अक्ल की पौशाक

Gyan Darpan
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एक राजा के एक दीवान था जो बहुत बुद्धिमान और राज्य कार्य में प्रवीण था | राजा व प्रजा दोनों ही उस दीवान से बहुत खुश थे,पर होनी को कौन टाल सकता है एक दिन वे दीवानजी अचानक स्वर्ग सिधार गए | उनका बेटा उम्र में छोटा था सो राजा ने उनके परिवार के ही एक दूर के भाई को दीवान बना दिया |
अब उनका जो परिजन दीवान बना उसे दीवान बनने का घमंड हो गया,वो रोज कचहरी जाते समय पूर्व दीवान के घर के सामने खड़ा हो खंखारा करता,मूंछ पर ताव देता फिर कचहरी जाता | वो पूर्व दीवान की विधवा को ये जताना चाहता कि अब दीवानी उसके पास आ गयी है | पूर्व दीवान की विधवा को उसकी ये हरकत बहुत बुरी लगती थी और वह नए दीवान की इस हरकत से बहुत दुखी होती थी,दुःख के मारे वह सही ढंग से खाना भी नहीं खा पाती परिणाम स्वरूप वह दुबली हो गयी व बीमार रहने लगी तब तक उसका बेटा भी थोडा बड़ा हो गया |

एक दिन विधवा के बेटे ने अपनी मां से उसकी बीमारी का कारण पूछा साथ ही उसे किसी वैध से दवा लेने को चलने हेतु कहा | पर मां ने दवा के लिए मना कर दिया और दुसरे दिन जब नए दीवान ने कचहरी जाते समय उसके घर के आगे खड़े होकर फिर वही हरकत की तब मां ने उसकी हरकत दिखाते हुए कहा -
"बेटा मेरी बीमारी का कारण ये है, तुम्हारे घर की प्रधानी इसके पास चली गयी है जो वापस तुम्हारे पास आये तब ही मेरा रोग कट सकता है |"

बेटा भी अपने बाप की तरह चतुर था वह अपनी मां के मन की बात तुरंत समझ गया | दुसरे दिन वह राजा के दरबार में गया जहाँ राजा के सभी कामदार,फोजदार,विद्वान,कवि,साहित्यकार आदि सभी बैठे थे | राजनीती,साहित्य आदि पर ज्ञान की बाते चल रही थी तभी पूर्व दीवान के बेटे ने वहां उपस्थित सभी विद्वानों से प्रश्न किया -
"यहं बड़े बड़े विद्वान विराजे है मेरे मन में एक प्रश्न है उसका समाधान आप विद्वान लोग ही कर सकते है | दुनिया के सभी बड़े बड़े कार्य लोग अक्ल के प्रयोग से करते है,चारों और अक्ल की बाते होती है पर ये अक्ल रहती कहाँ है ? कृपया यह बताये |"
सारे दरबारी लड़के की बात सुनकर चुप हो गए,किसी को भी इसका उत्तर नहीं मिल रहा था,वहां बैठे एक व्यक्ति ने दीवानजी से इस प्रश्न का उत्तर देने का आग्रह किया | दीवानजी को मानों सांप सूंघ गया पर मना कैसे कर सकते थे बोले -"इस प्रश्न का जबाब कल दूंगा |"

राजा ने सभा बर्खास्त कर अगले दिन के लिए स्थगित कर दी |
दीवानजी सीधे पूर्व दीवान के घर गए और लड़के से गुस्से में बोले -" तुझे क्या जरुरत थी दरबार में जाने की और फिर ऐसा प्रश्न पूछने की ? तुने मुझे खाम-खां जंजाल में फंसा दिया |"
लड़का बोला- " काकाजी इसमें इतने गुस्से वाली क्या बात ? कल दरबार में जाकर बता देना अक्ल जबान पर रहती है | जब कोई व्यक्ति बात करता है तो उसकी बात से ही उसकी अक्ल का पता चल जाता है |"
दुसरे दिन दरबार में हाजिर हो दीवान ने यही जबाब दे दिया सभी विद्वानों ने उनकी समझदारी की बहुत तारीफ़ की तभी पूर्व प्रधान के बेटे ने एक प्रश्न और दाग दिया -
" मेरे इस प्रश्न का तो उतर मिल गया अब दूसरा प्रश्न यह है कि अक्ल होटों पर रहती है पर खाती क्या है ?"
सभी ने फिर दीवानजी की और देखा | दीवानजी ने इसका उत्तर देने के लिए भी दुसरे दिन का समय माँगा |

दुसरे दिन सुबह ही फिर दीवानजी पूर्व दीवान के घर जा धमके बोले -" तूं क्यों मेरे पीछे पड़ा है ? अब बता तेरे इस प्रश्न का उत्तर ,आज मैं तेरे प्रश्न का उत्तर नहीं दे पाया तो मेरी दरबार में क्या इज्जत रहेगी ?
लड़का बोला- " काकाजी अक्ल गम खाती है |
दीवान जी नियत समय पर दरबार में पहुंचे और भरे दरबार में कल के प्रश्न का उत्तर दिया -"अक्ल गम खाती है |"
राजा सहित सभी दरबारी व विद्वान दीवानजी के जबाब पर वाह वाह बोल उठे | राजा ने खुश होकर दीवान को ईनाम में सिरोपाव (पगड़ी) बख्शी |
तभी लड़के ने तीसरा प्रश्न दाग दिया बोला- " अक्ल जबान पर रहती है, गम खाती है पर पहनती क्या है ? अक्ल की पौशाक क्या है ?
सभा में फिर सन्नाटा छा गया | फिर सभी की निगाहें दीवानजी की और | एक व्यक्ति फिर बोला -
"प्रश्न तो वाकई मुश्किल है पर हमारे दीवानजी भी कौनसे कम है इसका उत्तर भी दीवानजी ही देंगे |"

खीजे हुए दीवानजी फिर विधवा के बेटे के पास जा धमके बोले -" बता बेटे इस प्रश्न का उत्तर भी तूं ही बता |"
लड़का बोला -" काकाजी चिंता क्यों करते हो इस प्रश्न का जबाब मैं खुद ही दरबार में दे दूंगा आपकी फजीहत नहीं होने दूंगा आप तो बस मुझे वो सिरोपाव (पगड़ी) दे दीजिये जो राजा ने आज आपको दरबार में बख्शी थी |"
दीवानजी अब करे तो क्या करे | बेचारे दीवानजी ने वह सिरोपाव उस लड़के को दे दिया |
दुसरे दिन फिर दरबार लगा दीवानजी नियत समय में जाकर दरबार में बैठ गए तभी उन्होंने देखा पूर्व दीवान का बेटा वही सिरोपाव (पगड़ी) पहन कर दरबार में आ रहा है जो कल राजा ने उन्हें बख्शा था |
दरबारियों ने दीवानजी से कल के प्रश्न का उत्तर पूछा | दीवानजी इधर उधर झाँकने लगे तभी पूर्व दीवान का बेटा उठ खड़ा हुआ और बोला -
"महाराज का बख्शा हुआ सिरोपाव अक्ल पहनती है इसी अक्ल की बदोलत आज ये सिरोपाव पहने हुए मैं राजा के दरबार में खड़ा हूँ |"
तब राजा ने पूछा -" इस प्रकरण के पीछे बात क्या है ?"
तब पूर्व प्रधान के बेटे ने राजा को दीवानजी की सारी हरकतों के बारे में पुरे विवरण से जानकारी दी | राजा पूर्व प्रधान के बेटे की अक्ल व बुद्धिमानी से बड़ा खुश हुआ कि बेटा वाकई बाप जैसा ही लायक है | राजा ने उसी वक्त उन दीवानजी से प्रधानगी लेकर पूर्व प्रधान के बेटे को दे दी |

बेटे की बुद्धिमानी से पूर्व प्रधान की विधवा के रोग एक ही दिन में जाते रहे और प्रधानगी भी उसके घर वापस आ गयी |


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14टिप्पणियाँ

  1. बहुत रोचक कथा रही...आखिर अक्ल ही काम आई...

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  2. बढिया कथा, देने के लिये आभार, कहानी हकीकत में थी, या काल्पनिक,

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  3. वाह... बेहतरीन कहानी... कहानी में कई रूपक एक साथ चलते हैं तो पढ़ने का आनन्‍द बढ़ जाता है।

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  4. जब कोई व्यक्ति बात करता है तो उसकी बात से ही उसकी अक्ल का पता चल जाता है |"
    हा हा हा बहुत पसंद आई ये कहानी.
    हम ब्लॉग.बज़ लिखते हैं बोलते नही बस लिखते है मगर....रचनाओं के साथ हमारे व्यक्तित्त्व का मूल्यांकन भी हो जाता है. सबके सामने आ जाती है हमारी.....अक्ल.

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  5. बिना अक्ल क ऊंट उभाणों घूमे | ये कहावत शायद अक्ल के महत्त्व को बताने के लिए ही कही गयी है | बहुत सुंदर कहानी बताई है |

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  6. वाह ………………सुन्दर सीख देती कहानी बहुत अच्छी लगी।

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  7. अकल से ही हम बुगडे काम बना सकते हे, बहुत सुंदर कहानी.

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  8. बुगडे= बिगडे हुये ...गलती सुधारे

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  9. बहुत अच्छी स्टोरी है इसे से सीख लेनी चाहिए

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