Invitation न्यूंतौ

Gyan Darpan
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राजस्थानी भाषा के मूर्धन्य साहित्यकार, इतिहासकार श्री सौभाग्यसिंह जी शेखावत की कलम से............
गोठ-धूघरी, ब्याव-सावां, सनेही, भाई-भायलां नै बुलावै उण नै न्यूंतौ (Invitation) कैवै। न्यूंतौ ऊधारी हांती गिणीजै। अदळा रा बदळा कहीजै। न्यूंतौ घर दीठ मिनख, थळी दीठ अेक मिनख रौ नै सीगरियौ भी हुवै। सीग्रै न्यूंतै में तागड़ी-पागड़ी जीमण नै आवै-मिनख अर लुगाई घर रा सगळा लोग। अै तौ जीमण-जूठण रा न्यूंता बाजै। लाड कोड, ब्यावसावा, छठी-दसोटण, आखै-टांणै, मरै-खिरै रा औसर-मौसर में लोग न्यूंतीजै। होळी, दीवाळी, तीज-गणगोर माथै भी भाई, बैवारी न्यूंतीजै। पण, राजस्थान में अहेताळुवांदुसमणां नै भी न्यूतणै रौ चाळौ रैयौ। जंतर-मंतर, कामण-टोटकों में भूत पलीतां नै सैं सूं भी पैली न्यूंतै। ब्याव-सगाई में विनायक नै न्यूंतणौ तौ जुगादी धारौ इज है। झगड़ाझांटां में वैरियां नै न्यूतणै री बात गळे ऊतरणी साव सोरी नी लखावै। पण आ बात सवा सोळा आना खरी नै साव सांची है कै अठै जुद्ध रौ न्यूतौ मोकळणै री घणी काण्यां मिलै। सेर नै सवा सेर अर कुचामणिया रिपियां री ठौड़ सिक्के चौरासाई घालै उण नै ही मरद बदै। न्यूतौ ले बैठै वौ तौ नाजोगौ इज गिणीजै। ऊभा घोड़ा इज दाळ पावै। कीं नी करणै-जोगां नै कुंण पूछै। बोलै उणा रा इज वूंमळा बिकै, नींतर अबोला री तौ जंवार टकै पंसेरी ही कोई नीं बूझै। ठाढां रौ डोकौ डांग नै फाडै़। पण, एक री ठौड़ सौ देवै उण सूं सगळा ही टाळौ खावै। सूता भूत नै कुंण जगावै ? कालिंदर री पूंछ कुण दाबै ? डाकणियां नै गोठ में कुंण तेड़ौ मेलै ? पण, अैड़ा मिनख भी हुवै जिका मौत सूं भटभेड़ी लेवण नै पायचा टांकिया त्यार रैवै। अैड़ा मांटी इज दुसमणां नै न्यूंता मोकळै।

जोधपुर रा धणी अभैसिंघजी अैमदाबाद नै सर कर घणौ गरब कियौ। दुनियां में आपरै ओळे-ढोलै किंणी नै नी समझियौ। पांगळी डांकण गटकै घर रा इज डीकरा। रेबारण ही अर डाकण व्हैगी, ऊंटा चढ-चढ नै खावै, सौ अभैसिंघजी आपरा भायां (बीकानेरां माथै) डाढ लगाई। मारवाड़ री फौज बीकानेर माथै जाय घेरौ घाल्यौ। बीकानेर रा राजा जोरोवरसिंघजी अैड़ा घिरया जिकौ कठै इज पसवाड़ौ फेरण नै ठौड़ नी। अभैसिंघजी रौ सांमनौ। अभैसिंघजी जैपुर रा सवाई जैसिंधजी रा जंवाई। पण जंवाई भाई आंट चढै जद किणरी मानै ? आप मतै चालै। बीकानेर रौ धणी घेरा संू नक-सांसै आयोड़ौ। छेवट जोरावरसिंघजी जैपुर नरेस सवाई जैसिंघजी नै न्यूंतिया, कागद मेलियौ-
अभौ ग्राह वीकाण गज, मारु ज समंद अथाह।
गरुड़ छाड गोविंद ज्यूं, सहाय करौ जैसाह।।


सवाई जैसिंघजी अभैसिंघजी नै समझावण री कोसीस करी। पण, अभैसिंघजी राजमद में गहळीजियोड़ा। किंणरी गिणत गिन्यार करै। जद सवाई जैसिंघजी आपरौ अराबौ जोधपुर माथै वहीर कियौ। जैपुर री बाईसी रौ धक, जमराज धकौ। जलालिया री टक्कर। काळ रौ डाचौ। भाभड़ा भूत री भटभेड़ी। सौ जैसिंघजी रा धावा री सुण अभैसिंघजी रा तोराण फूलग्या। हाक बाक भूलग्या। रोजा री ठौड़ निवाज गलै घळगी। जद बीकानेर रौ धेरौ ऊभौ मेल रात दिन अेक कर जोधपुर नैड़ीली। ललौ-पतौ कर बाईस लाख रिपिया सवाईजैसिंघजी नै फौज खरच री भरोती रा देय लार छुडाई। नीठ जीव में जीव बापरियौ। पछै सवाई जैसिंघजी फौज खरच रौ भरणौ लेय कठठठ करती आपरी तोपां नैं पाछी मोड़ी। हाथियां रा टल्ला सूं ठीलीजती, बैलां सूं चलीजती तोपां मेड़तियां री चौरासी में पूगी। चौरासी में भखरी भेड़तियां रौ ठिकाणौ। तिल जिती सी भाखरी माथै भखरी रौ कोट। पण भाखरी रौ ठाकर केसरीसिंघ सांपरत नाहर, लाय बलाय। रात रा भखरी कनै फौजरौ पड़ाव। नींदड रौ राव जोरावरसिंघ झुंझळ खाय कहयो-आछौ राठौड़ रौ राम नीसरियै जिक कछवां री तोप इज खाली नी करा सकिया। मारवाड़ में रजपूती नीं रैयी। औ बोल सुण भखरी रौ कोई ठावौ माणस संझा रै बखत कोट में गयौ अर ठाकर केसरीसिंध नै जोरावरसिंघजी रा वचन सुणाया। गोत री गाळ कुटंब नैं लागै। तानौ सीर को हुवै। उंतावळां री तौ सदा सूं देवळिया हुवै नै धीरा-ठावां नै पट्टा मिळे।

सुंवार रा केसरीसंघ सवाईजैसिंघजी नै जुद्ध रौ न्यूंतो मेल दियौ। किला संूं तोपां रा बाण हुबा लाग्या। जैपुर रौ तोपखानौ पल भर में मुखरी रा कोट रा कांकरा बखेर दिया। पण बिना जिमाई जैपुर री फौज नै नी जावण दी। जोरावरसिंघजी रा बोल माथै भखरी ठाकर टकरी खेल ली।
जद इज कह्यौ है
जैपुर री न रही सेखी, भखरी पर भागीह।
करग्यौ टकरी केहरी, लंगर धर लागीह।।


जे ठाकर केसरीसिंघजी जैपुर री तोपां खाली नी करवाता तौ मारवाड़ रै सिर सदा-सदा तांई मोटी मैणी रैय जाती। जैपुरी सैना रौ गरब गाळ केसरीसिंघजी मारवाड़ री नाक राखली। इण भांत केसरीसिंघजी सवाई जैसिंघजी नैं न्यूंतिया अर जस कमायौ-
केहरिया करनाळ, जे नह जुड़तौ जयसाह सूं।
आ मोटी अवगाळ, रहती सिर मारू धरा।।


भरतपुर रौ जाट राजा जवाहरमल्लजी अैक समै अड़ोसी-पड़ोसी रजवाडां नै दिल्ली-आगराई मुगलाई में घणौ ताव दियौ। आगरा नै लूटियौ। दिल्ली में ठाढौ उदंगळ मचायौ। बादस्याह अकबर री कब्र मांय सूं उण रा हाड काढ भरतपुर ले गयौ। वीरता, साहस अर पराक्रम रा घणा खेल किया। कनै-नैड़ै रा राजा, रावां सूं छेड़छाड़ कर अर पछै बुंदेलखण्ड अर माळवा कांनी पगफेरौ मांडियौ। माळवा में ग्वालेर मांय नरवर कछावां री राजधानी। उठै रामसिंघ कछावौ राज करतौ। जवाहरमल्लजी, कछावा रा जैपुर राज नै तौ नीं हड़प सक्यौ अर नरवर माथै चढ़ाई करी। अठारासै चौइस रै सईका री बात। सौ आप रा जाट जोधारां री हाथी, घोड़ा, अराबौ, पैदल-कटक साथ लेयर चम्बल लांघी। काळपी, भदावर रजवाड़ां सूं पेसकस लेय वीरता री महानंदी रौ प्यालौ चढाय नरवर रै पाखती मगरौनी माथै जाय तम्बू तणाया। उठां रा भाई गोती आयलां-भायलां सूं भेंटियौ हूँ दिया। उठै रा जाट लोग जवाहरमल्लजी नखै जाय करहिया रा पंवारां री घणी खोटी-खरी सुणाई। अेक री ठौड़ पांच लगाई अर भरतपुर-धणी नै घणौ उकसायौ जवाहरमल्लजी आव देखियौ नीं ताव अर वेगा-सा करहिया रा धणी राव केसरीसिंघजी नै रुक्कौ मैळ कह्यौ- कागद मिळतां रै सागे मगरौनी कदमां आवौ, नींतर खैर नीं है। रंघड़ अर रजपूत नै रेकरै री गाळ। गाळ भी काढ़णौ आवणौ चाईजै। जियां रजपूत नै कैवै थांरौ बाप मुवौ तौ हाथी चाढै अर बीजां लोगां नै कैवै थांरी बाप मुवौ तौ पाछी गाळ काढै कै नाड़ बाढै। पण, मोटा लोगों में भी घणां ई भारीखम भी हुवै। आगै-पाछै री सुणै समझै। वेग-सा छेह नीं देवै। करहिया रै राव आपरै भाईपै रा राव दुरजणसाल, मुकंदसिंघ, सिरदारसिंघ, सांवतसिंघ, कैसौराम, पंचमसिंघ अर धरमांगद इत्याद ठावा सरदार, जोधार सुरमां नै तेड़िया। जवाहरमल्ल रौ मुठबोल रौ कागद पढायौ। कागद सुण पंवार सूरवीरां रै तन-मन में आग री झुळ-सी रोस ज्वाळा ऊपटी। पंवारां कह्यौ- काळ रा चरख्खा, औघड़ रा भख नै पाछौ लिखौ कै परमारा नरवर कींकर जावौ हौ, पैली करहिया में पघारौ। पंवारां रौ न्यूंत झेलौ। इयां लिख अर साथै पांच चोट बारूद री अर पांच सीसा री गोळियां रा पीळा चावळ मौकळिया।

करहिया रौ राज नरवर री उतराद री ढाळ। नरवर सूं पैली करहिया री मनवार। जवाहरमल्लजी तौ आप ही अहंकार री आधी। राजमद आयौ मैंगळ। फौज नै करहिया रा किला माथै वहीर कीनी। बेहू पखां में जोरदार राड़ौ हुवौ। अेक हजार जाट वीर खेत्रपाल री बळ चढिया। जाटां रौ फौ नीं लागौ। थळी रा तम्ूबा री भांत मुंडकियां गुड़ी करहिया रा पंवारां इण भांत अण न्यूंतियां न्यूंतियारां नै रण रूप मंडप में बधाया। काले पाणी रूप कुंकम रा तिलक कर भालांरी नोक री अणियां री चोट रा तिलक किया। मुंडकियां रूप ओसीस रै सहारै पौढाय नै रण सेज सजाई अर ग्रीझ, कावळां कागां नै मांस लोही रौ दान बंटाय आपरी उदारता जताई। पछै परोजै रूपी अपजस’रा डंका बजावता जवाहरमल्लली ब्रज वसुंधरा में आया अर पंवार आपरी विजय रा नगारा घुराया। इण भांत अण न्यूंतिया न्यूंतियारां रौ सुवागत पंवारां कियौ जिकौ अठै सार रूप में जता दियौ।

जीत लीवी धारा धणी, छूटौ प्रबल प्रहार।
की नै भट जटरान के, सिर बिन हेक हजार।।
मुरकी अनी हंरोल की, गयौ जाट तजि देस।
वाह वाह धारा रा धणी, मुख तै कहै नरेस।।

इण भांत रण रा न्यूंता अर उधारा आंटा मोल खरीदण री अठै घणी आछी रीत रैयी है।


लेखक श्री सौभाग्यसिंह शेखावत

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  1. न्यूता "की ऐतिहासिक तथ्य के साथ सुन्दर राजस्थानी शब्दों के साथ विवेचना ।

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