अम्बिकेश्वर महादेव आमेर के कछवाह राजवंश के कुलदेवता

Gyan Darpan
0

अम्बिकेश्वर महादेव का प्राचीन मंदिर आमेर में स्थित है| अम्बिकेश्वर महादेव कछवाह राजवंश के कुलदेवता है| यानी शेखावत, राजावत, नरुका, खंगारोत, कुम्भावत, क्ल्यानोत आदि कछवाह राजपूतों के कुलदेवता हैं| इस मंदिर के युवा पुजारी के अनुसार यह मंदिर पांच हजार वर्ष पुराना है और भगवान श्री कृष्ण से जुड़ा है| युवा पुजारी के अनुसार भगवान श्री कृष्ण का यहाँ मुंडन संस्कार हुआ था| कछवाहों की ख्यातों और कई इतिहासकारों के अनुसार आमेर पर मीणा शासकों पर विजय पाने के बाद कछवाह राजा काकिलदेव ने यहाँ पूर्व में ही निर्मित मंदिर व शिवलिंग को खुदाई कर निकाला और उसको वहीं स्थापित रखकर शिव पूजा की व्यवस्था की| उनको अपना कुलदेवता माना व अम्बिकेश्वर महादेव के नाम पर आमेर नगर बसाने के लिए नींव रखी जो कई पीढ़ियों के बाद राजदेव के समय आमेर में जमुवारामगढ से राजधानी आमेर स्थानांतरित हुई| आपको बता दें काकिलदेव संवत 1093 की माघ सुदी शुक्ल पक्ष की सप्तमी को गद्दी पर बैठे थे|

जमुवाय माता संक्षिप्त इतिहास पुस्तक के लेखक डा. रघुनाथ प्रसाद तिवाड़ी ने पुस्तक में अम्बिकेश्वर महादेव की स्थापना पर विस्तार से प्रकाश डाला है| उनकी पुस्तक के अनुसार आज जहाँ आमेर है वहां उस समय से सैंकड़ों वर्ष पहले कोई नगर रहा होगा जो उजड़ होने पर गिरकर भवन भी जमींदोज हो गए| आमेर विजय पर माता जमवाय ने काकिलदेव को दर्शन दिए और आज जिस थान पर आमेर है उस स्थान का वर्णन कर कहा कि – वहां खुदाई करो, खुदाई में अम्बिकेश्वर महादेव का मंदिर मिलेगा, जमीन में शिवजी का विग्रह है, उसे निकालकर स्थापित करो वह अम्बिकेश्वर महादेव है साथ ही माता ने काकिलदेव को वही राजधानी बनाने के निर्देश भी दिए| माता के आदेशनुसार आमेर में अम्बिकेश्वर महादेव को जमीन से निकालकर विधि विधान से इनकी पूजा-अर्चना कर उन्हें स्थापित किया तथा काकिलदेव की नवीन राजधानी आमेर के नाम से जानी जाने लगी|

अम्बिकेश्वर महादेव में शिवलिंग आज भी भूमि की सतह से 22 फीट नीचे है| डा. तिवाड़ी के अनुसार लगभग 30 वर्ष पहले तक यह शिवलिंग पानी में डूबा रहता था व चार पांच सीढियों तक बारह महीने पानी भरा रहता था| पूजा के लिए शिव लिंग से नहीं पहुंचा जा सकता था| बाद में वर्षा कम होने पर झरने से पानी की आवक कम हो गई| पानी भरे होने के सवाल पर युवा पुजारी हनी ने हमें बताया कि उसने अपने दादाजी से यह बात कभी नहीं सुनी पर हाँ वर्षा ऋतू में आज भी शिवलिंग के पास पानी भरता है| मंदिर की प्राचीनता के बारे में युवा पुजारी हनी इसे पांच हजार वर्ष पुराना मानते हैं, लेकिन काकिलदेव से पहले के यहाँ के मीणा शासकों का इतिहास प्रकाश में नहीं होने के कारण मंदिर की प्राचीनता का कोई सही समय तो निर्धारित नहीं किया जा सकता पर कछवाहों की ख्यात आदि में जमींदोज हुए मंदिर को खोदकर निकालने की बात से साफ़ है कि यह मंदिर अति प्राचीन है युवा पुजारी की बात में दम है कि मंदिर पांच हजार वर्ष पुराना है, युवा पुजारी हनी ने मंदिर के कभी जमींदोज होने व खुदाई कर निकालने की बात को भी सिरे से खारिज कर दिया|

भले ही इतिहासकारों व युवा पुजारी के मध्य मंदिर को खुदाई से निकालने की बात पर असहमति हो पर इतना अवश्य है कि यह मंदिर कछवाहों से पूर्व यहाँ के मीणा या मीणाओं के पहले किन्हीं शासकों से अवश्य जुड़ा है| क्षत्रिय चिन्तक श्री देवीसिंह जी महार के अनुसार भी आमेर में भूमि से खोदकर निकाला गया अम्बिकेश्वर महादेव का मंदिर इस बात की साक्षी देता है कि इस स्थान पर प्राचीन काल में कोई विशाल नगर था| इस मंदिर पर एक बड़ी व ऊँची मीनार बनी है, युवा पुजारी हनी ने हमें बताया कि पहले इस मीनार पर एक बड़ा दिया जलाया जाता था जिसका पूरे आमेर में प्रकाश रहता था| जब दिया जलाना बंद कर दिया गया तब से मीनार ध्वजा फहराने के लिए काम ली जाने लगी|

तो कछवाह बंधुओ आमेर का यह प्राचीन मंदिर आपके कुलदेवता का मंदिर है, आपको अपने परिजनों सहित अपने कुलदेवता को नमन करने जीवन में कम से कम एक बार तो अवश्य आना चाहिए, आशा है अब जानकारी मिलने के बाद आप अपने कुलदेवता के दर्शन अवश्य करेंगे| यहाँ तक आने के लिए आप जयपुर आयें, जयपुर की नगरीय बस सेवा की बसे आमेर बहुतायत से आती है और आमेर बस अड्डे से मंदिर मात्र सात-आठ सौ कदम की दूरी पर है, अम्बिकेश्वर महादेव मंदिर के बारे में पूछने पर आपको कोई भी व्यक्ति रास्ता बता देगा|

एक टिप्पणी भेजें

0टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें (0)