पिता को बना डाला ''डेड''
छोड़ छाड़ के सादी रोटी,
खुश रहते सब खाकर ''ब्रेड''
.
बहन हो चुकी अब ''सिस''
संस्कारों की तो पूछो ही मत,
जाने कहाँ हो रहे ''मिस''
ताई ,चाची, बुआ, मामी ,
सभी बन गई ''आंटी''
ताऊ, चाचा, फूफा, मामा, के
गले में पड़ी ''अंकल'' की घंटी.
माँ-बाप अगर टोकें, बालक बोलें होकर ''रयुड''
बच्चों को अब नहीं पसंद पुराना ''पैजामा''
वाट्ज- अप बोलें भूल गए ''रामा-रामा''.
अंग्रेज तो चले गए यहाँ से कब के,
छोड़ गए अपनी संस्कृति की ''डब्बी''
बस अब और सहा नहीं जाता ''अमित''
अच्छे भले पति को जब बोलें ''हब्बी''.......
अंग्रेज चले गए, औलाद छोड़ गए।
जवाब देंहटाएंअंग्रेज चले गए, लेकिन अपनी दुम छोड़ गए। शानदार व्यंग करती कविता।
जवाब देंहटाएंमेरी नई पोस्ट "जन्म दिवस : डॉ. जाकिर हुसैन" को भी पढ़े। धन्यवाद।
ब्लॉग पता :- gyaan-sansaar.blogspot.com
पिताजी को डैडी, माँ को मम्मी,
जवाब देंहटाएंइंग्लिश के आगे हिंदी निक्कमी
बहन पुकारा तो मुह तोप जैसा,
मैडम पुकारा चमत्कार है कैसा!
चेहरा खिलकर कमल देखता हूँ,,
RECENT POST: रिश्वत लिए वगैर...
सच में, गंध मचा दी है..
जवाब देंहटाएंअंग्रेजों के दुम पकड़ कब तक चलते रहेंगे,बहुत ही सार्थक प्रस्तुती।
जवाब देंहटाएंशानदार व्यंग,
जवाब देंहटाएंवाह उस्ताद वाह !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सभी मित्रों का
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