हूणों के भी हृदय हिले थे ।
यशोधर्मन ने वि.सं. ५८५ (ई.स. ५२८) के लगभग हूण राज़ा तोरमाण को परास्त किया था। हूण मूलतः आर्य थे और बाद में वे मध्य एशिया में चले गए थे। वैदिक धर्मानुसार न चलने के कारण ये मलेच्छ कहलाए। हुणों ने सम्पूर्ण मध्य एशिया और भारत की राजनीति को प्रभावित किया। हूण बड़े शूरवीर थे। गुप्त शासकों की शक्ति क्षीण होने पर लगभग पाँचवी ईस्वी शदी में टिड्डी-दल की तरह हूण पश्चिमोत्तर और मध्य भारत में छा गए थे। इनका नेता तोरमूण था जिसकी राजधानी साकल (सियालकोट) थी। उसने मध्य भारत को जीत लिया था। भारत आने पर तोरमाण और उसके आश्रितों ने शैव धर्म अपना लिया था। तोरमाण के पश्चात् उसका पुत्र मिहिरकुल हुणों का राजा बना। तोरमाण और मिहिर कुल अत्यन्त क्रूर शासक थे तथा निर्दोष लोगों पर तरह-तरह के अत्याचार करते थे। उनकी भयानक आवाज जहाँ भी सुनाई देती थी, लोग कॉप जाते थे। उन्होंने अपनी राक्षसी क्रूरता से लोगों का वध किया, आग लगाई तथा सर्वनाश किया। वह बौद्धों का घोर शत्रु था। उसने अधिक संख्या में बौद्धों को मरवा डाला और बौद्धविहारों को जलवा दिया था। मिहिर्कुल इतना पराक्रमी था कि उसने भगवान शिव के अतिरिक्त और किसी के समक्ष सिर नहीं नवाया। यशोधर्मन ने वि.सं. ५८५ (ई.स. ५२८) के लगभग मिहिरकुल को परास्त किया। मिहिरकुल ने पराजित होकर कश्मीर में शरण ली। इस तरह यशोधर्मन ने हूणों के अत्याचार से देश को मुक्त कराया। मिहिरकुल को राजा यशोधर्मन ने मुलतान के आस-पास पराजित किया था। लेखक : छाजूसिंह, बड़नगर