चोर की चतुराई, भाग-1: राजस्थानी कहानी

Gyan Darpan
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एक राजा के राजमहल में एक नौकर था | उसकी चोरी करने की आदत थी | राजमहल में छोटी-मोटी चीजों पर अक्सर वह अपने हाथ की सफाई दिखा ही दिया करता था | हालांकि वह खुद तो छोटा चोर था पर उसकी दिली आकांक्षा थी कि उसका बेटा नामी चोर बने | एसा चोर बने जिसकी चोरी की बाते चलें | यही सोच उसने अपने बेटे को भी चोरी की कला का प्रशिक्षण दिया कई सारे चोरी के गुर सिखाये | फिर भी उसे तसल्ली नहीं थी कि पता नहीं उसका बेटा नामी चोर बन पायेगा या नहीं,क्योंकि वह खुद भी बूढ़ा हुआ जा रहा था | बेटा बड़ा हुआ तो वह भी राजमहल में बाप के साथ काम पर जाने लगा |

एक बार वह बूढ़ा चोर बीमार पड़ गया | खाट में पड़े पड़े भी उसे चैन नहीं,एकदम उदास | बेटे ने पूछा - "पिताजी आपको क्या दुःख है ? जो आप इतने उदास है |"
बूढ़े ने कहा - " बेटे मैं तो अब मृत्यु के करीब हूँ | मेरे मन की आकांक्षा थी कि तू बहुत बड़ा चोर बने ,तेरी चोरी की बाते वर्षों तक चले | मरने से पहले एक बार तुझे कोई नामी चोरी करते देख लेता तो मेरा जीवन सफल हो जाता |"
"बस इतनी सी बात | आप दुखी ना होयें | मैं आज ही राजा के पलंग के पायों के नीचे रखी सोने की ईंटे चुराकर आपको दिखाता हूँ |"
बेटे की बात सुनते ही बूढ़े चोर की आँखों में रौशनी चमक गयी | उसे अपनी बीमारी का भान ही नहीं रहा और वह उठ खड़ा हुआ बोला-" बेटा ! मैं भी साथ चलूँगा, तुझे इतनी बड़ी चोरी करते हुए आँखों से देखूंगा |"

दोनों बाप बेटे काला कम्बल ओढ़कर राजमहल की और चल दिए | रात्री के बारह बजे, बारह बजते ही महल की घडी ने चौबीस टंकारे बजाये | उन टंकारों के साथ साथ दीवार पर कीले ठोकता हुआ चोर का बेटा उनके सहारे महल पर जा चढ़ा | पीछे पीछे उसका बाप | दोनों महल में दाखिल हो गए और राजा के शयन कक्ष के पास पहुंचे | देखा मंद रौशनी में राजा पलंग पर सो रहा है पलंग के चारों
पायों के नीचे चार सोने की ईंटे पड़ी है | पलंग के पास एक व्यक्ति बैठा राजा को कहानी सुना रहा है और राजा नींद में ऊंघता हुआ हुंकारे दे रहा है |
चोर ने ऐसी सफाई से तलवार चलाई कि कहानी कहने वाली गर्दन टक से कट गयी और चोर खुद उसकी जगह बैठ नींद में उंघते राजा को कहानी सुनाने लगा -
" एक बार एक राजा के महल में एक चोर चोरी करने घुस आया | राजा सोते हुए कहानी सुन रहा था |"
राजा ने नींद में उंघते हुए हुंकारा दिया - "हूँ |"
चोर - " चोर ने राजा के कहानीकार का सर काट दिया फिर एक पैर काटा और राजा के पलंग के पाए के नीचे दे एक ईंट निकल ली |
राजा नींद में बोला - "फिर ?"
चोर- " फिर चोर ने दूसरा पैर काटा उसे पलंग के दुसरे पाए के नीचे लगाकर दूसरी सोने की ईंट निकाल ली |"
राजा ने फिर हुंकारा देते हुए कहा- " हूँ फिर ?"
चोर- " फिर चोर ने कहानीकार का एक हाथ काटा और पलंग के तीसरे पाए के नीचे दे तीसरी सोने की ईंट निकाल ली |"
राजा - "हूँ फिर ?"
चोर - "फिर चोर ने उसका दूसरा हाथ काटा पलंग के पाए के नीचे दे चौथी सोने की ईंट भी निकाल ली |"
राजा - फिर ?"
चोर - "फिर क्या राजा ! चारों सोने की ईंटे निकाल ली और ये गया चोर | जो करना है वो कर लेना |"
ये सुनते ही राजा एकदम से नींद से उठ खड़ा हुआ और चोर के पीछे भागा | चोर तो खिड़की से बाहर निकल चूका था पर उसका बाप जैसे निकलने लगा राजा ने पीछे से उसकी टाँगे पकड़ ली | अब राजा तो बूढ़े के पैर खेंचे और बेटा उसके हाथ | इसी खेंचतान में बूढ़ा अपने बेटे से बोला -" खेंचतान मत कर मारा जायेगा | मैंने तुझे बड़ी चोरी करते हुए देख लिया है अब मेरा जीवन सफल हो चूका है सो तूं मेरा सिर काटकर लेजा ताकि हम पकड़ में ना आये |"
चोर ने यही किया अपने बाप का सिर काट ले गया | धड़ राजा के पास रह गयी | राजा को बड़ा गुस्सा आया कि मेरे पलंग के पायों के नीचे दबी सोने की ईंटे चोर निकाल ले गया तो फिर जनता की तो हो गयी सुरक्षा |

दुसरे दिन बेटे ने तो चौराहे पर पोस्टर लगा दिया -" नगर में खापरियो चोर आ चूका है और जैसी आज करी वैसी कल भी करेगा |"
राजा ने अपने प्रधान व सामंतो से सलाह की - " कि चोर की धड़ का दाहसंस्कार कर देना चाहिए और श्मशान पर पहरा बिठा देना चाहिए क्योंकि अपने आपको बहादुर समझने वाला चोर इस बूढ़े चोर के सिर का दाहसंस्कार करने अवश्य आएगा |"
नगर कोतवाल ने धड़ का दाहसंस्कार कर श्मशान पर पहरा बिठा दिया | चोर ने फकीर का भेष बनाया, बहुत सा आटा लगाकर उसका उसमे बाप का सिर दबा एक मोटी बाटी बनायीं और श्मशान की और चल दिया,श्मशान में पहुँच बाटी को श्मशान की आग में सकने के लिए दबा दिया |
पहरे वालों ने टोका तो बोला - " मैं तो एक मस्त फकीर हूँ यहाँ अपनी बाटी सकने रुक गया,श्मशान की आग पर भी रोक है क्या ?"
पहरे वालों ने सोचा फकीर है,रोटी बाटी सेक लेगा तो अपना चला जायेगा,सकने दो |
आग में सिर दबाने के थोड़ी देर में सिर का भी दाहसंस्कार हो गया | तब फकीर बना चोर पहरेदारों के पास गया बोला -" आप मेरी बाटी का ध्यान रखना मैं नमक मिर्च लेकर आता हूँ |"
एसा कह चोर तो अपने घर आ गया | पहरे वालों ने देखा न तो फकीर आया न खपरिया चोर आया तो उन्होंने श्मशान की आग को जाकर देखा उन्हें बाटी के स्थान पर चोर का सिर जलता हुआ दिखाई दिया |

सुबह राजा को खबर पहुंची कि चोर ने तो पहरेदारों को बेवकूफ बना सिर का भी दाहसंस्कार कर दिया सो राजा ने कोतवाल को बुला डांटते हुए कहा कि- "जो सिर का दाहसंस्कार करने आ सकता है तो तीसरे दिन उसकी अस्थियाँ चुनने भी जरुर आएगा सो इस बार तुम खुद श्मशान पर पहरा देना और उसे पकड़ लेना |"
चोर तो खुद दिन में महल में ही रहता था ,राजा की बात सुनने के बाद उसने भी निश्चय कर लिया कि अपने बाप की अस्थियाँ चुनने वह जरुर जायेगा |
रात का अँधेरा होते ही चोर ने स्त्री वेश धारण कर एक आटे का लोथड़ा बना,उसे कपडे में लपेट गोद में ले जैसे बच्चे को लेते है ,साथ में लड्डुओं से भरी थाली ले की श्मशान की और चल पड़ा | पहरे पर तैनात खुद कोतवाल ने उसे रोका -
"तूं कौन है ? इस वक्त श्मशान में क्या करने जा रही है ?"
औरत ने हाथ जोड़कर बोला- " माई बाप ! बड़ी मुस्किल से भैरव देवता की मेहरबानी से मेरी गोद भरी है | इससे पहले मेरे चार बच्चे चलते रहे अब इसे नहीं खोना चाहती,श्मशान में भैरव को खुश करने का एक टोटका करना है | श्मशान की राख से सात कंकर इसके सिर पर फेरने है बस |"
एसा कह औरत ने लड्डुओं से भरी थाली पहरे वालों की और करदी | सभी पहरे वाले लड्डू खाने ले लग गए तब तक स्त्री वेश में चोर ने अपने बाप की अस्थियाँ चुन ली | आटे के लोथड़े को श्मशान में रख औरत कोतवाल के पास पहुंची -
" माई बाप ! छोरे को अभी वहीँ सुलाया है मैं पूरी श्मशान भूमि की परिक्रमा कर अभी आई |" कह चोर ने तो सीधा अपने घर का रास्ता पकड़ा |

उधर जब औरत बहुत देर बाद भी नहीं लौटी तो पहरे वालों ने श्मशान में जाकर देखा,बच्चे की जगह आटे का बनाया लोथड़ा पड़ा था | कोतवाल समझ गया वो औरत के वेश में खापरिया चोर ही था | पर अब क्या हो चोर ने तो कोतवाल की नाक ही काट दी |
सुबह राजा को खबर पहुंची | राजा बहुत गुस्सा हुआ | कोतवाल तो बेकार है इसे नौकरी से निकाल दो का हुक्म हो गया | और राजा ने अब अपने ख़ास सरदारों को बुला खापरिया चोर को पकड़ने के अभियान पर लगा दिया |
साँझ पड़ते ही राजा के सभी खास सामंत सरदार हाथों में नंगी तलवारें ले " खबरदार ,ख़बरदार करते हुए नगर की गलियों में चोर को पकड़ने हेतु पहरे पर निकले | चोर ने डाकोत (ज्योतिषी) का वेश बनाया हाथ में पोथी पत्रे लिए और पहरे वाले सरदारों के घर पहुंचा,औरते अपनी गृहदशा पूछने लगी तो ज्योतिषी बने चोर अपनी पोथी पलते हुए,कुछ सोचते हुए,गणना करने का नाटक करते हुए बताया कि - " आज आप लोगों के घर पर अनिष्ट होने वाला है ,एक डाकी(प्रेत)आकर उपद्रव करेगा |"
औरतों ने उसे रोकने का उपाय पूछा |
फिर पोथी देखने का नाटक करते हुए ज्योतिषी ने बाताया कि -" अपने घरों पर पत्थर जमा करलो,हाथों में डंडे रखना और सब चोकस होकर जागते रहना | अपने घरों को अन्दर से अच्छी तरह से बंद रखना और छतों पर चढ़ कर चौकसी करना | जैसे ही आधी रात को राख से लिपटे नंग,धडंग डाकी आये तो छत से पत्थरों की वर्षा कर देना, पत्थरों की मार पड़ेगी तो डाकी अपने आप वापस भाग जायेंगे |"

सरदारों की औरतों को इस तरह समझा कर चोर वापस आया और एक ठेले पर चूल्हा रख उस पर कड़ाही चढ़ा चौराहे पर आकर बैठ बड़े निकालने लगा | पहरे वाले सरदारों ने आकर धमकाया -
"इस वक्त बड़े निकालने का हुक्म नहीं है ,भाग यहाँ से वरना तेरे ये सारे बड़े हम फैंक देंगे |"
चोर हाथ जोड़ते हुए बोला -" बापजी ! फेंकिये मत, एक बार मेरे बनाये बड़े चखिए तो सही,कितने स्वाद है |" और कहते कहते चोर ने दोने भर कर सभी सरदारों के आगे कर दिए | सरदारों ने जैसे बड़े चखे तो वे इतने स्वादिष्ट थे कि बार बार मांग कर खूब छक कर खा गए |
बड़े खाते ही सरदारों को तो नशा होने लगा और वे नशे में बेहोश होने लगे | चोर ने बड़े में भांग मिला दी थी | जैसे ही वे बेहोश हुए चोर ने एक एक कर सबके कपडे उतार लिए और उनके शरीर पर राख मलदी | और खुद अपने घर जाकर सो गया |

काफी रात गए जब सरदारों की बेहोशी टूटी और होश आया और अपनी हालत देखि तो अपने घरों की और भागने लगे |
आगे औरते डाकियों से मुकाबले को सजी हुई बैठे थी,शरीर पर राख मले अपने मर्दों को घर की तरफ आते देख औरतों ने सोचा डाकी आ गए,ज्योतिषी ने सही बताया था | और वे पत्थर वर्षा कर उन पर टूट पड़ी किसी को घर में नहीं घुसने दिया | सुबह का उजाला होते ही सरदारों को लोगों ने पहचाना अरे ये तो जोरावरसिंह जी ,अरे ये पर्वतसिंह जी, ये दलपतसिंह जी,ये फालना सिंह जी आदि आदि |
सब को अपने अपने घरों में घुसे | शर्म से किसी ने राजा को मुंह नहीं दिखाया | कौनसे मुंह से राजमहल जाकर राजा से मुजरा करे ?
पुरे नगर में खापरिये चोर की होशियारी की चर्चा होने लगी | खापरिये चोर ने तो नगर चौक पर फिर पोस्टर लगा दिया कि -" जैसी कल करी वैसी ही आज करूँगा |"

क्रमश:.............


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19टिप्पणियाँ

  1. कहानियों को ब्रेक के बाद वाली हालत में न छोड़ें। बाद में वह आनंद नहीं रह जाता।

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  2. @ Sachi ji

    बात तो आपकी सही है पर ये कहानी बहुत बड़ी है इसलिए दो भागों में लिखना पड़ रहा है

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  3. hahahaha hukum thahake nahi ruk rahe is kahani par to ... baht umda
    khamma ghani

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  4. ये चोर बचता रहेगा, चोर हो तो ऐसा, ढेर सा मजा आया, अब कल देखेंगे, कि क्या करता है, ये चोर।

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  5. बहुत रुचिकर कहानी !शुभकामनायें आपको !!

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  6. वाकई रुचिकर कहानी । वाह.
    अगली कडी की प्रतिक्षा सहित...

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  7. बड़े रोचक मोड़ पर लाकर रोका...अगला भाग जल्दी लाईये.

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  8. बड़े भाई!
    कहानी मजेदार है। अब तो लगता है राजा को ही चोर की शरण में जाना पड़ेगा।

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  9. आपने तो फंसा लिया। अब अगली कड़ी का बेसब्री से इंतजार रहेगा :)

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  10. बहुत ही लाजवाब कहानी है इन्तज़ार रहेगा अगले भाग की

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  11. मजा आ रहा था, क्रमश: ने ब्रेक लगा दिये। खैर, ये भी जरूरी ही था। अगली पोस्ट में खापरिया चोर के कारनामों का इंतज़ार रहेगा।

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  12. खपरिया चोर तो बहुत दिन बाद सुनने में आया है |

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  13. khapariya Chor ki Kahani bahut aachchi Thi magar Anta ka kuch pata nahi kyu kuch kam lagta hai
    Shiv Kumar Giri Chitrakoot

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  14. रुचिकर, अगली कड़ी पढ़ने जा रहे हैं।

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  15. हुकुम आपणा नेता तो खापरिया रा गुरु है दस बीस हजार करोङ री चोरी रो बेरो ना पङन दे ।

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