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मिर्ची बड़ा व प्याज की कचोरी जोधपुर के हर कोने में मिल जाती है दो पीस ब्रेड के साथ एक मिर्ची बड़ा या प्याज की एक कचोरी सुबह नाश्ते में खा ली जाए तो दोपहर तक भूख की छुट्टी हो जाती है इसी तरह एक मावे की कचोरी खाना भी पेट पर भारी पड़ जाता है | नई सड़क पर जनता स्वीट होम और पोकर पर दिन भर मिर्ची बड़ा खाने वालों की भीड़ देख कर ही मिर्ची बड़े के प्रति लोगों की रूचि का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है | हालाँकि मिर्ची बड़े जोधपुर में हर जगह मिल जाते है लेकिन घंटाघर में मिश्रीलाल की होटल और सरदारपुरा की बी रोड पर चौधरी द्वारा बनाये मिर्ची बडो के स्वाद और गुणवत्ता के मामले अन्य दुकानदार कही नही ठहरते लेकिन वहां तक हर आदमी की पहुँच नही हो सकती और चौधरी तो बनाता भी लिमिटेड मात्रा में है | वैसे नाश्ते में जोधपुर में आधुनिक फास्ट फ़ूड के अलावा दूध फीणी,दूध जलेबी,गाजर का हलवा,गुन्द्पाक, मिर्ची बड़ा,प्याज व मावे की कचोरी सहित कई उत्पाद उपलब्ध है जिनका अपना ही अलग मजेदार स्वाद है अन्य कई जगह के अलावा घंटाघर स्थित मिश्रीलाल की होटल पर ये सभी उत्पाद साफ सुथरे व अच्छी गुणवत्ता के साथ मिल जाते है | रात का खाना खाने के बाद गर्म-गर्म दूध पीने की इच्छा किसकी नही होती इसलिए जोधपुर में सोजती गेट,नई सड़क व घंटाघर आदि कई जगह शाम होते ही दूध गर्म करने की कढाहियाँ भट्टी पर चढ़ जाती है जहाँ केसर डला बढ़िया गर्म दूध मिल जाता है सोजती गेट पर दूध मन्दिर और दूध भंडार पर तो बारह महीने हर वक्त दूध मिलता है ये दोनों दूध के अलावा और कोई उत्पाद नही रखते |
जोधपुर की माखनियाँ लस्सी के स्वाद का तो कोई जबाब ही नही , १९९० में जोधपुर प्रवास का दौरान पहली बार इस खाने वाली लस्सी से परिचय हुआ था ,बासनी औद्योगिक क्षेत्र में छगन लाल टेक्सटाइल्स मिल्स में हमारे लिए बासनी आठ दुकान स्थित शर्मा जी की होटल से माखनियाँ लस्सी मंगवाई गई, लस्सी का गिलास का साथ चम्मच देखकर बड़ा ताज्जुब हुआ लेकिन लेकिन जैसे लस्सी का गिलास हाथ में आया तब पता चला कि इस लस्सी को पीने की बजाय खाया जाता है यह तो एक तरह से आइसक्रीम खाने जैसा अनुभव रहा |
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काजरी का सेव बेर
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केन्द्रीय मरू रुक्ष अनुसंधान केन्द्र ( काजरी) द्वारा विकसित व उत्पादित बेर खाने का मजा ही कुछ और है इन बड़े-बड़े बेरों में छोटी सी गुठली ही निकलती है इन्हे खाते सेव खाने जेसा अहसास होता है अतः लोग इन्हे सेव बेर कहते है | स्वाद का अलावा इनकी खास बात यह है कि इन बेरों में कभी भी कीड़ा नही निकलता ,इनके गलने पर भी इनमे कीड़ा नही पड़ता जबकि अन्य क्षेत्रों व अन्य किस्म का बेरों में अक्सर कीड़े निकलते रहते है | ये बेर जनवरी,फरवरी,मार्च का महीनो में जोधपुर में हर जगह ठेलों पर उपलब्ध रहते है लेकिन यदि आपको काजरी केम्पस में उत्पादित बेरों का ही स्वाद चखना है तो आपको काजरी का द्वार पर ही जाना पड़ेगा जहाँ बाहर काजरी का ठेकेदार ठेला लगाकर ये बेर व अन्य उत्पाद बेचता है |इन बेरों का अलावा काजरी कृषि वैज्ञानिको ने कई सारे कृषि उत्पाद विकसित किए जिनमे आंवले की किस्मे,खजूर, अनार की किस्मों का अलावा जोजोबा (होहोबा) नामक झाड़ी भी विकसित की है यह झाड़ी इजराईल में ज्यादा पाई जाती है जिसके बीजों से निकला तेल कई सोंदर्य प्रसाधक उत्पादों व हवाई जहाज आदि में प्रयुक्त होने वाले लुब्रिकेट जैसे उत्पादों का उत्पादन में काम आता है यह तेल जोजबा का बीजों का अलावा व्हेल मछली को मार कर प्राप्त होता है | रेगिस्तान में कम पानी में होने वाली इस झाड़ी की पैदावार बढाकर विदेशी मुद्रा की कमाई का साथ-साथ कई साडी व्हेल मछलियाँ का जीवन भी बचाया जा सकता है काजरी का वैज्ञानिक इस जोजोबा झाड़ी और बेरों की झाडियों को उगाने में किसानो की मदद का साथ उन्हें प्रोत्साहित करने में जुटे है |अभी हाल ही में काजरी का एक वैज्ञानिक ने ग्वार पाठे की जैली बनाने में सफलता हासिल की है यह जैली ब्रेड का साथ लगाकर खाई जा सकेगी जो पेट का रोगों को ठीक करने में सहायक सिद्ध होगी अभी इस उत्पाद को पेटेंट करने की कार्यवाही चल रही है |
बहुत ही महत्व्पूर्ण एवं बहुमूल्य जानकारी. वैसे तो जोधपुर के ख़ान पॅयन की बात से ही चंचल मन लालायित हो गया. कज़री बेर का एक पौधा मिल जाए तो मज़ा आ जाए. अगला कार्यक्रम तो अब सीधे जोधपुर का ही बनेगा साथ में बीकानेर. आभार.
जवाब देंहटाएंयहाँ जबलपुर में एक जोधपुर रेस्टॉरेन्ट है..क्या मिर्ची बड़ा और मूंग दाल कचौड़ी बनाता है भाई...आपके यहाँ तो ओरिजनल बनती होगी..उसका तो सोच ही नहीं सकते जब तक आप हमें बुलवा कर न खिलवाओ. :)
जवाब देंहटाएंमुझे पक्का पता था..जोधपुर जाओ और बिना मिर्ची बडा़ खा कर आ जाओ ऐसा असंभव है..
जवाब देंहटाएंआपने जोधपुर की याद दिला दी.. काजरी से मैनें अपना केरियर शुरु किया था १९९८ में खुब बेर खाये.. आपने फिर से ्वो स्वाद जुबां पर ला दिया..
्वैसे बुंदी के लड्डु (रबड़ी के लड्डु) भी बहुत स्वादिष्ट होते है.. बहुत युनिक है...
आपका ्शुक्रिया आपने जोधपुर के बारे में इतने विस्तार से लिखा..
एक और बात जो जोधपुर में चलती है कि जो मिर्ची बड़े से मिर्ची हटा कर खाए वो जोधपुर वाला नहीं है.
जवाब देंहटाएंइब क्यों जबान ललचा रहे हैं हमारी? यहां मिलता भी नही और अब तो जोधपुर घूमने का इस साल मे प्रोग्राम बनाना ही पडॆगा. :)
जवाब देंहटाएंरामराम.
जी ललचाए ! रहा न जाए ! क्या करूँ हाए !
जवाब देंहटाएंवाह आज तो आप मुँह में पानी ही ले आए... वैसे जोधपुर में हमारे बड़े भाई साहब की मिठाई की दुकान भी है...
जवाब देंहटाएंबढ़िया जानकारी दी है आपने जोधपुर के खान पान के बारे में ....कभी गए तो ध्यान रहेगा
जवाब देंहटाएंकाफी समय पहले(1990में) एक बार जोधपुर जाना हुआ था । आपकी इस रसदार पोस्ट ने पुराने समय कि याद को ताजा कर दिया है । लगता है इस बार तो आपका वजन अवश्य ही बढ गया होगा ।
जवाब देंहटाएंपर जनाब हमने तो सुना है जोधपुर वाले ऐसे ही कहते हैं '' खानो बिजो खान आया हो जान खाओ ला'' वैसे मेरे मामले में ऐसा नहीं है खूब जमकर खाया है और खाएंगे, जंवाई जो ठहरे जोधपुर के।
जवाब देंहटाएंआपने तो इस दुकान की फ़ोटो भी लगाकर ग़ज़ब ही ढा दिया. क्या याद दिलाई है... मुंह में पानी आ गया. आपको जान कर हैरानी होगी कि मैं मिर्ची वड़े से परहेज़ करता था पर एक बार चस्का लगा तो पता चला कि गर इसे ब्रेड के साथ खाएं तो इसका कोई सानी नहीं.
जवाब देंहटाएंरतनसिंग जी
जवाब देंहटाएंजोधपुर के मिर्ची बड़े हकीकत में ही बड़े होते हैं।
दो खाते ही पेट फ़ुल हो जाता है।
एक बार डेचु में मैने मुंग के बड़े भी खाए थे।
बस स्टैंड पर-गरमा गरम निकलवा कर ।
आनंद आ गया।
राम राम
Jodhpur ki chizo k bare me jankari k liye dhanyawad. Jankari pakar accha laga
जवाब देंहटाएंsahi hai jodhpur jaisa swad kahan PRIYA RESTAURANTV KA DOSA BHI LAJAWAB HAI
जवाब देंहटाएंSAHI HAI JODHPUR JAISA SWAD KAHAN PRIYA RESTAURANT KA DOSA BHI LAJAWAB HAI
जवाब देंहटाएंमिर्ची बड़े तो आज भी याद आ जाए तो मुँह में पानी भर आए :)
जवाब देंहटाएंमेरी जन्मभूमि है जोधपुर
जवाब देंहटाएंकॉलेज के बाद मुम्बई आ गया लेकिन कॉलेज के दिनों में जितने मिर्ची बड़े खाये मैंने दोस्तों के साथ वो शायद किसी रिकॉर्ड से कम नहीं होगा ।