियल मीडिया पर उनके पक्ष-विपक्ष में घमासान मचा है| भाजपा और कांग्रेस से नाराज राजपूतों को उनका कांग्रेस में जाना पच नहीं रहा है, वे चाहते है कि मानवेन्द्र सिंह निर्दलीय चुनाव लड़ें, लेकिन उनके पिता द्वारा निर्दलीय चुनाव लड़ने का अनुभव उनके पास है अत: मानवेन्द्र सिंह द्वारा निर्दलीय चुनाव लड़ने की उम्मीद रखना बेमानी है|

कांग्रेस-भाजपा से नाराज राजपूतों के अलावा मानवेन्द्र सिंह संघ-भाजपा के कट्टर लोगों के निशाने पर भी हैं| कई ऐसे राजपूत युवा जो संघ के प्रभाव में जातिवाद छोड़ हिन्दुत्त्व की माला जपते हैं| राजपूत सामजिक संगठन जब जातीय स्वाभिमान व क्षात्र धर्म की बात करते हैं तब वे उसमें हिन्दुत्त्व का समग्र फायदा देख उनसे किनारा कर लेते हैं, मेरा कहने का मतलब उनकी नजर में हिन्दुत्त्व के आगे क्षात्र धर्म व राजपूत जाति की बात करना बेमानी है| वे ऐसे लोग हैं जो जन्म से राजपूत अवश्य है लेकिन उन्हें संघ या राजपूत जाति का चुनाव करना पड़े तो के राजपूत जाति को छोड़ संघ को चुनेंगे| ऐसे लोगों को भी मानवेन्द्र सिंह के कांग्रेस में जाते ही क्षात्र धर्म याद आने लगा| वे क्षात्र धर्म का हवाला देते हुए मानवेन्द्र सिंह के कांग्रेस में जाने पर ऐसे व्यंग्य कर रहे हैं, जैसे कांग्रेस भारतीय नहीं पाकिस्तानी दल है|

सीधी सी बात है अपनी धरातलीय परिस्थिति देखकर मानवेन्द्र ने फैसला लिया है| आगे क्या होगा ? क्या परिणाम निकलेगा वो भविष्य के गर्भ में है, लेकिन इतना अवश्य है कि ऐसा कर उन्होंने अपने पिता की प्रतिशोध की नीति को आगे बढ़ाया है| इसके लिए उन्होंने अपने क्षेत्र के लोगों का सम्मलेन किया, उनकी रैली में भीड़ उमड़ी| मारवाड़ से बाहर के लोग भी गए, जिनमें से कईयों को उनका यह फैसला पचा नहीं| पर मानवेन्द्र ने स्थानीय लोगों को ही रैली में बुलाया था, बाहर से जाने वालों का भाजपा के खिलाफ अपना एजेंडा था| मानवेन्द्र ने तो उन्हें आने का न्योता तक नहीं दिया था| ऐसे बाहर वालों की आलोचना का कोई मतलब नहीं है|

कई लोगों को मानवेन्द्र सिंह का कई मुद्दों पर चुप रहना भी अखर रहा है, पर हो सकता है मानवेन्द्र सिंह अपने ऊपर जातिवाद का ठप्पा लगने से बचने के लिए चुप रहे हों, क्योंकि उनकी छोटी सी गलती भी उनके स्वाभिमान की लड़ाई में रोड़ा बन सकती है| फिर स्थानीय समीकरण क्या है ? उनसे कैसे पार पाना है आदि सवालों का उत्तर स्थानीय लोग ही समझ सकते हैं| सो मानवेन्द्र सिंह ने जो किया वो सोच समझकर अपने व अपने स्थानीय समर्थकों के हित देखकर ही किया होगा|

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