बादशाही जहाँगीर के समय उनका पुत्र खुर्रम बागी हो गया था। 29 मार्च 1623 को बिलोचपुर में बादशाही सेना से उसकी भिडंत हुई। उस समय आमेर राजा जयसिंह प्रथम बादशाही सेना में थे। खुर्रम वहां से हारकर दक्षिण की तरफ भागा। और आमेर पहुंचा। उस समय आमेर की रक्षार्थ जयसिंह ने टोडरमल जी को छोड़ रखा था। टोडरमल जी ने खुर्रम का मुकाबला किया,और आमेर से भगा दिया, उस समय किसी कवि ने कहा:-
उण दिन टोडरमल, उपर किधो आमेरा"
कार देश कादीयो, किलम मानसौर मचायो "
उस समय उनकी वीरता निम्न सौरठे से भी ज्ञात होती है।
"हे दुसर हिंदाल एड न कर आमेर सूं।
गढ़ में टोडरमल ,भलो लिन्या भोजवत।।
खुर्रम यहाँ से दक्षिण की तरफ भाग गया। वहां वह विद्रोही बना घूमता रहा। 16अक्ट.1624 को फिर शाही सेना का मुकाबला उससे हुआ। उस समय भी टोडरमल जयसिंह के साथ थे। और वहां खुर्रम से युद्ध किया। उस समय भी युद्ध संबंधी निम्न दोहा कहा जाता है।
जयसिंह रा दल ऊजला,थां सू टोडर माल।।
टोडरमल अपने समय के दातार शासकों में से एक थे। उनकी दातारी की बातें आज तक जनमानस के ह्रदय-पटल पर अंकित है। सुना जाता है की प्रतिदिन उनके द्वारा संचालित रसोवड़े में कितने ही भूखे व्यक्ति भोजन प्राप्त करते थे। इस की स्मृति में निम्न दोहे आज भी सुने जाते है।
टोडर माल रसोवडे,पतल पूज्या पान।।
जीमे टोडर माल जठे,सो सामंता थंड।
चुलू करे जिण चिखले,मीन रहे घर मंड।।
(एक पथिक दुसरे पथिक से पूछता है यह वन वीरान क्यों है? दूसरा पथिक उत्तर देता है,क्योंकि इस वन के सब पते टोडरमल के रसोवडे में जाकर पतल बन गए है। जहाँ टोडरमल भोजन करते है। और जहाँ वे चुल्लू करते है,वहां इतना कीचड़ होता है कि मछली अपना घर बनाकर रहती है।)
टोडरमल कि दातारी की बातें जब उदयपुर (राणाजी का) के महाराणा जगतसिंह के पास पहुंची,तो जगत सिंह को ऐसा लगा कि इस उदयपुर की दातारी नीचे खिसक रही है। अतः उन्होंने टोडरमल की दातारी कि परीक्षा लेने के लिए अपने चारण हरिदास सिंधायच को भेजा| चारण के उदयपुर सीमा में प्रवेश करते ही उनको पालकी में बैठाया,और कहारों के साथ टोडरमल स्वयं भी पालकी में लग गए। उदयपुर पहुँचने पर उनका भारी स्वागत किया गया। बारहठ जी ने जब गद्दी पर टोडरमल के रूप में उसी व्यक्ति को बैठे देखा,जिसने उनकी पालकी में कन्धा दिया था। इससे बारहठ जी बड़े प्रभावित हुए। और जाते वक्त बारहठ जी को क्या दिया इसका तो पता नहीं पर चारण हरिदास उनकी दातारी पर बड़ा प्रसन्न हुआ, और निम्न दोहा कहा।
एकज राणो जगत सी,दूजो टोडर मल्ल।
टोडरमल जी पुत्रो में सबसे प्रतापी जुन्झार सिंह थे। जिन्होंने पृथक गुढा गाँव बसाया। टोडरमल जी कि मृत्यु वि.1723 या उसके बाद मानी जानी चाहिए|उनकी स्मृति में "किरोड़ी गांव" में छतरी बनी हुई है। टोडरमल ने अपने रनिवास के लिए उदयपुर में एक सुंदर महल का निर्माण करवाया। जो आज उनके वंशजो द्वारा उपयुक्त देखरेख के अभाव में खँडहर में तब्दील हो चूका है। किरोड़ी गांव में टोडरमल जी ने वि.1670 में गिरधारी जी का मंदिर बनवाया था।
सन्दर्भ-"शेखावत और उनका समय"(रघुनाथ सिंह)
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बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (07-10-2012) के चर्चा मंच पर भी की गई है!
सूचनार्थ!
अनुकरणीय व्यक्तित्व..
जवाब देंहटाएंउम्दा पोस्ट,,,,
जवाब देंहटाएंRECECNT POST: हम देख न सके,,,