पूरे भारतवर्ष में जनश्रुति प्रचलित है कि सम्राट पृथ्वीराज के खिलाफ युद्ध के लिए गौरी को कन्नौज नरेश जयचंद गहड़वाल ने बुलाया था| लेकिन हम जब भी कोई इतिहास पढ़ते है तो पाते है कि गौरी को जयचंद द्वारा बुलाने की बात कहीं भी लिखी नहीं पाते| इसी मुद्दे पर इतिहासकार डा. गणेशप्रसाद बरनवाल अपनी पुस्तक “दिल्ली सल्तनत : तराइन से पानीपत” के पृष्ठ संख्या चार तराइन के प्रथम युद्ध के बारे में लिखते हैं- “इस युद्ध में पृथ्वीराज का सहयोग करने लिए गहड़वाल नरेश जयचंद को छोड़कर अनेक निकटवर्ती छोटे-बड़े सामंत अपनी सेना के साथ तराइन में पहुंचे थे| परन्तु इसका अभिप्राय नहीं कि जयचंद ने मुहम्मद गौरी को चौहान राज्य पर आक्रमण करने के लिए निमंत्रण देकर बुलाया था अथवा उसने देश द्रोहिता करते हुए मुहम्मद गौरी को कोई सहयोग किया था| अपने राजस्थान के इतिहास में कर्नल टॉड ने इस प्रकरण को पर्याप्त रूप से स्पष्ट किया है| पृथ्वीराज व जयचंद की परस्पर शत्रुता थी| इस राष्ट्रीय विपत्ति के समय जयचंद ने सहयोग का हाथ नहीं बढाया यह भी ठीक है परन्तु अपने इस शत्रु के विनाश के लिए जयचंद ने गौरी को निमंत्रित किया इसका कोई भी समकालीन मुस्लिम इतिहासकार उल्लेख नहीं करता- जब कि यह उल्लेखनीय बात होती|”
डा. बरनवाल आगे लिखते हैं – “यह दरबारी कवि चंद के मन की गढ़न है जो अंग्रेज इतिहासकारों, रेवर्टी और यहाँ तक कि टॉड के द्वारा भी स्वीकार कर लिया गया| समकालीन मुस्लिम इतिहासकारों के साक्ष्य के अभाव में गहड़वाल नरेश द्वारा गौरी सुल्तान को पृथ्वीराज के विनाश के लिए आमंत्रित करने की बहुश्रुत चर्चा तथ्य से परे है| जयचंद तथा पृथ्वीराज में शत्रुता थी- परस्पर एक दूसरे को विनिष्ट करने की इच्छा भी थी| इस सूत्र को पकड़कर चंदरबरदाई ने यदि अनुमानित निष्कर्ष निकाला हो कि जयचंद ने गद्दारी की थी तो कोई असहज बात नहीं| मेजर रेवर्टी ने भी संभवतः आँख बंद करके इस अनुमानित निष्कर्ष की पुष्टि कर दी है| जो भी, अभी अनिर्णय के लिए ठोस साक्ष्य की प्रतीक्षा है| इसलिए जयचंद का आमन्त्रण नहीं अपितु पृथ्वीराज पर मुहम्मद गौरी का द्वितीय आक्रमण पराजय की प्रतिक्रिया का स्वाभाविक प्रतिफल है, यही तथ्यसंगत है|”
इस तरह एक और इतिहासकार ने ज्ञान दर्पण.कॉम के इस अभिमत की पुष्टि की है कि कन्नौज नरेश महाराज जयचंद गद्दार नहीं, देशभक्त व धर्मपरायण राजा थे|