सर प्रताप और जोधपुरी कोट

Gyan Darpan
11

पिछले लेखों में चर्चा जोधपुर के खानपान के उत्पादों व जोधपुर के राजा रानियों की चल रही थी लेकिन आज एक ऐसे शख्स का जिक्र कर रहा हूँ जो जोधपुर का राजा तो नही बना लेकिन उसके समय के सभी राजा उसके ही इशारों पर नाचते रहे एक ऐसे शख्स की चर्चा कर रहा हूँ जो ख़ुद तो अनपढ़ थे लेकिन उन्होंने मारवाड़ में शिक्षा की ज्योति जगाने के लिए उल्लेखनीय कार्य किया | ये जब तक रहे जोधपुर राज्य में हुक्म व प्रतिष्ठा के मामले में राजस्थान के अन्य महाराजाओं से भी आगे रहे और अपने समय की जोधपुर राजाओं की तीन पीढियों के गार्जियन भी रहे |

जी हाँ में बात कर रहा हूँ जोधपुर राजघराने के राजकुमार सर प्रताप सिंह की | सर प्रताप जोधपुर महाराजा तख्त सिंह जी के तीसरे राजकुमार थे जिनका जन्म..... को हुआ था | इन्हे ईडर की जागीर मिली थी लेकिन ये पुरे समय जोधपुर के मुसाहिबे आला ही बने रहे | सर प्रताप ने जोधपुर राज्य के विकास हेतु कई महत्वपूर्ण कार्य किए | जोधपुर रिसाला नाम की एक मिलिट्री इन्फेंट्री गठन भी इन्होने ही किया था जिसमे एक सिपाही से लेकर अफसर तक के लिए खादी पहनना अनिवार्य था |सर प्रताप ने मारवाड़ राज्य की कानून व्यवस्था सुधारने के लिए उल्लेखनीय योगदान दिया जोधपुर में कचहरी परिसर का निर्माण भी इन्ही के मार्ग दर्शन में ही हुआ था | बाल विवाह व मृत्यु भोज जेसी सामाजिक कुरूतियों के वे सख्त खिलाफ थे, दहेज़ प्रथा का भी उन्होंने विरोध किया इसीलिए ख़ुद उन्होंने साधारण कन्याओं से विवाह किए और महाराजा उम्मेद सिंह जी का विवाह भी साधारण कन्या से करवाया | ख़ुद अनपढ़ रहते हुए भी शिक्षा के लिए मारवाड़ राज्य की ज्यादातर स्कूल उन्ही की देन है जिनमे जोधपुर की प्रसिद्ध चौपासनी स्कूल एक है | प्रथम विश्व युद्ध में अद्वितीय वीरता दिखने के बदले अंग्रेज सरकार ने इन्हे सर का खिताब दिया | ४ सितम्बर १९२२ को ७६ वर्ष की आयु में उनका निधन हो हुआ | बहु प्रतिभाओ के धनी सर प्रताप एक अच्छे प्रशासक व समाज सुधारक थे |

जोधपुरी कोट

सन् १८८७ से फैशन की दुनियां में कितनी ही फैशन आई और गई, इतने समय में परिधानों की कितनी डिजाईन आई और गई लेकिन जोधपुरी बंद गले का कोट एक ऐसा परिधान है जो आज भी लोगो के दिलो दिमाग पर छाया हुआ है | जोधपुरी कोट भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से लेकर राजीव गाँधी और मनमोहन सिंह तक सभी की पसंद रहा है इतने सालों से हर वर्ग के लोगों की पसंद रहा यह परिधान भी सर प्रताप की ही देन है |

बात सन् १८८७ की है जब सर प्रताप महारानी विक्टोरिया के हीरक जयंती समारोह में भाग लेने लन्दन गए थे | जिस जहाज में उनके कपड़े थे वह जहाज लापता हो गया था | सर प्रताप ने इस परिस्थिति में भी विदेशी वस्त्र नही पहने बल्कि एक सफ़ेद कपड़े का थान ख़रीदा और अपने हाथो अपने पहनने हेतु परिधान की कटिंग की | लेकिन लन्दन के दर्जियों ने उनके बताये अनुसार सिलने में असमर्थता जाहिर की | बहुत खोजबीन के बाद एक दर्जी इसे सिलने हेतु सहमत हुआ |

और उसने सर प्रताप द्वारा कटिंग किए वह परिधान सिले जो जोधपुरी कोट व बिरजस थे | सर प्रताप के इस जोधपुरी कोट और दुसरे परिधान बिरजस को लोगों ने इतना पसंद किया कि फैशन की दुनियां में तहलका मच गया और वो दर्जी जोधपुरी कोट सिलते-सिलते मालामाल हो गया | सन् १८८७ से लेकर आज तक इस जोधपुरी कोट ने फैशन की दुनियां में अपना स्थान बना रखा है और हर वर्ग के लोगों की पसंद बना हुआ है |

एक टिप्पणी भेजें

11टिप्पणियाँ

  1. सर प्रताप को आपने श्रद्धा से याद किया.
    महात्मा गांधी हस्पताल के पास सर प्रताप स्कूल से गुजरना कईयों के लिए रोज़ का क्रिया कलाप है.आपका ये लेख तब याद आएगा.

    जवाब देंहटाएं
  2. आप सादर आमंत्रित हैं, आनन्द बक्षी की गीत जीवनी का दूसरा भाग पढ़ें और अपनी राय दें!
    दूसरा भाग | पहला भाग

    जवाब देंहटाएं
  3. सर प्रताप सिंह जी के बारे में इतनी अच्छी जानकारी दी. आभार. हमें तो मालूम ही नहीं था की ऐसा भी कोई रहा है.

    जवाब देंहटाएं
  4. जोधपुरी कोट.. क्या बात है..बहुत सुन्दर तरीके से लिखा आपने...

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत लाजवाब और नायाब जानकारी दी आपने. सर प्रताप के बारे में आपने जो कुछ बताया ..वो पहले बार सुनी है. आपको बहुत धन्यवाद.

    रामराम.

    जवाब देंहटाएं
  6. सर प्रताप सिंह जी के बारे में इतनी अच्छी जानकारी दी . आभार !

    जवाब देंहटाएं
  7. जोधपुरी कोट सर प्रताप सिंह जी के विकास के कामों के बारे में इतनी अच्छी जानकारी दी उसके लिये आपका धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  8. स्वदेश के प्रति मान था उन्हें. 'सर' नाम के आगे लगाना अटपटा लग रहा है.

    जवाब देंहटाएं
  9. जोधपुरी कोट और बिरजिस को आज सात समुद्र पार ख्याति मिल गई है। यह हमारे लिए गौरव की बात है। जोधपुरी कोट को भारत की संसद में राष्ट्रीय पोशाक का दर्जा मिला हुआ है। मरुधरा के सपूत सर प्रताप सिंह जी को कोटि-कोटि प्रणाम।

    जवाब देंहटाएं
  10. अच्छी जानकारी दी आपने धन्यवाद। एक बात में विरोधाभास दिख रहा है, एक और वे स्वदेशी के समर्थक थे, देशप्रेमी थे दूसरी ओर अंग्रेजों की तरफ से लड़े।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. चूँकि वे खुद शासक थे, अंग्रेजों के साथ उनकी संधियाँ थी, वे अपने आपको अंग्रेजों का गुलाम नहीं मित्र समझते थे , देशप्रेमी थे पर उनका देश जोधपुर राज्य था जिसके ऊपर उनका खुद राज्य था और वे सिर्फ जोधपुर की जनता के भले तक सिमित थे|

      हटाएं
एक टिप्पणी भेजें