कुछ काम भी तो नहीं करती !

pagdandi
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कुछ जरुरी काम हैं , बहुत जरुरी काम हैं
ना जाने कितने समारोह छोड़ दिए थे मैंने
यही कह कहकर कि काम है
बहनों की शादी हो या भाइयो की सगाई
बस एक दिन पहले ही पहुंच पाती हूँ
कैसे पहुँचती काम ही जो इतना होता हैं
कई बार मन करता हैं , सखियों से घंटो बतियाऊ
पर नहीं हो पाता ...मन मारना पड़ता है
क्योंकि काम बहुत होता हैं
याद भी नहीं न जाने कितनी गर्मियां निकल गई
और न जाने कितने इतवार पर मुझे छुट्टी नहीं मिली
कैसे मिलती ? काम ही जो इतना होता हैं
अब कैसे समझाऊ की कितना काम होता हैं
काम ही कर रही थी ना मैं
जब उस घनघनाती घंटी ने बताया कि
एक दुर्घटना ने मुझ से सुहागन होने का हक छीन लिया हैं
सफ़ेद चादर में लिपटे अपने पिता को देख सहम ना जाये
बच्चो को खुद से लिपेटे खड़ी थी मैं
जाने अनजाने कुछ चहेरो की भीड़ में से तभी
किसी ने फुसफुसाया
क्या करेगी बेचारी अब ,कैसे चलेगा इसका संसार
''कुछ काम भी तो नहीं करती !''
केसर क्यारी....उषा राठौड़

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14टिप्पणियाँ

  1. वर्तमान समय में हर एक को अपने पैरों पर खड़े होने होना बहुत जरुरी है |

    बहुत बढ़िया रचना|

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  2. गहरी अभिव्यक्ति, कर्म को संवेदना का मर्म तो मिले।

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  3. लेकिन घर के जों कार्य हैं वे क्या किसी अन्य कार्य से कम हैं. लेकिन फिर भी इस स्थिति में महिला की हालत बहुत खराब हो जाती है.

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  4. जीने के लिए मरने की तैयारी रखना जरूरी होता है।

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  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की जयंती पर उनको शत शत नमन!

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  6. संदेशम्यी पोस्ट...समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है

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  7. बहोत अच्छा लगा आपका ब्लॉग पढकर ।

    हिंदी दुनिया

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  8. वक़्त की हर शै गुलाम वक्त का हर शै पे राज

    बहुत खुबसूरत रचना

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  9. मर्मस्पर्शी.. अभिवयक्ति .......

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  10. जीवन के कटु सच को दर्शाती मार्मिक रचना
    गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें

    vikram7: कैसा,यह गणतंत्र हमारा.........

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  11. purana dard ko kalam se khurch diya sa.
    very nice
    usha didi bahut khub

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  12. लोग ऐसे ही होते है।कुछ तो लोग कहेंगे,ये सोचने लगे तो जिना मरना दोनो मुश्कील हो जायेगा। कुछ भी हो अपने लिये 1घंटा तो निकाल लेना चाहीए ,चाहे कुछ भी हो जाय।

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  13. ....औरत का आत्मनिर्भर होना.......इस विषय पर बहुत गहराई से अपनी लेखनी चलायी है आपने....

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