नागरिको के बीच भेदभाव क्यों ?

Gyan Darpan
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लेखक : कुंवरानी निशाकंवर नरूका

कहने को तो भारत में समानता का अधिकार है, लेकिन व्यवहारिक तौर पर देखे तो यहाँ नागरिकों के मध्य बड़ा अंतर किया गया है। चाहे वह भेद अल्पसंख्यकवाद के नाप पर हो या दलितोद्धार के नाम पर। निसंदेह इस समय नागरिक-नागरिक के बीच अधिकारों ,नियमो के पालन ,अवसरों की उपलब्धता में भेद ,और यहाँ तक कि निर्वाचन की प्रक्रिया तक में भेद है जो एक बहुत बड़ा जहर है। और सभी राजनैतिक दल इस जहर को जनता के बीच घोलने की अंधी प्रतियोगिता में लगे है। कांग्रेस की तो मजबूरी रही है, क्योंकि उसने तो अपने राजनीति की रोटी इसी आग पर सेंकी है। लेकिन भारतीय जनता पार्टी ने तो अपना सफ़र इन सबसे लड़ने के लिए न केवल शुरू ही किया था बल्कि इसी अधर पर अपनी मंजिल भी तय की थी। वरना कौन नहीं जानता कि 1984 के संसदीय चुनावों में उसके पास मात्र 2 लोक सभा सीट थी। उसे 2 से 200 सीटों तक केवल नागरिकों के लिए सामान नागरिकता, भारतियों की धार्मिक और सांस्कृतिक भावनाओं की रक्षा तथा अल्पसंख्यकों के प्रति तुष्टिकरण की गन्दी राजनीति के पुरजोर विरोध के कारण ही मिली थी। लेकिन भारतीय जनता पार्टी भी अपनी मंजिल पर पहुँचने के बाद अपना वायदा भूल गयी और वह कांग्रेस से भी दो कदम आगे पहुँच गयी! कांग्रेस ने आरक्षण लागु तो किया किन्तु उसे कभी निश्चित सीमा से आगे नहीं बढाने का मन नहीं बनाया था एवं उसने पदोन्नति में आरक्षण कभी नहीं रखा, जिससे कि विभागों के मुख्य कार्यकारी केवल योग्यता के आधार पर ही बन सके।

लेकिन अटल जी की सरकार ने इस कमी को भी पूरा कर दिया। अटलजी और भाजपा भेद के इस जहर में कुछ और जहर घोलने के लिए बधाई के पात्र बन गए। अटलजी जिनके वोटों की बदोलत प्रधानमंत्री बने, जिनके प्रति उन्हें जवाबदेह होना था उनके हित की बजाय उन्होंने कुछ और मत बढ़ाने के लिए पदोन्नति में आरक्षण लागू कर दिया। इस तरह का कदम उठाने के लिए वे निश्चित तौर पर भाजपा का हित देख रहे होंगे, लेकिन इस भाजपा के हित में वह भारत देश का हित भूल गए। और भाजपा का कितना हित हुआ यह तो सर्वविदित ही है| मुझे नहीं लगता कि उनके इस कदम के बाद उनकी सीटे 200 से बढ़ी हो बल्कि अटलजी और भाजपा यह भूल गए कि जो मतदाता उन्हें अभी तक मतदान करते आये है वे उनके गुलाम नहीं है, जो उनके कुचक्रों को पहचान नहीं पाएंगे। भले ही उन्होंने अंतराष्ट्रीय स्तर पर देश को एक महाशक्ति के रूप में सफलता पूर्वक पेश किया हो, इस सबके बावजूद भी उन्हें और उनकी भाजपा को उस मुकाम पर पहुंचना होगा जहाँ पर आज मांडा नरेश विश्वनाथ प्रताप सिंह जी एवं उनका जनता-दल (समाजवादी,जनता-दल(U),जनता-दल (स) राजद ) पहुँच गए है।

भ्रष्ट कांग्रेस और नेहरू खानदान इतने दिनों तक केवल इसलिए जमे रहे क्योंकि एक तो तत्कालीन पीढ़ी कांग्रेस से प्रभावित थी क्योंकि उसने चाहे दिखावे के रूप में ही सही इन कांग्रेसियों को स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लेते देखा था। दुसरे उसके पास दलित और मुसलमानों का स्थायी वोट बैंक था। और इस सबसे महत्वपूर्ण बात कि उस समय जनता में शिक्षित और जागरूक वर्ग की बहुत कमी थी और कोई अन्य विकल्प भी नहीं था। लेकिन भाजपा यदि कांग्रेस और वि.प्र.सिंह जी के फार्मूले पर चलने की कोशिश कर रही है तो उसे यह ध्यान में रखना चाहिए कि इस समय शिक्षित और जागरूक वर्ग की कमी नहीं है, और न हीं उसके पास अब उच्च वर्ग का कोई वोट बैंक है। रही बात विकल्प की जैसा विकल्प भाजपा और अटलजी ने पेश किया था ऐसा तो, मायावती, मुलायम, लालू, पवार सहित सभी पेश करने में सक्षम है। क्योंकि भाजपा 3 साथियों को छोड़ दे तो बाकि तो वही सब है जो कभी कांग्रेस के साथी बन जाते है तो कभी रह्स्त्रिय मोराचा के क्षत्रप हुआ करते थे ,जरुरत पड़ने पर किसी और के भी बन सकते है। अतः भाजपा ने जो अपना मुख्य उद्देश्य भूल कर कांग्रेस की रह पर चलना शुरू किया है वह उसके लिए निश्चित तौर पर आत्मघाती कदम है। भाजपा सामान्य जाति को शायद बेबस मानकर चल रही है, इसीलिए उसने पदोन्नति में आरक्षण लागू कर उन्हें चिढाने का सफल प्रयास किया था। शायद अटलजी की यह सोच कई मायनों में सही भी रही हो क्योंकि अन्य ऊँची जातियों की तो मै नहीं कहती क्योंकि ब्राहमण तो कांग्रेस की तरफ भी मुड सकता है और आज बहुजन समाज पार्टी जैसी जाति आधारित पार्टी के भी कदम चूम रहा है किन्तु वास्तव में क्षत्रियों के सामने तो सही मायनों में कोई विकल्प ही शेष नहीं रहा। क्योंकि भाजपा से कही ज्यादा तो अन्याय कांग्रेस ने क्षत्रियों के साथ किया है। वैश्य वर्ग को भी भाजपा ने बहुराष्ट्रीय कंपनियों को भारत में योहीं खुली छूट देकर गहरी चोट पहुंचाई है, किन्यु वह भी वापिस कांग्रेस की तरफ मुड सकते है और कदाचित मुड भी रहे है। लेकिन वाकई क्षत्रिय तो बेबस है ही, क्योंकि उनका अपना कोई राजनीतक दल नहीं है। और किसी भी दल ने उसके साथ हुए अन्याय का कभी जिक्र करना तक गवारा नहीं समझा! केवल एक बार जौनपुर में मुलायम सिंह ने कहा था कि "ठाकुरों को भारतीय सेना कि भर्ती में रियायत दी जाएगी"। यह भी कोई निस्वार्थ बात नहीं थी, उन्हें भी इस क्षेत्र और प्रदेश के राजपूतों के वोटों कि आवश्यकता है। लेकिन जिस तरह कभी वि.प्र.सिंह जी तो कभी अर्जुन सिंह जी और अभी राजा दिग्विजय सिंह,कभी राष्ट्रपति ,दलित होना चाहिए, कभी किसी प्रदेश का मुख्यमंत्री या उप मुख्यमंत्री दलित या आदिवासी होना चाहिए का राग अलापते है, ऐसा कभी किसी नेता ने यह नहीं कहा कि देश का राष्ट्रपति ,प्रधानमंत्री ,या किसी प्रदेश का मुख्यमंत्री क्षत्रिय होना चाहिए क्योंकि इस वर्ग ने निश्चित और पर हमेशा सच्चे मन से भारत के प्रति अपना पीढ़ी दर पीढ़ी खून बहाया है।

राहुल गाँधी को केवल मात्र इसलिए प्रधान मंत्री बनाये जाने कि वकालत करने वाले लोग कि उसकी 3 पीढ़ियों ने भारत पर शासन किया है अतः वह बेहतर प्रधान मंत्री हो सकता है, ऐसे चाटुकार लोग यह भूल रहे है की राहुल गाँधी की केवल ३पीढ़ियों ने जो शासन दिया वह शासन नहीं कुशासन था और उसमे बोफोर्स जैसे कितने ही छिपे हुए और उजागर दलाली के घौटाले भी सम्मिलित होंगे, केवल इस ३ पीढ़ी के कुशासन से हो यदि वह योग्य हो गया तब तो शायद हर क्षत्रिय इससे १०० गुणा ज्यादा शसन के योग्य हुआ क्योंकि क्षत्रियों की केवल मात्र ३ पीढ़ियों ने ही शासन नहीं किया है वरन तो सृष्टि की रचना से लेकर केवल 3 पीढ़ी पूर्व तक तो क्षत्रिय ही शासन करते थे और उसके कोई बोफोर्स का दाग भी नहीं है बल्कि श्री राम और महाराज हरिश्चंद्र से लेकर राजा भोज और विक्रमादित्य तक का सुशासन से इतिहास के पन्ने भरे पड़े है।


क्रमश:..............
लेखक : कुँवरानी निशा कँवर नरुका
श्री क्षत्रिय वीर ज्योति
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7टिप्पणियाँ

  1. लेकिन किया क्या जाये ? 'राजनीती' तो ऐसे ही की जा सकती है , अगर सब कुछ जनता के मुताबिक होता रहे तो फिर जो एक बार गद्दी पे बैठ गया वो उतरेगा ही नहीं , और फिर आखिर उसे अपने खुद का भी तो 'भला' करना है.

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  2. जनता जिसको चुनेगी सरकार उसी की बनेगी,...कोई बात तो है गांधी परिवार में,जो दूसरों में नही,,,,,
    लेकिन ,जातिगत मुद्दा उठाकर कुर्सी में बिठाना गलत है,,,,,

    MY RESENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: स्वागत गीत,,,,,

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  3. नेताओ की नेतागिरी ही जातिगत भेदभाव के कारण चल रही है यहॉ आकर सभी सोचने पर मजबूर हो जाते है पता नही कब ये जाति का दंस का जहर निकल पायेगा

    युनिक तकनीकी ब्‍लाग

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  4. भेद-भाव बढ़ता ही जा रहा है। अब तो धर्म आधारित कानून भी बन रहे हैं। नागरिकों के हक और कानून अलग-अलग होंगे अब।

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  5. aarakshan khatm kar diya jaaye to dalit kahin good bye kah kar kahin aur n ja milen,
    yhi dar Bjp aur congress dono ko satata hai.

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    1. दलित धर्म परिवर्तन कर ईसाई बने इसीलिए तथाकथित छद्म सेकुलर धर्म आधारित आरक्षण लागू करना चाह रहे है| मुसलमानों को आरक्षण में शामिल करने के पीछे यही मंशा है एक बार मुसलमानों को आरक्षण दे दिया जाए फिर अल्पसंख्यकों के नाम पर ईसाइयों को तो आसानी से दे ही दिया जायेगा| फिर आराम से ईसाई मिशनरी अपना काम कर ही लेंगे!!

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  6. त्यागी समाज ने हमेशा राष्ट्र चिंतन को बढ़ावा दिया। आरक्षण और तमाम अन्य मुद्दों को लेकर जहां देश में तमाम तरह के आंदोलन हुए, वहीं त्यागी, ब्राह््मण समाज ने हमेशा समाज को संगठित कर मजबूत राष्ट्र निर्माण की परिकल्पना को साकार करने की दिशा में काम किया।
    लोकतंत्र में संख्या बल गिनाना मजबूरी है लेकिन समाज व राष्ट्र के लिए यह बेहद खतरनाक है। इसलिए सभी समाजों को संगठित करते हुए देश को मजबूत बनाने की दिशा में कार्य करना चाहिए। सरकार व पार्टी में भी त्यागी समाज को उचित प्रतिनिधित्व दिए जाने के लिए वह व्यक्तिगत रूप से प्रदेश नेतृत्व में म मिलेंगे।
    वैसे तो त्यागी समाज खेती-किसानी से जुड़ा हुआ है लेकिन आज परिस्थितियां बदल रही हैं। ऐसे में त्यागी समाज को अन्य क्षेत्रों में भी आगे आना चाहिए। खासतौर से व्यापार के क्षेत्र में आगे बढ़ना चाहिए, तभी समाज सामाजिक एवं आर्थिक रूप से मजबूत हो सकेगा।

    चौ.सँजीव त्यागी -कुतुबपुर वाले
    33,गाजा वाली मुज़फ्फरनगर
    08802222211, 09457392445, 09760637861,

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