
मैं बड़ा बेटा घर का धीरज ,छोटा भाई हे मेरा नीरज
नाम उसका नीरज हे पर सब उसे होनहार कहते हे
मुझे सब नालायक ,जो किसी लायक नहीं हे
ये नाम मुझे मेरे बापू ने दिया था
सच ही था में किसी काम का नहीं था
बस दिन भर खेलता था कपडे गंदे करता था
और बस दिन भर खाता था बापू की मार
मै बस नाम का बड़ा रह गया ,
होनहार नालायक से बड़ा हो गया
बड़ा साहब बनके शहर पहुच गया
मैं भी अब नहीं खेलता
खेतो मे जाता हूँ ,गाय चराता हूँ
शाम को बीवी और माँ का हाथ बटाता हूँ
फिर बापू के भजन सुन सो जाता हूँ
हर महीने होनहार का मनी आर्डर आता है
होली दिवाली खुद भी आता है
उसके ठाठ बाठ देख के घरवाली कहती है
अपना भी बेटा देवर जी सा बन जाये
बस इनके जेसा पढ़ लिख जाये
समय का परिंदा उडान भर रहा था
अब होनहार का मनी आर्डर नहीं आता
होली दिवाली भी अब वो वही मनाता है
घर बस गया है उसका ये उसके किसी दोस्त ने बताया
मुझे ना सही माँ बापू को भी उसने नहीं बुलाया
पांच दिन हो गए है उसे टेलीफ़ोन पे खबर देके
कि घर आजा बापू के होनहार, बापू का अंतिम समय चलता है
वो नहीं आ सकता है ,बड़े दफ्तरों मे छूट्टी कहा मिलता है
बापू चले गए ,
जाते जाते कहा था मुझ से बस इतना ही
कि नालायक तुझे कभी दुआ नहीं दी मैने
आज भी मेरी बद दुआ है तुझे
कि तेरा बेटा कभी होनहार ना बने
ये ही तो अन्तर है।
जवाब देंहटाएंनजरिये का फेर है!
जवाब देंहटाएंआखिरी वक्त में सबसे बड़ा आशीर्वाद... बापू का श्राप फलेगा तो आशीर्वाद बन जाएगा.... बहुत सुंदर रचना...
जवाब देंहटाएंयही विडम्बना है।
जवाब देंहटाएंएक दम सच्चाई को छु जाने वाला लेख।
जवाब देंहटाएंलेख वाले पिता जी के लिए तो नालायक की लायक है। और अंत मे पहचान भी लिया।
यह कटु सत्य कि जो लोग सफलता की सीढियाँ चढ़ जाते है उनमे से ज्यादातर अक्सर अपने मां-बाप को भूल जाते है आपने समाज की दुखती रग को अभिव्यक्त किया है |
जवाब देंहटाएंबेहतरीन उम्दा रचना |
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह आज भी शानदार व उम्दा रचना |
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंदिल को छूने वाली रचना है | ये आज के समाज का आइना है |
जवाब देंहटाएंusha ji khamma ghani sa or aapne bahut aacha likha,
जवाब देंहटाएंsatik un logo par jo samaj se thoda sa aage kya chale jate h. apni sari jimewari bhul jate h. un ko karara jabab. sayad apki ye poem agar kisi k dil par chot mare to sayad kranti si sueuwat ho. par bahut kathin
thanks sultan singh jasrasar
ultimate poem but there are difference b/w honhar or sawarthi :)
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