राजस्थानी भाषा के मूर्धन्य साहित्यकार, इतिहासकार ठाकुर सौभाग्य सिंह शेखावत

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राजस्थानी भाषा साहित्य और इतिहास के उन्नयन के लिए राजस्थान और राजपूत समाज अपने जिन साहित्य व इतिहास साधक सपूतों पर गर्व कर सकता है, उनमें सौभाग्यसिंह शेखावत का विशिष्ट स्थान है| आपने अनवरत जीवनभर राजस्थानी भाषा, साहित्य, संस्कृति और इतिहास की मनोयोगपूर्वक मौन साधना की है| राजस्थान के पर्वतों, वनों, दुर्गों और झोंपड़ीयों के प्राकृतिक तथा ऐतिहासिक गौरव स्थानों ने शेखावत को राजस्थानी साहित्य और इतिहास का प्रेमी बनाया है|

सौभाग्यसिंह शेखावत का जन्म कछवाहा राजवंश की शेखावत शाखा की गिरधरदासोत खांप के ठाकुर कालूसिंहए भगतपुरा (खूड) के जागीरदार के यहाँ 22 जुलाई 1924 को हुआ| शेखावत का अध्ययन देशभक्त जमनालाल बजाज द्वारा अपनी जन्मभूमि काशीकाबास में स्थापित विद्यालय व सर माधव विद्यालयए सीकर में हुआ| सेठ जमनालाल बजाज की ठाकुर कालूसिंह जी से घनिष्ठता थी| बजाज की प्रेरणा से सौभाग्यसिंह ने माध्यमिक विद्यालय, लोसल में अध्यापन कार्य स्वीकार किया और वहीं नियमित रूप से साहित्य व इतिहास का अध्ययन जारी रखा| किन्तु वहां के सीमित क्षेत्र में आपका मन नहीं लगा| उन्हीं दिनों शेखावत क्षत्रिय युवक संघ के अध्यक्ष चुन लिये गये और जयपुर में राजपूत छात्रावास के व्यवस्थापक का कार्यभार संभाला| अपने जयपुर के दो वर्षों के कार्यकाल में आपने जयपुर राज्य के ठिकानों के पोथीखानों में रक्षित हस्तलिखित सामग्री का अवलोकन मनन किया|

तदन्तर आप क्षत्रिय समाज के प्रबल सुधारक, समाजसेवी ठाकुर मंगलसिंह, खूड की प्रेरणा से राजस्थान क्षत्रिय महासभा की ओर से संचालित क्षत्रिय स्वयं सैनिक संघ के संगठन कार्य में जुट गये| शिक्षा प्रचार, सामाजिक कुरीतियों का त्याग, बाढ़ पीड़ितों की सहायता, गौवंश पालन, भारतीय धर्म तथा संस्कृति का अनुवर्तन प्रचार और क्षत्रिय समाज का संगठन कार्य बड़ी निष्ठा के साथ किया| इस संगठन की सफलता के उद्देश्य से शेखावत को राजस्थान के नगरों, ग्रामों, उपग्रामों, झोंपड़ीयों और राजमहलों के द्वार द्वार तक भ्रमण करना पड़ा| फलतर: आपको राजस्थान के कीर्तिस्थलों, वीर स्मारकों, सती मंदिरों, लोक तीर्थों, साधना पीठों के दर्शनों का अलभ्य लाभ प्राप्त हुआ तथा प्राचीन काव्य के श्रवण, हस्तलेखों के पठन और दर्शन का सौभाग्य मिला| राजस्थान के अतीत कालीन गौरव से प्रभाव ग्रहण कर शेखावत ने अनेक दैनिक, साप्ताहिक एवं मासिक पत्रों में निबंध, कविताएँ और कहानियां छपवाई| आपने राजस्थानी संस्कृति संस्थान की स्थापना की और राजस्थान की लोकाराध्या देवी जीणमाता, राजऋषि मदनसिंह दांता, कुंवर रघुवीरसिंह जावली का जीवन वृत्त आदि पुस्तकें लिखी और प्रकाशित की| सन 1957 में आपने साहित्य संस्थान, राजस्थान विद्यापीठ, उदयपुर को अपनी सेवाएँ अर्पित की और राजस्थानी बातें भाग 3,4,5 और 7 का संपादन किया| राजस्थानी पडूतर पुस्तक की भूमिका में राजस्थानी साहित्य के मर्मी विद्वान रावत सारस्वत ने शेखावत के प्रति जो शब्द लिखें है, वे उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व को चित्रात्मकता प्रदान करते है| शेखावत ने राजस्थानी गद्य में भी पर्याप्त लेख और कहानियां लिखी है जो मरुवाणी, संघशक्ति और संघर्ष पत्रिकाओं के माध्यम से प्रकाशित हुई|
राजस्थानी भाषा में राजस्थान का स्थानीय वातावरण और अभिवक्ति सार्थकता सौभाग्यसिंह की भाषा का विशेष गुण है| साहित्य संस्थान, उदयपुर के अपने कार्यकाल में सौभाग्यसिंह ने "ह्वाट विलास" चम्पूकाव्य का भी संपादन किया| आप संस्थान की "शोध पत्रिका" नामक त्रैमासिक पत्र के भी दो वर्ष तक सहयोगी संपादक रहे और कोई एक सौ से अधिक निबंध छपवाये| शेखावत के शोध निबंधों की सराहना अनेक विद्वानों व इतिहासकारों ने की है| शेखावत के निबंध जहाँ गहरी पैठ और नवीन ज्ञातव्यों से परिपूर्ण होते है, तथा वहां श्रम चोर लेखकों द्वारा प्रचारित भ्रांतियों के निराकरण में भी पूर्ण सक्षम होते है|

लेखक : डा.कल्याण सिंह शेखावत, जोधपुर

सौभाग्यसिंह जी शेखावत ने राजस्थानी साहित्य, इतिहास की सैकड़ों पुस्तकें लिखी है वहीं सैंकड़ों पुस्तकों की भूमिकाएँ लिखी है| शेखावत राजस्थान की डिंगल पिंगल भाषा के गिने चुने विद्वानों में से एक है| असंख्य इतिहास शोधार्थी आपके पास डिंगल गीतों का अनुवाद करवाने व समझने के लिए आते रहे है| देश से ही नहीं विदेशी शोधार्थी भी अपनी शोध हेतु विभिन्न जानकारियां व मार्गदर्शन हेतु आपके पास आते रहे है| राजस्थान का ज्यादातर इतिहास चारण कवियों ने डिंगल भाषा में लिखा है अतर: इतिहास शोधार्थी डिंगल के अनुवाद हेतु आप पर काफी हद तक निर्भर रहते आये है| आपको शिलालेखों की प्राचीन भाषा को पढने में भी विशेषज्ञता हासिल है आपने अपने जीवन सैंकड़ों शिलालेख पढ़कर इतिहास शोधार्थियों के लिए शोध सामग्री उपलब्ध कराई है|

शेखावत ने साहित्य, इतिहास लेखन व समाजसेवा के साथ राजनीति में भी सक्रीय भूमिका निभाई है| राजस्थान विधानसभा के 1952 के चुनावों में आप दांता-रामगढ विधानसभा क्षेत्र से राम राज्य परिषद के उम्मीदवार थे और आपके सामने आपके ही मित्र पूर्व उपराष्ट्रपति स्व. भैरोंसिंह शेखावत जनसंघ के उम्मीदवार थे| इस चुनाव में आपका नामांकन पत्र रद्द हो गया तब आपने अपने मित्र भैरोंसिंह शेखावत के चुनाव-प्रचार की बागडोर संभाली और उन्हें विजय दिलाई| ज्ञात हो भैरोंसिंह शेखावत का भी वह पहला चुनाव था और उन्होंने सौभाग्यसिंह शेखावत के साथ ऊंट पर सवारी कर पुरे क्षेत्र में चुनाव प्रचार किया था|

आप चौपासनी शोध संस्थान के निदेशक सहित राजस्थानी भाषाए साहित्य और संस्कृति अकादमी के अध्यक्ष भी रहे है| अकादमी की अध्यक्षता के आपके कार्यकाल में अकादमी में कार्यों को आज भी राजस्थान के साहित्यकार याद करते है| भैरोंसिंह शेखावत जब देश के उपराष्ट्रपति बने तब वे आपको दिल्ली ले आये ताकि आप उपराष्ट्रपति आवास में रहते हुये इतिहास लेखन व साहित्य साधना कर सकें| वर्तमान में आप बढ़ी उम्र के चलते लिखनेए पढने, सुनने में असमर्थ है फिर भी साहित्यिक चर्चा शुरू होते ही आप अपना स्वास्थ्य भूल साहित्यिक चर्चा में मशगूल हो जाते है|
ज्ञान दर्पण.कॉम



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2टिप्पणियाँ

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (10-10-2015) को "चिड़ियों की कारागार में पड़े हुए हैं बाज" (चर्चा अंक-2125) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. मिल कर प्रसन्नता हुई -प्रस्तुति हेतु आभार !

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