बाढ़ की जमीन किसी के पास होने पर उस परिवार के प्रति लोगों के मन में जो आदर के भाव उठते वो बचपन में हम समझ नहीं पाते थे साथ ही बाढ़ शब्द सुनकर यही अनुमान लगा लेते कि- "उनकी उस जमीन पर कभी बाढ़ आई होगी और बाढ़ के साथ खाद आदि आने से उस भूमि की उर्वरक क्षमता बढ़ने से जिसके पास बाढ़ की भूमि है उसकी अच्छी कीमत होती होगी|"
पर जब उत्सुकतावश दादाजी से इस सम्बन्ध में पूछा तो पता चला कि - "बाढ़ की भूमि उसे कहते है जो सिर कटवाने पर मिलती है| भाई बंट की जमीन तो सबको मिलती है पर बाढ़ की भूमि तो राज्य से उसे ही मिलती है जिसने वीरतापूर्वक लड़ते हुए अपने वतन के लिए अपना सिर कटवाया हो| और इसी लिए उस परिवार के प्रति हरेक के मन में आदर प्रकट होता है|"
आज जिस तरह से देश की सीमाओं की रक्षा करते हुए हमारे देश के जवान शहीद होते है तब सरकार उनके बच्चों के भरण-पोषण के लिए गैस एजेंसियां व पेट्रोल पम्प आदि आवंटित कर एक तरह से उस शहीद की शहादत का इनाम देती है|
ठीक इसी तरह राजा महाराजा भी अपने सैनिकों के बलिदान से खुश होकर और उसकी भावी पीढ़ियों के भरण-पोषण के लिए जमीन आवंटित करते थे जिसे बाढ़ की भूमि कहा जाता था| जिस परिवार के पास बाढ़ की यह भूमि होती थी उसका समाज में बहुत आदर होता था कि ये भूमि उन्हें देश के लिए त्याग करने और पुरुषार्थ के बल पर मिली है|
राजपूत राजाओं द्वारा अपने सैनिकों को आत्म बलिदान पर इस तरह भूमि आवंटित करने के बारे में राजस्थान के मूर्धन्य साहित्यकार व इतिहासकार ठाकुर सौभाग्य सिंह जी "गिरधर वंश प्रकाश" जो खंडेला रियासत का वृहद इतिहास है के "ठिकाना दांता व खुड" परिशिष्ट में लिखते है-
"ठाकुर बखतसिंह की वीरता और स्वामी भक्ति से प्रसन्न होकर (जयपुर महाराजा सवाई प्रतापसिंह जी ने) रुपगढ़ के पास ठेठ नामक ग्राम की बावन हजार बीघा भूमि व रुपगढ़ के नाका के पास लाये-ले जाए जाने वाले माल की राहदारी लेने का अधिकार भी ठिकाना खुड को दिया|"
"यह सम्मान एवं पुरस्कार ठाकुर बखतसिंह की रणक्षेत्र में वीर मृत्यु के प्रति श्रद्धा-सम्मान और ठाकुर मोतीसिंह के प्रति अनुग्रह,आत्मीयता प्रकट करने का बोधक है| ऐसे ही आदर और गौरव प्राप्त करने की भावना के कारण राजपूत योद्धा रण में अपना बलिदान करते थे| उनके अमूल्य जीवन के बदले सम्मान और कुछ भूमि खण्ड प्राप्त कर उनके उत्तराधिकारी अपने आपको धन्य मानते थे| मृतक परिवार की यही भविष्य निधि व जीवनवृति थी|"
बाढ़ना = काटना
बाढ़ लगवाना = धार लगवाना
बाढ़ना शब्द काटने आदि के लिए प्रयुक्त होता था इसीलिए युद्ध में सिर कटवाने पर इनाम स्वरूप मिलने वाली भूमि बाढ़ की भूमि कहलाई|
हमें भी बाढ़ का एक नया अर्थ पता चला । हम पुरानी जानकारियों को भूलते जा रहे हैं और उन्हें सहेजना और बताना बहुत जरूरी है।
जवाब देंहटाएंत्याग की स्मृति दिलाती है यह।
जवाब देंहटाएंरोचक व नवीनतम जानकारी |
जवाब देंहटाएंटिप्स हिंदी में
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार के चर्चा मंच पर भी की जा रही है! सूचनार्थ!
जवाब देंहटाएंवाकई आज मुझे भी बाढ़ का नया अर्थ पता चला बहुत ही बढ़िया जानकारी देती पोस्ट... आभार
जवाब देंहटाएंसमय मिले कभी ओ आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
aadarniy
जवाब देंहटाएंratan ji
ek bahut hiachhi aur naveen jankaari se avgat hui.
pahle to main shirshhak padhkar hi samajh nahi pai par jab baad me pura pdha to bahut hi achha laga.
bahut bahut hiachhi prastuti
poonam
रतन सिंह जी, ठाकुर बखत सिंह जी वीरता के बारे में आपने अलग से अपनी पोस्ट के अंत में जानकारी हाईलाईट की है | यदि आप इसे अपने पोस्ट के ठीक बीच में हाईलाईट करते जैसा कि न्यूज़ पेपर में होता है तो और भी अच्छा लगता | ये मेरे निजी विचार हैं | क्या ऐसा हो सकता है |
जवाब देंहटाएंपरम्पराओं के कितने खजाने हैं हमारे भारत के, जो कुछ भुला दिये गये, कुछ भुलाये जा रहे हैं. चिट्ठाकारी ही शायद उनकी यादों, अर्थों को सहेज सके. धन्यवाद रतन जी.
जवाब देंहटाएंसांसक्रितिक-जानकारी के लिये,सादर धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंबाढ़ और बंट की जानकारी देने के लिए धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंएक नयी और रोचक जानकारी...आभार
जवाब देंहटाएंअब तो वीरता के एवज में जिन पेट्रोल पंपों की घोषणा की जाती है,उनके आवंटन का हाल भी हम जब-तब देखते ही रहते हैं।
जवाब देंहटाएंगूढ़ अवं रहस्यमयी जानकारी! गाँव में एक भूभाग को बाढ़ के नाम से जाना जाता है, उसका असली मतलब आज पता चला ! धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंप्रेरक, रोचक जानकारी। ऐसी बातें अब इतिहास की किताबों में ही मिलती हैं।
जवाब देंहटाएंआपका पोस्ट अच्छा लगा । .मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
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