लेखा जोखा ज्यों का त्यों, फिर कुनबा डूबा क्यों ?

Gyan Darpan
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रामलाल ने बचपन से ही कौटिल्य की अर्थशास्त्र के बारे सुन रखा था, पर जबसे उसे पता चला कि मनमोहन सिंह जी को देश का प्रधानमंत्री इसीलिए बनाया गया क्योंकि वे एक बहुत बड़े अर्थशास्त्री है ताकि देश की अर्थव्यवस्था को सही पटरी पर ला सके|तब से ही रामलाल के मन में अर्थशास्त्र के प्रति अगाढ़ श्रद्धा पनपी और वह भी अर्थशास्त्री बनने के सपने देखने लगा| यही नहीं रामलाल जब भी किसी से मिलता उसका बातचीत का विषय ही अर्थशास्त्र होता|

उसका इस तरह अर्थशास्त्र प्रेम देखकर उसके पड़ौसी ताऊ ने उसे बहुत समझाया कि- इस अर्थशास्त्र के चक्कर में ज्यादा मत पड़ वरना जिस तरह अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री होने के बावजूद देश की अर्थव्यवस्था बिगड़ी हुई है तेरी भी बिगड़ जायेगी, पर रामलाल के मन में तो अर्थशास्त्री बनने का जूनून सवार था|

एक दिन रामलाल को अखबार में पढ़ने पर ज्ञात हुआ कि इस देश में एक ओर अर्थशास्त्री को ३५ लाख के टायलेट में बैठकर गरीबों के लिए योजना बनाने का सौभाग्य मिला हुआ है तब तो उसका अर्थशास्त्री बनने का जूनून छलकने ही लग गया और वह सब कुछ छोड़ छाड़ कर अर्थशास्त्र की मोटी मोटी किताबें पढ़ अर्थशास्त्र पढ़ने में मशगुल हो गया| यही नहीं कुछ ही महीनों में रामलाल अर्थशास्त्र की बहुत सी बारीकियां भी सीख गया| कुछ दिनों बाद तो आस-पास के गांवों, शहरों में उसके अर्थशास्त्र की धाक तक जम गयी | हालाँकि ताऊ उसे बहुत समझाता रहा कि -इस अर्थशास्त्र से दूर रहे तो ही ठीक है पर रामलाल को तो अब ताऊ बेवकूफ नजर आने लगा था|

एक दिन रामलाल को अपने पुरे कुनबे सहित किसी दूसरे गांव जाना था, पर समस्या यह थी कि रास्ते में एक नदी पड़ती थी और उसे पार करने का एकमात्र तरीका यही था कि नदी में घुस कर पैदल या तैर कर ही उसे पार किया जा सकता था| पर ऐसी हालत में कुनबे के सभी सदस्य नदी पार करने में सक्षम नहीं थे|
रामलाल ने अपने अर्थशास्त्री ज्ञान के अनुसार नदी की कई जगहों से गहराई नापी फिर अपने परिवार के सभी छोटे बड़े सदस्यों की लम्बाई नापी और औसत निकाला कि -
नदी की औसत गहराई ४.५ फीट है और कुनबे के सदस्यों की औसत लम्बाई पांच फीट| अब रामलाल की अर्थशास्त्र के आंकड़ों के हिसाब से कुनबे को नदी पार करने में कोई दिक्कत नहीं थी क्योंकि कुनबे के सदस्यों की औसत ऊँचाई नदी की गहराई से अधिक थी|अत:आंकड़ों के हिसाब से सब कुछ ठीक था|और अपने इन सभी आंकड़ों की गणना के बाद रामलाल ने अपने पुरे कुनबे को नदी में अपने पीछे उतार दिया , कुनबे के सभी बच्चे बूढ़े नदी में डूबने लगे और आखिर में सिर्फ रामलाल ही जिसकी ऊँचाई छ: फीट से अधिक थी कैसे जैसे करके नदी पार करने में कामयाब हुआ| पर अपने पुरे कुनबे को डूबा पाकर रामलाल ने फिर अपने अर्थशास्त्र रूपी आंकड़े निकाले, सारा हिसाब किताब फिर टटोला जो एकदम सही था, फिर भी रामलाल को समझ नहीं आया कि पुरा हिसाब-किताब सही होने के बाद भी कुनबा डूब कैसे गया? आखिर कहाँ गलती रह गयी ?
इतने में उसे सामने से ताऊ आता दिखाई दिया अर्थशास्त्र रामलाल ने ताऊ को पूरी घटना बताते हुए रोते हुए पुछा - "ताऊ ! "लेखा जोखा ज्यों का त्यों, फिर कुनबा डूबा क्यों ?"

ताऊ- " अरे बावली बूच ! यही बात देश के अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री देश की डूबी अर्थव्यवस्था देखकर सोच रहे होंगे ! तुझे पता है ये अर्थशास्त्र के आंकड़े सिर्फ सरकार के लिए अच्छे होते है ,हमारे लिए नहीं| इन आंकड़ों से सरकार की सेहत वैसे ही बनी रहती है जैसे भैंस के काकड़ा (बिनौले) खाने से|'
इसीलिए तो गांवों में कहावत है - "भैंस खाए काकड़ा, सरकार खाए आंकड़ा"

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14टिप्पणियाँ

  1. बहुत ही मनोरंजक ढंग से आपने यह पोस्ट प्रस्तुत की. शुभकामनाएँ. यूँ ही मजेदार पोस्ट और भी लिखते रहें...

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  2. एक दम सही, बुकस्मार्ट होना काफ़ी नहीं, ज़मीनी सच्चाई की समझ भी ज़रूरी है। चाणक्य के अर्थशास्त्र से न सही, असुर बनिपाल की मूर्ति से ही कुछ सबक सीख लें यह राजनेता!

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  3. कुनबा डूब ही गया है आज देश मे हर इंसान इस मोहिनी की माया और ममता मे उलझकर रो रहा है पर उसका रुदन सुनने वाला भी कोई नहीं है और मोहिनी को जहा नाचना है वही नाच रही है जिस मंत्री के घर साल मे 125 गेस सिलिंडर खर्च हो उसका खर्च कितना होगा आखिर वह गेस जलकर कुछ तो बना है यह सब कितनी आय का मामला है

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  4. जोंक देखने में बड़ी भोली-सी लगती है -पर एक बार चिपक जाये तो बस ... !

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  5. व्‍यावहारिकताओं और वास्‍तविकताओं से सिध्‍दान्‍तों को समन्‍वय न हो तो ऐसा ही होता है।

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  6. कौतूहल तो होना ही है कि आखिर सब कुछ सही है पर गलत क्यों है

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  7. hamare sakar me jo visist arthsastri log hai unko ye lekh ek bar jaroor padhna chahiye.

    Hamare yojna aayog or arthsastri sarakar per katach ker ta uttam lekh

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  8. बेहतरीन ...

    सही खेल दिखाया है आंकड़ों का.

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  9. सही, आंकड़े खा कर जिया नहीं जा सकता! :)

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