सब कह रहे है कि आज महिला दिवस है.... अच्छा ? फिर ठीक है भाई सबको महिला दिवस पर हार्दिक शुभकामनाये महिला दिवस पर कुछ ऐसी नामी गिरामी महिलाये है जिनको कई तरह के सम्मान से नवाजा जायेगा उन सभी को मेरा शत शत नमन जिन्होंने किसी ने किसी क्षेत्र में उपलब्धि हासिल की है |
बस हो गया महिला दिवस ?????????
एक दिन मेरे पुरुष मित्र से बात हुई की ये महिला दिवस क्या है ?
वो तपाक से बोले "की जब सारे दिवस मनाये जाते है,तो एक दिन महिलाओं के लिए भी रख दिया जी ताकि वो भी खुश रहे बेचारिया दिन भर घर मे बैठी रहती है |"
मैंने कुछ नहीं कहा मुस्कुराई और चली आई
फिर सोचा एक दिन क्या महाशय हर रोज औरत का होता है,सुबह सुबह घर मे पहली आवाज ही कानो मे औरत की ही पड़ती है |
उठो जी चाय बन गई है !
थोड़ी आधुनिक हे तो बोलेगी "गेटअप डियर" तब शरू होता हे उसका दिन
मेरे मोज़े कहा है ?
मम्मी मेरी चाय ?
अरे अब सुनोगी मेरा टिफिन बना कि नहीं ? हहह्हाहा
ऐसी ही कुछ शब्दों से घिर जाती है
और ये सिलसिला चलता है वापस रात को सोने तक,जब तक बच्चे और पति अपने ऑफिस और स्कूल से आते है तब तक वो जिंदगी के नाटक में न जाने कितने किरदार निभा चुकी होती है-
एक बहु, बेटी , सहेली ,बहन , पड़ोसन , भाभी ,और भी बहुत |
सास ससुर की चाय बनाते बनाते माँ को फ़ोन लगा कि पूछ लेती है कि आज मायके की रसोई में क्या बना है ?
ननद से बात करते करते बहन की भी याद आये तो उसकी भी खेरियत पूछना नहीं भूलती सब निपटा के बाज़ार मे सब्जी, दूध लाने निकल पड़ती है चाहे साड़ी में लिपट कर जाये या जींस में अकड़कर,चाहे दुपट्टा संभालती सी और फिर हजार घूरती निगाहों से बच कर खेरियत से घर पहुच जाती है |
ऐसी ही होती है औरत
अभी सुस्ताने का सोचा ही था कि लो जी आ गए बच्चे और पतिदेव ,उनको देख कर मुस्कुरा देती है |
ये तो घरेलु औरतो की बात थी
अब अगर कामकाजी औरतो की बात करे तो काम दुगना बढ जाता है | सारा घर सँभालते सँभालते अपनी साड़ी और पर्स को संभालती हुई भागती है ऑफिस की और और जब कुछ अच्छी मेहनत के बाद उसे पदोन्नति नाम की चीज मिलती है ना, तो सभी पुरुष सहकर्मी का एक ही जवाब होता हे औरत है ना भाई !!
इन सब टिप्पणियों से आहात औरत घर के बहार दहलीज पे सारी परेशानिया छोड़ कर मुस्कुराती हुई बच्चो को गले लगती है |
हर दिन तो औरत का होता है |
हाँ महिला दिवस पे जो मैंने देखा है वो ये कि कई जगह वाद विवाद परतियोगिता जरुर होती है |
जहाँ एक ग्रुप औरतो का होता हे और एक पुरषों का जहाँ औरत को हर बार ये साबित करना होता है,कि वो कम नहीं है उसका आकलन भी कम नहीं है |
जब में छोटी थी तो स्कूल में ऐसे वाद विवाद में कई बार भाग लिया करती थी और अपने सहपाठियों से जीतने की जिद के कारण कई बार उलझ जाया करती थी |
तब मुझे नहीं पता था कि औरत ने क्या मुकाम हासिल कर लिया है
पर हाँ मैं कुछ ऐसे अजीब उदाहरण देकर जितने की कोशिश करती थी |
जेसै कि :- हम औरतो के नाम पे तो सब कुछ है,धरती माता औरत है,भारत माता औरत है,सारी तिथिया औरत है,एकम,दूज तृतीया से लेकर अमावस्या ,पूर्णिमा सारे त्यौहार औरत है,दिवाली ,होली ,राखी ,गणगोर सारी नदिया ,गोदावरी ,गंगा ,जमुना ,कावेरी सब औरते है तो हम जीती बस ऐसा ही कह के मैं जितने की कोशिश करती थी |
पर अब मैं बड़ी हो गई हूँ,
अब में ऐसी वाद विवाद में भाग नहीं लेती |
क्यों साबित करू मैं खुद को उनके सामने ?
"जिनका सृजन में खुद अपनी कोख में करती हूँ "
बस हो गया महिला दिवस ?????????
एक दिन मेरे पुरुष मित्र से बात हुई की ये महिला दिवस क्या है ?
वो तपाक से बोले "की जब सारे दिवस मनाये जाते है,तो एक दिन महिलाओं के लिए भी रख दिया जी ताकि वो भी खुश रहे बेचारिया दिन भर घर मे बैठी रहती है |"
मैंने कुछ नहीं कहा मुस्कुराई और चली आई
फिर सोचा एक दिन क्या महाशय हर रोज औरत का होता है,सुबह सुबह घर मे पहली आवाज ही कानो मे औरत की ही पड़ती है |
उठो जी चाय बन गई है !
थोड़ी आधुनिक हे तो बोलेगी "गेटअप डियर" तब शरू होता हे उसका दिन
मेरे मोज़े कहा है ?
मम्मी मेरी चाय ?
अरे अब सुनोगी मेरा टिफिन बना कि नहीं ? हहह्हाहा
ऐसी ही कुछ शब्दों से घिर जाती है
और ये सिलसिला चलता है वापस रात को सोने तक,जब तक बच्चे और पति अपने ऑफिस और स्कूल से आते है तब तक वो जिंदगी के नाटक में न जाने कितने किरदार निभा चुकी होती है-
एक बहु, बेटी , सहेली ,बहन , पड़ोसन , भाभी ,और भी बहुत |
सास ससुर की चाय बनाते बनाते माँ को फ़ोन लगा कि पूछ लेती है कि आज मायके की रसोई में क्या बना है ?
ननद से बात करते करते बहन की भी याद आये तो उसकी भी खेरियत पूछना नहीं भूलती सब निपटा के बाज़ार मे सब्जी, दूध लाने निकल पड़ती है चाहे साड़ी में लिपट कर जाये या जींस में अकड़कर,चाहे दुपट्टा संभालती सी और फिर हजार घूरती निगाहों से बच कर खेरियत से घर पहुच जाती है |
ऐसी ही होती है औरत
अभी सुस्ताने का सोचा ही था कि लो जी आ गए बच्चे और पतिदेव ,उनको देख कर मुस्कुरा देती है |
ये तो घरेलु औरतो की बात थी
अब अगर कामकाजी औरतो की बात करे तो काम दुगना बढ जाता है | सारा घर सँभालते सँभालते अपनी साड़ी और पर्स को संभालती हुई भागती है ऑफिस की और और जब कुछ अच्छी मेहनत के बाद उसे पदोन्नति नाम की चीज मिलती है ना, तो सभी पुरुष सहकर्मी का एक ही जवाब होता हे औरत है ना भाई !!
इन सब टिप्पणियों से आहात औरत घर के बहार दहलीज पे सारी परेशानिया छोड़ कर मुस्कुराती हुई बच्चो को गले लगती है |
हर दिन तो औरत का होता है |
हाँ महिला दिवस पे जो मैंने देखा है वो ये कि कई जगह वाद विवाद परतियोगिता जरुर होती है |
जहाँ एक ग्रुप औरतो का होता हे और एक पुरषों का जहाँ औरत को हर बार ये साबित करना होता है,कि वो कम नहीं है उसका आकलन भी कम नहीं है |
जब में छोटी थी तो स्कूल में ऐसे वाद विवाद में कई बार भाग लिया करती थी और अपने सहपाठियों से जीतने की जिद के कारण कई बार उलझ जाया करती थी |
तब मुझे नहीं पता था कि औरत ने क्या मुकाम हासिल कर लिया है
पर हाँ मैं कुछ ऐसे अजीब उदाहरण देकर जितने की कोशिश करती थी |
जेसै कि :- हम औरतो के नाम पे तो सब कुछ है,धरती माता औरत है,भारत माता औरत है,सारी तिथिया औरत है,एकम,दूज तृतीया से लेकर अमावस्या ,पूर्णिमा सारे त्यौहार औरत है,दिवाली ,होली ,राखी ,गणगोर सारी नदिया ,गोदावरी ,गंगा ,जमुना ,कावेरी सब औरते है तो हम जीती बस ऐसा ही कह के मैं जितने की कोशिश करती थी |
पर अब मैं बड़ी हो गई हूँ,
अब में ऐसी वाद विवाद में भाग नहीं लेती |
क्यों साबित करू मैं खुद को उनके सामने ?
"जिनका सृजन में खुद अपनी कोख में करती हूँ "
"जिनका सृजन में खुद अपनी कोख में करती हूँ "
जवाब देंहटाएंनिशब्द करते शब्द हैं उषाजी...... सुंदर सार्थक आलेख ...शुभकामनायें
हकीकत बयान की है आपने | शुभकामनाएँ |
जवाब देंहटाएंआपने बहुत सुन्दर और सशक्त पोस्ट लिखी है!
जवाब देंहटाएंमहिला दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
--
केशर-क्यारी को सदा, स्नेह सुधा से सींच।
पुरुष न होता उच्च है, नारि न होती नीच।।
नारि न होती नीच, पुरुष की खान यही है।
है विडम्बना फिर भी इसका मान नहीं है।।
कह ‘मयंक’ असहाय, नारि अबला-दुखियारी।
बिना स्नेह के सूख रही यह केशर-क्यारी।।
शानदार अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंमहिला दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
सुंदर सार्थक आलेख ...शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंVery impressive post !
जवाब देंहटाएं"सास ससुर की चाय बनाते बनाते माँ को फ़ोन लगा कि पूछ लेती है कि आज मायके की रसोई में क्या बना है ?
जवाब देंहटाएंननद से बात करते करते बहन की भी याद आये तो उसकी भी खेरियत पूछना नहीं भूलती सब निपटा के बाज़ार मे सब्जी, दूध लाने निकल पड़ती है चाहे साड़ी में लिपट कर जाये या जींस में अकड़कर,चाहे दुपट्टा संभालती सी और फिर हजार घूरती निगाहों से बच कर खेरियत से घर पहुच जाती है...."
शायद पहली बार पढ़ा है आपको .... प्रभावित करने में कामयाब हैं आप ! ब्लॉग जगत में आपकी लेखनी अपना निश्चित असर छोड़ेंगी ....
शुभकामनायें !!
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंaaj ki hakiqat hai bahut khubsurat likha h
जवाब देंहटाएंनारी मनुष्य का निर्माण करती है.नारी समाज की प्रशिक्षक है और उसके लिए आवश्यक है कि सामाजिक मंच पर उसकी रचनात्मक उपस्थिति हो
जवाब देंहटाएंमहिला दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
जवाब देंहटाएं"जिनका सृजन में खुद अपनी कोख में करती हूँ " आज उन्ही के आगे हाथ पैसारे खडी है--' मेरा आत्मसम्मान मुझे दो
जवाब देंहटाएंअच्छी पोस्ट । धन्यवाद।
नारी हर रूप में पूजनीय है, और वो जग की पालन हर है,
जवाब देंहटाएंनारी बिना जग की रचना और चलना भी असंभव है,
सुबह से साम तक अगर नारी का साथ न हो तो जीवन नहीं चलेगा
बहुत बदिया लेख उषा जी,
धन्यवाद,
एक महिला असल में चाहती क्या है...
जवाब देंहटाएंजय हिंद...
8 MARCH WOMEN DAY par aapko happy women day ki badhai kabul kijiye madam
जवाब देंहटाएंaapne itna achcha likha hai ki me te ab kya likhu ish liye me to itna hi kah sakta hu ki aapka likhne koi sani nahi
bina aurat ke ish dharti par janam hona kisi bhi tarike se sambhav nahi hai
एक एक शब्द खरा सच है. शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!!
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक लेख ...जिनका स्वयं औरत ने सृजन किया उनसे क्या चाहेगी ....बहुत अच्छी बात ..
जवाब देंहटाएंbahut acchi sarthak baat....thanks for sharing....yash setpal
जवाब देंहटाएंFactfull & truthfull.Ek kadva sach jo sabko maloom hai par koi nahi maanta.badi hi sundarta se aapne shabdon mein bayaan kiya,Main toh ye maanta hun jisne aurat ka samaan nahi kiya usne zindagi mein kabhi bhi aapni maa ka samaan nahi kiya kyun ki woh bhi ek aurat hai.
जवाब देंहटाएंmade me smile, a simple and effective writing style - sahajta se apni baat kahna bhi ek art hai...really women don't have to prove themselves
जवाब देंहटाएंbahut khubsurat lekh darshya gya hai
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