राजस्थान के राजाओं में एक से ज्यादा शादियाँ करने, बिना शादी के पत्नियां रखने व दास-दासियाँ रखने की प्रथा सदियों तक चलती रही| इस कुप्रथा के परिणाम भी बड़े गंभीर और जहरीले निकले| इन बिना शादी किये रखी जाने वाली पत्नियों, उनसे पैदा हुई संतानों व दास दासियों ने भी राजस्थान के रजवाडों की राजनीति में कई महत्त्वपूर्ण व घृणित कार्य भी किये| इस तरह कुप्रथा का सबसे ज्यादा जहर बिना शादी के रखी पत्नियों व उनकी संतानों द्वारा खड़ी की गई समस्याओं के रूप में फैला| दरअसल राजाओं द्वारा विजातीय महिला को बिना शादी के रखैल बनाकर रखना, जिन्हें पासवान, पड़दायत आदि की पदवियां देकर रख लिया जाता था, द्वारा जन्मी संतानों को राजपूत समाज ने कभी स्वीकार नहीं किया और इस तरह जन्मीं संतान जिसका पिता राजपूत होता था, समाज से अपने लिए राजपूत जैसा सम्मान पाने की अभिलाषा रखती थी| चूँकि इस तरह की महिलाएं राजाओं को अपने प्रेम-रूप जाल में फंसा कर अथाह धन एकत्र करने के साथ अपनी संतानों के लिए ऊँचे पद तक हासिल कर लेती थी, लेकिन राजपूत समाज उन्हें दोयम दर्जे का समझता और व्यवहार करता था| अत: दोयम दर्जे के व्यवहार से इस तरह की संताने अपना अपमान समझती और अन्दर अन्दर वे राजपूत समाज के अन्य लोगों के प्रति मन में कटुता का भाव रखती| इस तरह का भाव समय आने पर राजपूत समाज का अहित करता था और आजतक करता रहा है| पिछले दिनों बिहार के रहने वाले एक चौधरी साहब जो सऊदी अरब में प्रोफ़ेसर है, मेरे मित्र के मित्र है, से मिलना हुआ| बातों बातों में उन्होंने भी दास-दासियों, पासवान उपपत्नियों से जन्में लोगों की चर्चा करते हुए उन्हें राजपूत समाज के लिए जहर की संज्ञा दी|
मेवाड़ के महाराणा क्षेत्रसिंह (खेता, खेतसी) ने भी एक खाती जाति की महिला को अपनी पासवान रखा था, उससे जन्मीं संतान चाचा और मेरा ने भी इसी कुंठा में चितौड़ के महाराणा मोकल की हत्या कर जघन्य अपराध तक कर दिया था| इतिहास में यह घटना इस तरह दर्ज है -
"वि.स. 1490 की घटना है| अहमदाबाद का सुलतान अहमदशाह (प्रथम) ने इस्लाम के प्रसार और सेवा के नाम पर हिन्दू मंदिरों को तोड़ने, छोटे हिन्दू राजाओं को अपने अधीन करने का ख़्वाब देख, सैनिक तैयारी शुरू की और डूंगरपुर राज्य से होता हुआ जीलवाड़े की तरफ बढ़ा| उस काल मेवाड़ ही इस देश में सबसे बड़ी हिन्दू रियासत थी अत: हिन्दू मंदिर ध्वस्त करने की सूचना पर मेवाड़ के महाराणा चुप कैसे रह सकते थे| फिर मेवाड़ राज्य से हमेशा गुजरात के मुसलमान शासकों के साथ युद्ध चलते रहे है| गुजरात का कोई बादशाह ताकतवर होता तो जाहिर है मेवाड़ की सुरक्षा पर आंच अवश्य आती| अत: जब मेवाड़ के महाराणा मोकल को अहमदशाह के अभियान की सूचना मिली तो उन्होंने भी उसे रोकने के लिए युद्धार्थ प्रस्थान किया| इसी अभियान में वे एक दिन जंगल से गुजर रहे थे कि उन्होंने उत्सुकतावश साथ चल रहे एक हाडा सरदार से एक पेड़ की ओर अंगुली से ईशारा कर उस पेड़ का नाम पूछा|
संयोग से उस वक्त महाराणा मोकल के साथ महाराणा खेता (क्षेत्रसिंह) की पासवान (एक तरह की रखैल) जो जाति से एक खातिन थी, के पुत्र चाचा और मेरा भी साथ थे| चूँकि वे खातिन के पेट से जन्में थे और खातियों को पेड़ व लकड़ी का अच्छा ज्ञान होता है अत: महाराणा द्वारा पेड़ का नाम पूछना उनको अपने ऊपर व्यंग्य लगा| हालाँकि महाराणा मोकल का उन पर व्यंग्य करने का कोई भाव नहीं था, लेकिन चाचा-मेरा को लगा कि महाराणा उन्हें खातिन के पेट से जन्में होने के चलते दोयम दर्जे के होने का अहसास करा रहे है, इसलिये उन पर इस तरह का व्यंग्य बाण छोड़ा गया| और उन्होंने महाराणा का वध करने का निश्चय कर लिया| इस कार्य में सहयोग के लिए उन्होंने महपा (महिपाल) परमार आदि कई सामंतों को साथ कर लिया| जिन्हें साथ लेकर वे महाराणा के डेरे पर गये और आक्रमण कर महाराणा के सुरक्षाकर्मियों सहित महाराणा का भी वध कर दिया|"
इस तरह महाराणा खेता के पासवान पुत्र चाचा व मेरा ने अपने आपको दोयम दर्जे का राजपूत समझे जाने की कुंठा में मेवाड़ के महाराणा की हत्या कर राष्ट्रद्रोह का जघन्य कार्य कर डाला| उन्होंने अपने उस मातृभूमि से गद्दारी कर डाली जिस मातृभूमि पर वे पैदा हुये, पले, बढे और देश के शासन कार्यों में भागीदारी भी हासिल की| उनकी इस राष्ट्रद्रोह रूपी करतूत के कारण उन्हें वर्षों जंगलों में भटकना पड़ा और रणमल राठौड़ के हाथों सजा भुगतनी पड़ी|
मेवाड़ के महाराणा क्षेत्रसिंह (खेता, खेतसी) ने भी एक खाती जाति की महिला को अपनी पासवान रखा था, उससे जन्मीं संतान चाचा और मेरा ने भी इसी कुंठा में चितौड़ के महाराणा मोकल की हत्या कर जघन्य अपराध तक कर दिया था| इतिहास में यह घटना इस तरह दर्ज है -
"वि.स. 1490 की घटना है| अहमदाबाद का सुलतान अहमदशाह (प्रथम) ने इस्लाम के प्रसार और सेवा के नाम पर हिन्दू मंदिरों को तोड़ने, छोटे हिन्दू राजाओं को अपने अधीन करने का ख़्वाब देख, सैनिक तैयारी शुरू की और डूंगरपुर राज्य से होता हुआ जीलवाड़े की तरफ बढ़ा| उस काल मेवाड़ ही इस देश में सबसे बड़ी हिन्दू रियासत थी अत: हिन्दू मंदिर ध्वस्त करने की सूचना पर मेवाड़ के महाराणा चुप कैसे रह सकते थे| फिर मेवाड़ राज्य से हमेशा गुजरात के मुसलमान शासकों के साथ युद्ध चलते रहे है| गुजरात का कोई बादशाह ताकतवर होता तो जाहिर है मेवाड़ की सुरक्षा पर आंच अवश्य आती| अत: जब मेवाड़ के महाराणा मोकल को अहमदशाह के अभियान की सूचना मिली तो उन्होंने भी उसे रोकने के लिए युद्धार्थ प्रस्थान किया| इसी अभियान में वे एक दिन जंगल से गुजर रहे थे कि उन्होंने उत्सुकतावश साथ चल रहे एक हाडा सरदार से एक पेड़ की ओर अंगुली से ईशारा कर उस पेड़ का नाम पूछा|
संयोग से उस वक्त महाराणा मोकल के साथ महाराणा खेता (क्षेत्रसिंह) की पासवान (एक तरह की रखैल) जो जाति से एक खातिन थी, के पुत्र चाचा और मेरा भी साथ थे| चूँकि वे खातिन के पेट से जन्में थे और खातियों को पेड़ व लकड़ी का अच्छा ज्ञान होता है अत: महाराणा द्वारा पेड़ का नाम पूछना उनको अपने ऊपर व्यंग्य लगा| हालाँकि महाराणा मोकल का उन पर व्यंग्य करने का कोई भाव नहीं था, लेकिन चाचा-मेरा को लगा कि महाराणा उन्हें खातिन के पेट से जन्में होने के चलते दोयम दर्जे के होने का अहसास करा रहे है, इसलिये उन पर इस तरह का व्यंग्य बाण छोड़ा गया| और उन्होंने महाराणा का वध करने का निश्चय कर लिया| इस कार्य में सहयोग के लिए उन्होंने महपा (महिपाल) परमार आदि कई सामंतों को साथ कर लिया| जिन्हें साथ लेकर वे महाराणा के डेरे पर गये और आक्रमण कर महाराणा के सुरक्षाकर्मियों सहित महाराणा का भी वध कर दिया|"
इस तरह महाराणा खेता के पासवान पुत्र चाचा व मेरा ने अपने आपको दोयम दर्जे का राजपूत समझे जाने की कुंठा में मेवाड़ के महाराणा की हत्या कर राष्ट्रद्रोह का जघन्य कार्य कर डाला| उन्होंने अपने उस मातृभूमि से गद्दारी कर डाली जिस मातृभूमि पर वे पैदा हुये, पले, बढे और देश के शासन कार्यों में भागीदारी भी हासिल की| उनकी इस राष्ट्रद्रोह रूपी करतूत के कारण उन्हें वर्षों जंगलों में भटकना पड़ा और रणमल राठौड़ के हाथों सजा भुगतनी पड़ी|