समय रहते क्षत्रपों पर लगाम लगायें मोदी

Gyan Darpan
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हाल ही भाजपा द्वारा आगामी लोकसभा चुनाव के लिए देश के युवावर्ग व पार्टी कार्यकर्ताओं की भावनाओं का आदर करते हुए नरेंद्र मोदी को अपना प्रधानमंत्री पद के लिए उम्मीदवार घोषित कर दिया| नरेंद्र मोदी को भाजपा की और से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करते ही उनके समर्थक युवा वर्ग व भाजपा के नेता, कार्यकर्ताओं का जोश व उमंग सड़कों से लेकर आभासी दुनियां की सोशियल साइट्स पर हिलोरें मार रहा है| युवाओं का सोशियल साइट्स पर मोदी प्रेम और मोदी की सभाओं में उमड़ती भीड़ की संख्या देख उन्हें भाजपा का आगामी प्र.मंत्री पद के लिए उम्मीदवार घोषित करने के निर्णय को किसी भी लिहाज से गलत नहीं कहा जा सकता|

कांग्रेसी व भाजपा विरोधी भले इस मामले में कितनी भी मजाक उड़ाए लेकिन लोकतंत्र में जनता को यह जानने का पूरा अधिकार है कि वे जिस दल को चुन रहे है उसका नेतृत्व किन हाथों में रहेगा| अत: भाजपा द्वारा अपना प्रधानमंत्री पद के लिए उम्मीदवार घोषित करने को स्वस्थ लोकतांत्रिक प्रक्रिया मानते हुए हमें इसका स्वागत करते हुए भाजपा के इस निर्णय की प्रशंसा करनी चाहिये और दुसरे दलों से भी उम्मीद करनी चाहिये कि वे भाजपा के इस लोकतांत्रिक निर्णय का अनुसरण कर अपना अपना प्रधानमंत्री उम्मीदवार घोषित करे ताकि जनता को अपनी पसंद का प्रधानमंत्री चुनने में आसानी हो|

मोदी के पीछे उमड़े युवा वर्ग की भीड़ और उनके दिलों में मोदी की लोकप्रियता व मोदी की विकासवादी, स्पष्ट वक्ता की छवि भाजपा को आगामी लोकसभा में सत्ता के शिखर तक पहुंचाने में काफी सहयोग करेगी पर इन सबके साथ ही यदि भाजपा ने विभिन्न राज्यों के अपने क्षेत्रीय क्षत्रपों पर काबू नहीं किया तो हो सकता है स्थानीय मुद्दों के चलते व स्थानीय क्षत्रपों के अड़ियल व्यवहार व व्यक्तिगत हित साधक कार्यों के चलते भाजपा का ही पारम्परिक वोट बैंक उदासीन हो भाजपा से छिटक ना जाये|

वर्तमान समय में भाजपा में भी अन्य दलों की भांति कई क्षेत्रीय नेता पार्टी पर अपना अपना व्यक्तिगत अधिपत्य जमाये रखने के लिए कार्यरत है, और वे अपने आपको पार्टी से भी बड़ा समझने लगे है| इस तरह के नेता अपना वर्चस्व बनाये रखने हेतु पार्टी के पुराने लोकप्रिय व वरिष्ठ नेताओं को राजनैतिक तौर पर हासिये पर धकेलने के प्रयास में लगे है| जिसका खामियाजा देर सवेर पार्टी को ही भुगतना पड़ेगा|

इस तरह की प्रवृति का खामियाजा भाजपा कर्णाटक में भुगत चुकी है| राजस्थान, मध्यप्रदेश में भी यही हाल है हर प्रदेश के क्षत्रप राष्ट्रीय नेतृत्व पर भारी पड़ रहे है और मौका आने पर आँखें दिखाने से भी नहीं चुकते|

राजस्थान इसका सबसे सटीक उदाहरण है- भाजपा के अग्रिम पंक्ति के नेताओं में से एक स्व.भैरों सिंह जी ने पार्टी की नीतियों का गरिमापूर्ण अनुसरण करते हुए प्रदेश की बागडोर वसुंधरा राजे सिंधिया को सौंप केंद्र की राजनीति में आये व बाद में देश के उपराष्ट्रपति बनें, श्री शेखावत चाहते और आजकल के भाजपा नेताओं की तरह व्यवहार करते तो वे भी अपने दामाद नरपत सिंह राजवी को अपनी विरासत सौंप कर दिल्ली आ सकते थे पर उन्होंने ने ऐसा नहीं किया| लेकिन वसुंधरा राजे के हाथ में प्रदेश की बागडोर आते ही उनका आचरण बदल गया और वे अपने वरिष्ठों को राजनैतिक रूप से हासिये पर कर खुडडे लाइन लगाने में जुट गयी और तो और जिस भाजपा रूपी पौधे को राजस्थान में अंकुरित कर जीवन भर सींचने वाले भाजपा के वरिष्ठ नेता व राजस्थान की जनता के सबसे ज्यादा प्रिय स्व.भैरों सिंह जी के साथ भी वसुंधरा ने वही हथकंडा अपना उनकी अवमानना करना शुरू कर दिया, जबकि राजस्थान में पार्टी की बागडोर उन्हीं के कारण वसुंधरा को मिली थी| उनके उस व्यवहार पर अजमेरनामा.कॉम के संपादक तेजवानी गिरधर जी लिखते है- वसुंधरा इतनी आक्रमक थी कि भाजपाई शेखावत की परछाई से ही परहेज करने लगे| कई दिनों तक वे सार्वजनिक जीवन में भी नहीं दिखाई दिए| जब वे दिल्ली से लौटकर अजमेर आये तो उनकी आगवानी करने को चंद दिलेर भाजपा नेता ही साहस जुटा पाये, शेखावत जी की भतीजी संतोष कंवर शेखावत, युवा भाजपा नेता भंवर सिंह पलाड़ा और पूर्व मनोनीत पार्षद सत्यनारायण गर्ग सहित चंद नेता ही उनका स्वागत करने पहुंचे। अधिसंख्य भाजपा नेता और दोनों तत्कालीन विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी व श्रीमती अनिता भदेल ने उनसे दूरी ही बनाए रखी। वजह थी मात्र ये कि अगर वे शेखावत से मिलने गए तो मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया नाराज हो जाएंगी। पूरे प्रदेश के भाजपाइयों में खौफ था कि वर्षों तक पार्टी की सेवा करने वाले वरिष्ठ नेताओं को खंडहर करार दे कर हाशिये पर धकेल देने वाली वसु मैडम अगर खफा हो गईं तो वे कहीं के नहीं रहेंगे।“ (तेजवानी गिरधर जी का लेख यहाँ क्लिक कर पढ़ा जा सकता है)

वसुंधरा राजे के इस व्यवहार का शेखावत समर्थकों को पता चलने पर उन्हें बहुत मार्मिक पीड़ा हुई और स्व.भैरोंसिंह जी ने भी वसुंधरा के कई भ्रष्टाचार के मुद्दे सार्वजनिक किये, नतीजा सामने रहा, पिछले चुनाव में किसी को भान भी नहीं था कि राजे चुनाव हारेगी और अशोक गहलोत चुनाव जीतेंगे| पर वसुंधरा के कटु, अड़ियल व्यवहार व पार्टी पर एकाधिकार रखने के मनसूबे के चलते पार्टी को नुकसान उठाना पड़ा और पुरे पांच वर्ष विपक्ष में बैठना पड़ा| इतना होने के बावजूद ऐसा समझा जा रहा था कि वसुंधरा राजे पिछले अनुभवों से सबक ले अपना व्यवहार सुधारेगी| और यह चुनाव अभियान के शुरुआती दौर में दिखा भी जब वसुंधरा स्व.भैरों सिंह जी की धर्मपत्नी व अन्य बुजुर्ग नेताओं से आशीर्वाद लेने उनके घर तक गयी जिन्हें पिछले चुनावों में राजे ने हासिये पर धकेला था|

यदि पिछले चुनाव में भी वसुंधरा राजे अपने अड़ियल रवैये से दुरी बनाकर रखती और स्व.भैरोंसिंह जी जैसे नेता को अपमानित नहीं करती तो किरोड़ीमल मीणा जैसे व्यापक जनाधार वाले नेता असंतुष्ट होकर बागी नहीं होते, उन्हें भैरोंसिंह जी जैसा कुशल राजनीतिज्ञ मना लेता| यही नहीं पिछले चुनावों में भैरोंसिंह जी के अनुभवों, संपर्कों का वसुंधरा राजे यदि फायदा उठाती तो कांग्रेस किसी भी हालत में हरा नहीं सकती थी| अकेले असंतुष्ट नेता किरोड़ीमल ने राज्य में १८ सीटों को प्रभावित कर भाजपा को सत्ता से दूर कर दिया था|

लेकिन लगता है जैसे जैसे चुनाव सभाओं में मैडम को समर्थन मिलता दिखा और उन्होंने अपने पुराने तेवर अपनाने शुरू कर दिये| कांग्रेसी मूल के कई ऐसे आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों को टिकट दे अपने पारम्परिक वोट बैंक के एक तबके को फिर नाराज करने में लगी| ज्ञात हो वसुंधरा द्वारा भाजपा से टिकट प्राप्त कर चुनाव लड़ने वाले कुछ आपराधिक प्रवृति के लोग पारम्परिक भाजपा वोट बैंक के एक खास समुदाय के विरोधी रहे है और इन तत्वों के चुनाव लड़ने पर यह समुदाय भाजपा से निश्चित रूप से दुरी बना लेगा और जिस समुदाय को राजे प्रभावित करने में लगी है वह कभी भी राजे का नहीं हो सकता, उस समाज के चंद स्वार्थी लोगों के अलावा|
साथ ही वसुंधरा राजे के एक खास सलाहकार जिन्हें जातिवादी तत्त्व कहा जाये तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी, अपने जातिय सम्मेलनों में कह रहे है कि वे वसुंधरा राजे के ख़ास है और उन्हीं की चलेगी, वे अपनी जाति वालों को भाजपा से खूब टिकट दिलायेंगे और बनिए, ब्राह्मण,राजपूतों पर उनके ही वोटों से उन पर राज कर उनकी खटिया खड़ी करेंगे, इन तथाकथित नेता जी ने बनिया,ब्राह्मणों, राजपूतों को BBR नाम दे रखा है और कहते है कि ये BBR भाजपा के पालतू कुत्ते है कहीं नहीं जायेंगे, उनके पिछवाड़े लात मारेंगे तब भी भाजपा के नाम पर हमें वोट दे देंगे| उक्त जातिवादी तत्वरूपी कथित नेता के इस घटिया बयान की चर्चा सोशियल साइट्स पर पिछले दिनों काफी छाई रही है| और इस कथित नेता के बयान के बाद इन जातियों से जुड़े कई युवा भाजपा के विरोध में उठ खड़े हुए है|

स्व.भैरोंसिंह जी जब जीवित थे तब तो माना जा सकता था कि वे वसुंधरा के लिए किसी तरह की अड़चन बन सकते थे पर आज वे इस दुनियां में नहीं है फिर भी वसुंधरा के डर से भाजपाइयों ने स्व.भैरोंसिंह जी का नाम लेना व उन्हें याद करना भी छोड़ रखा है इसका उदाहरण अभी हाल जयपुर में हुई मोदी की रैली में में दिखाई दिया| रैली व सभास्थल पर राजस्थान के उस लोकप्रिय नेता का कहीं कोई चित्र तक नहीं लगाया गया जिन्होंने भाजपा को राजस्थान में खड़ा किया था| साथ ही वसुंधरा ने अपनी सुराज संकल्प यात्रा में भी स्व.भैरों सिंह जी को याद नहीं किया, इस बात पर स्व.भैरोंसिंह जी के दोहिते और युवा नेता अभिमन्यु सिंह राजवी ने समाचार प्लस चैनल व ज्ञान दर्पण.कॉम से इस मुद्दे पर बातचीत में बताया कि- “शेखावत साहब की पहचान और उनकी विरासत किसी द्वारा उनका नाम लिए जाने या ना लिए जाने की मोहताज नहीं है लेकिन जो हुआ है उससे कार्यकर्ताओं को बहुत पीड़ा हुई है, ऐसा नहीं होना चाहिये था|”

सोशियल साइट्स पर भी शेखावत जी के कई समर्थक वसुंधरा व भाजपा की इस हरकत से काफी नाराज,विचलित व उद्वेलित है, इस कृत्य से उनके मन को पहुंची भारी ठेस को वे बेबाक अभिव्यक्त भी कर रहे है| यदि राजस्थान भाजपा व वसुंधरा राजे का ऐसा ही व्यवहार रहा तो कोई अतिश्योक्ति नहीं कि आगामी चुनावों के बाद भाजपा को एक बार फिर विपक्ष में बैठना पड़े| क्योंकि स्व.भैरों सिंह जी व उनके परिवार को पार्टी में ज्यादा तवज्जो नहीं दिए जाने से एक तरफ उनके समर्थक व राजपूत समुदाय के मतदाता अपनी उपेक्षा समझ भाजपा से दुरी बना रहे है वहीँ भाजपा द्वारा कुछ आपराधिक प्रवृति के लोगों को टिकट देने पर उन्हें हारने को कई सामाजिक संगठनों द्वारा मोर्चा खोल लेने से उपरोक्त सीटों पर भाजपा की हार तय है जो उसे सत्ता से दूर रखने के लिए काफी है|

विश्लेषक कयास लगा रहें है कि – “कहीं पिछले दिनों जयपुर में नरेंद्र मोदी को सुनने उमड़ी भीड़ की संख्या देख मैडम का दिमाग फिर ख़राब ना हो जाये?” और वे अपनी चिर-परिचित शैली फिर ना अपना ले, यदि ऐसा हुआ तो वह खुद वसुंधरा व भाजपा के लिए हानिकारक होगा|” ऐसे ही एक फेसबुक स्टेटस पर टिप्पणी करते हुए राष्ट्रवादी लेखक संजय बैंगाणी लिखते है- “यदि ऐसा हुआ तो इनका तो कुछ ना बिगड़ेगा पर हाँ ! देश का बहुत कुछ बिगड़ जायेगा|”

संजय जी का ईशारा साफ़ था कि- मैडम का तो कुछ नहीं बिगड़ना पर उनके कारनामों से मतदाताओं ने भाजपा से दुरी बना ली तो लोकसभा चुनावों में भी भाजपा को नुकसान होगा और फिर केंद्र में देश को एक भ्रष्ट सरकार ढोनी पड़ेगी| अभी भी समय है, वसुंधरा जी को अपने पारम्परिक मतदाताओं, समर्थकों की शिकायतें सून उनका निवारण करना चाहिये, साथ ही कांग्रेसी मूल में उन आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों को पार्टी से दूर रखना चाहिये जिनके कपड़ों पर पर भाजपा समर्थकों के खून के छींटे पड़े हों या खून से हाथ रंगे हो|

यदि समय रहते नरेंद्र मोदी ने वसुंधरा राजे व इनके जैसे क्षत्रपों पर नकेल नहीं कसी तो इनका कुछ बिगड़ेगा या नहीं बिगड़ेगा पर हाँ भाजपा को लोकसभा चुनावों में इनके कृत्यों की भारी कीमत चुकानी पड़ेगी|

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7टिप्पणियाँ

  1. Thats the reason I prefer to vote for Ashokji instead of Vichhundhari. Even though she is from BJP. She is most corrupt and dirty congress minded woman.

    one can easily imagine this by looking at their family background where family members are equally divided between BJP and congress to fool people.

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  2. बहुत खूब सोचने को मजबूर करनेवाला सत्य

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  3. सच में बहुत गलत व्यवहार किया है "इन्होंने"। सार्थक लेख। आभार।।

    नई कड़ियाँ : मकबूल फ़िदा हुसैन

    राष्ट्रभाषा हिंदी : विचार और विमर्श

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  4. राजनीति में ईमानदारी संभव कहाँ .. ?

    शुभकामनायें !

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