कुंजर दे जस कारने, लाखां लाख पसाव|
भगवान पतित पावन राम के गुणकीर्तन में अयोधा का विशिष्ट स्थान है| पावस ऋतू में अयोध्या और सरयू की सुषमा निराली ही लगती है| लेखिका द्वारा अवधपुरी का वर्षाकालीन वर्णन देखिए-
अवधपुरी घुमडी घटा छाय|
दादुर और पपीहा बोलत दामिनी दमक दुराय||
भूमि निकुंज सघन तरुवर में लता रही लिपटाय|
कहत प्रताप कुंवरि हरि ऊपर बार बार बलिहार||
प्रताप कुंवारी ने जीवन-जगत के प्रति अपनी उदासनीता अनेक पदों में व्यक्त की है| मानव-शरीर का अंतिम लक्ष्य हरि भजन कर मुक्ति पाना है| उनके एक होरी पद में ऐसा ही कुछ वर्णन है|
जैसाकि पूर्व में कह चुकें है प्रताप कुंवरी विदुषी और सुविचार संपन्न नारी थी| होरी पद में उन्होंने अचेतन मानव को इस प्रकार चेताया है|
होरी खेलण री रितु भारी|
अरे ! अब चेत अनारी||
इरान गुलाल अबीर प्रेम भरि, प्रीत तणी पिचकारी|
खेल इन संग रचारी||
सुलटो खेल सकल जग खेले, उलटो खेल खेलारी|
भरम दूर कर गंवारी||
ध्रुव प्रहलाद विभिखन खेले, मीरां करमां नारी|
प्रताप कुंवरी के ग्रंथों और पदों का संकलन उनकी सगी भतीजी और महाराजा प्रतापसिंह,ईडर की प्रथम महाराणी रत्न्कुमारी ने प्रकाशित किया था|
प्रताप कुंवरी का देहांत सत्तर वर्ष की आयु में माघ १२ वि.स.1943 में जोधपुर में हुआ था| महाराणी इंद्रकुंवरी जो महाराजा मानसिंह को ही ब्याही थी और प्रताप कुंवरी की छोटी बहन थी, ने प्रताप कुंवरी की स्मृति में पंच-कुण्ड (जोधपुर) स्थित राजकीय श्मशान स्थल पर वि.स.1957 में एक छत्री बनायीं थी|
भटियानी रत्न कुंवरी महाराजा मानसिंह की महाराणी प्रताप कुंवरी के भाई ठाकुर लक्ष्मणसिंह जाखाणा की पुत्री थी| जब यह केवल पांच वर्ष की थी तब ही महाराजा तख्तसिंह के पुत्र और फिर ईडर के महाराजा सर प्रतापसिंह के साथ विवाह हो गया था| प्रतापसिंह की उस वक्त आयु नौ वर्ष की थी| यह भी अपनी भुआ की तरह सीताराम की उपासिका थी|रत्न कुंवरी के भजन, पद और हरजस रात्री जागरण पर गाये जाते है| इनकी भाषा सरल और भाव सर्वग्राही है| नीचे की पंक्तियों में दो पद देखिए-
मेरो मन मोहयो रंगीले राम
आठो पहर हृदय विच मेरे आन कियो निजधाम|
प्रभु-दर्शन की आकांक्षी रत्नकुंवरि की दर्शनाकांक्षा का एक पद पढ़िए-
रघुवर म्हांरा रे म्हांकू दरस दिखाजारे|
लाग रही तेरी केते दिन की मीठे बैन सुना जा रे|
बाघेलीजी रीवां राज्य के महाराजा विश्वनाथ प्रसाद के भ्राता बलभद्रसिंह की पुत्री और जोधपुर के महाराजा तख़्तसिंह को स.1861 में ब्याही थी| इनका जन्म १९४६ वि.में हुआ था| राजस्थान की अधिकांश शिक्षित राजपुत्रियों और महारानियों की तरह यह भी कृष्णोपासक महाराणी थी| रणछोड़ कुंवरि की कव्यबंध कोई स्वतंत्र कृति तो उपलब्ध नहीं है परन्तु भागवत धर्म, कृष्ण चरित्र और भक्ति के पर्याप्त कवित्त, पद तथा छंद प्राप्त है| यहाँ “गोविन्द लाल” के भव कष्टोंद्धार की प्रार्थना का एक उदाहरण दिया जा रहा है---
गोविन्द लाल तुम हमारे,
मै सरन हूँ तिहारे, तुम, काल कष्ट टारे||
उनके दृष्ट गोविन्द थे| अपने सर्जित छंदों, कवित्तों में इन्होंने बार-बार गोविन्द का स्मरण किया है-
आभा तो निर्मल होय सूरज किरण उगे से,
पीतल तो उज्जवल रेती के मांजे से,
भवन में विक्षेप होय दुनियां की संगति से,
मन को जगावो अरु गोविन्द के सरन आबो,
कवयित्री विष्णुप्रसाद कुंवरि भी बाघेला वंश की कन्या थी| यह रीवां के महाराज रघुराजसिंह की राजकुमारी और जोधपुर के महाराजा जसवंतसिंह के लघु-भ्राता महाराज किशोरसिंह की रानी थी| इनका जन्म वि.स.१९०३ तथा विवाह तिथि १८२१ विक्रमाब्द है| यह रामानुज सम्प्रदाय की अनुयायी थी और कृष्ण इनके इष्ट देव थे| विष्णुप्रसाद कुंवरि सर्जित निम्नलिखित ग्रन्थ मिलते है-
अवध विलास, कृष्ण विलास और राधारास विलास| काव्य में विष्णुकुमारी अपना अभिधान रखती थी| इनकी भाषा बड़ी सरल और वर्णन सरस होते है| पद लालित्य अभिरास है| पाबस कालीन वृन्दावन की छवि का दृश्य एक पद में इस प्रकार वर्णित है-
ब्रन्दावन पावस छायो|
कोयल कूक सुमन कोमल के कालिंदी कल कूल सुहायो|
यमुना तट पर रंग-रास का एक अन्य प्रसंग भी देखिए-
जमना तट रंग की कीच बही|
फूलन हार गुंथे सब सजनी, युगल मदन आनंद लही|
यह जामनगर के महाराजा (जाम) वीभाजी की पुत्री थी और जोधपुर के महाराजा तख्तसिंह से इनका परिणय हुआ था| इनका जन्म १७९१ वि. में हुआ था|
अन्य राजपूत नारियों की भांति इनकी कविता भी भक्ति से परिपूर्ण ही है| यह श्रीकृष्ण के चतुर्भुज रूप की उपासिका थी| रचयित्री की अधिकतर कविताएँ चतुर्भुज के वर्णन से ही सम्बन्ध है| इन्होंने विनय और स्तुतिपरक हरजस तथा भजनों का सर्जन किया है| अपने भजनों में यह जाम सुता, जाम दुलारी तथा प्रतापकौंर की छाप लगाती थी|
प्रताप कुंवरि की रचनाओं का एक संकलन “प्रताप कुंवरि पद रत्नावली” शीर्षक से प्रकाशित है| यहाँ रचना के दो उदाहरण प्रस्तुत है—
भुज मन नन्द नन्दन गिरधारी|
मीरां करमा कुबरी सबरी तारी गौतम नारि|
एक अन्य पद भी देखिए-
प्रीतम प्यारो चतुरभुज वारो रे|
जाम सुता को है सुखकारो, सांचो स्याम हमारो रे||
इनके कवित्त भी बड़े सरस और सरल है|
कवित्त की एक पंक्ति उद्धृत है-
नोट- साहित्य साधक शाही राजपूत नारियों के परिचय की इस श्रंखला में अगले लेख में कुछ और साहित्य साधक शाही नारियों और राजाओं की रखैलों, पासवानों व पड़दयातों का परिचय दिया जायेगा|
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रचनाओं को साझा करने के लिये आभार,,,,रतनसिंह जी,,,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST : समय की पुकार है,
भक्तिमय सरस वर्णन..
जवाब देंहटाएंऐसे ही आप हमें भारत की विदुषी नारियों से परिचय करवाते रहे ताकि हम प्राचीन गौरवशाली भारत को ठीक से जान सके ।
जवाब देंहटाएंआज हमे जरूरत है ऐसे दुर्लभ साहित्य को सहेज के रखने की।
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