इस किले के ठाकुर ने देश को ये दे दिया था दान में

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खण्डेला के राजा वरसिंहदेवजी के द्वितीय पुत्र अमरसिंह जी दांता ठिकाने के संस्थापक थे| अमरसिंह जी को आजीविका के लिए नौ गांवों का लोसल ठिकाना मिला था| वि.सं. 1703 में अमरसिंह जी अपनी जागीर के एक गांव राजपुरा में रहने के लिए खंडेला से आये और राजपुरा में एक टीले पर गढ़ की नींव भी लगाईं, लेकिन वि.सं. 1709 में वे लोसल चले आये और माघ शुक्ल पंचमी मंगलवार को लोसल में गढ़ की नींव लगाईं और वहां अपना गढ़ बनवाया|

अमरसिंह जी की बहन का विवाह जोधपुर के महाराजा जसवंत सिंह जी के साथ हुआ था| अत: अमरसिंह जी अपने बहनोई महाराजा जसवंतसिंहजी के साथ शाही सेवा में चले और जोधपुर महाराजा के साथ कई रक्त रंजित युद्धों में भाग लेकर अपनी वीरता प्रदर्शित की| उनकी वीरता की ख्याति से प्रभावित होकर जोधपुर महाराजा ने वि.सं. 1726 के भादवा में अमरसिंहजी को शेखावाटी प्रदेश के परगना में अपनी मनसब की जागीर के क्षेत्र में चार गांवों के साथ दांता क़स्बा दे दिया|

अमरसिंह के बाद उनके पुत्र रतनसिंह जी दांता के स्वामी बने जिन्होंने  वि.सं. 1754 में हरिपुरा गांव के मध्य औरंगजेब के सेनापति व खंडेला के राजा केसरीसिंह जी के मध्य हुए युद्ध में मुसलमान सेना के खिलाफ युद्ध लड़ा और अपनी तलवार के जौहर दिखाते हुए वीरता का प्रदर्शन किया| वि.सं. 1756 में आप लोसल से दांता आ गए और दांता को अपनी राजधानी बनाया| यहाँ आपने श्रीनृसिंह व हनुमान के मंदिर बनवाये और वि.सं. 1795 में पहाड़ पर गढ़ का निर्माण करवाया|

ठाकुर अमरसिंहजी सहित उनकी 16 पीढ़ियों ने देश की आजादी तक दांता ठिकाने पर शासन किया| आजादी के समय ठाकुर मदनसिंह जी दांता ठिकाने के स्वामी व शासक थे| राजस्थान राजऋषि के नाम से मशहूर ठाकुर मदनसिंह जी ने जहाँ आजादी से पहले यहाँ शासन किया वहीं आजादी के बाद दांता-रामगढ विधानसभा क्षेत्र से तीन बार विधानसभा में प्रतिनिधत्व किया| यहाँ के विभिन्न शासकों ने विभिन्न युद्धों में भाग लेकर अपनी तलवार के जौहर दिखलाये हैं | वि. सं. 1815 में ठाकुर भवानीसिंहजी ने मराठा मल्हारराव से युद्ध किया था, दांता के गढ़ के दरवाजे पर लगे तीन गोलों के निशान अब विद्यमान है | भवानीसिंह जी ने वि.सं. 1824 में माउंडा मंडोली युद्ध में भी अपने शौर्य का प्रदर्शन किया था| आपको बता दें यह युद्ध जयपुर महाराजा व भरतपुर के जाट महाराजा जवाहरसिंह के मध्य हुआ था, जिसमें महाराजा जवाहरसिंह को अपनी जान बचाकर भागना पड़ा था| वि.सं. 1837 खाटूश्यामजी में मुग़ल सेनापति मुर्तजा अली भडेच ने जब आक्रमण किया तब उसके मुकाबले के लिए शेखावाटी के अन्य सरदारों के साथ दांता ठाकुर अमानी सिंह जी ने भी भाग लिया| इस युद्ध में शेखावत वीरों के सामने मुगल सेना भाग खड़ी हुई थी|

ठिकाने के आखिरी ठाकुर मदनसिंह जी प्रदेश के लोकप्रिय जननायक रहे हैं| आप रामराज्य परिषद व जनसंघ के प्रदेश अध्यक्ष रहे हैं और राजस्थान में राजपूतों द्वारा किये आज तक के सबसे बड़े जेल भरो आन्दोलन जिसे भूस्वामी आन्दोलन के नाम जाता है का नेतृत्व किया था| सन 1952 में आपने सीकर लोकसभा से कांग्रेस की रीढ़ माने जाने वाले कमलनयन बजाज को आपने ही गृह जिले हराकर रामराज्य परिषद के नन्दलाल शास्त्री को विजयी करवा दिया था|

लोकप्रिय नेता की ख्याति प्राप्त कर चुके राजऋषि की उपाधि से विभूषित ठाकुर मदनसिंहजी साहसी व निडर व्यक्ति थे| जयपुर की सेना सवाईमान गार्ड्स में कप्तान रहे ठाकुर साहब ने एक बार दूधवा गांव में गोलियां चलाने वाले डाकुओं का अकेले ही मुकाबला कर उन्हें जिन्दा पकड़ लिया था| यही नहीं क्षेत्र में आपकी छवि एक दानवीर ठाकुर की भी रही है| आपने अपनी ज्यादातर चल व अचल सम्पत्ति जरुरतमन्दो को दान कर दी थी| चीन युद्ध में जब रक्षा मंत्री मेनन ने जयपुर के रामनिवास बाग़ की सभा में सहायता की गुहार की तक ठाकुर मदनसिंह जी दांता ने एक लाख रूपये, एक सोने की मूंठ वाली तलवार व अपने बड़े पुत्र ओमेन्द्रसिंह को देश की रक्षा के लिए दान कर दिया था|

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