बत्तीस लक्षणी औरत

Gyan Darpan
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उदयपुर के महाराणा राजसिंह जी एक बार रूपनगढ़ पधारे हुए थे | एक दिन सुबह सुबह ही उन्होंने महल के झरोखे में खड़े होकर मूंछों पर हाथ फेरते हुए जोर से खंखारा किया | महल के ठीक नीचे एक महाजन का घर था उस महाजन की विधवा बाल पुत्र वधु अपने घर के आँगन में बैठी बर्तन मांज रही थी | महाराणा का खंखारा सुन उसने महल के झरोखे की और देखा तो वहां महाराणा राजसिंह जी खड़े सामने की दिशा में देखते हुए अपनी मूंछों पर ताव दे रहे थे | ये दृश्य देख वह सन्न रह गयी और उसने तुरंत एक नौकर को बुला एक पत्र हाथ में दिया कि -"जा तुरंत जाकर मालपुरा गांव में मेरे पिता को यह पत्र दे आ |"


मालपुरा रूपनगढ़ से बीस पच्चीस कोस दूर जयपुर रियासत का धनि सेठ साहूकारों का बड़ा गांव था | महाजन पुत्र वधु ने अपने पत्र में अपने पिता को लिख भेजा था कि -" मेवाड़ महाराणा गांव को लुटने आयेंगे सो तुरंत अपना धन छुपा देना |"

दुसरे ही दिन महाराणा अपनी सैनिक टुकड़ी के साथ उस गांव को लुटने पहुँच गए और सबसे पहले उसी सेठ के घर गए क्योंकि उस गांव में सबसे धनी सेठ वही था पर उसके घर में महाराणा को कुछ नहीं मिला | इस बात से महाराणा बड़े हैरान हुए कि सबसे धनी सेठ के यहाँ कुछ भी नहीं मिला,जरुर इसको मेरे इस अभियान की किसी ने सूचना दी होगी,पर सूचना कौन देगा ? मेरे सिवाय इस बात का किसी को पता तक नहीं था ,न किसी सैनिक को न किसी सामंत को फिर सेठ को कैसे पता चला ?
मेवाड़ आने के बाद भी महाराणा के दिमाग में यह गुत्थी सुलझी नहीं सो उन्होंने अपने सैनिक मालपुरा गांव भेज उस सेठ को उदयपुर बुला लिया | और पूछा कि -
"सेठ जी ! मुझे पता है मालपुरा के आप सबसे धनी सेठ हो आपके पास लाखों का माल है | पर मेरे लुटते वक्त आपका माल गया कहाँ ? मैंने इस लुट की योजना अपनी जबान तक पर नहीं आने दी थी फिर आपको मेरे आने का कैसे पता चला ? आपके सारे गुनाह माफ़ है, आपतो सही सही बातये कि आपको मेरी योजना का कैसे पता चला ?"
सेठ ने हाथ जोड़ते हुए कहा - " महाराज ! मेरी बेटी रूपनगढ़ में ब्याही है उस दिन मुझे उसी ने सूचना भिजवाई थी कि महाराणा लुट के लिए चढ़ेंगे |"
ये सुनते ही महाराणा चौंक पड़े | जब मैंने यह योजना अपनी जबान पर ही नहीं आने दी तो उसे कैसे पता चला | " सेठ जी ! आपकी बेटी मेरी भी बेटी समान है | मैं उससे मिलकर ये बात पूछना चाहता हूँ | उसे पूरी इज्जत के साथ यहाँ बुलवाया जाय |"
सेठ की बेटी को इज्जत के साथ महाराणा के दरबार में लाया गया और महाराणा ने उसे पूछ कि - " बेटी ! तुझे मेरी योजना का कैसे पता चला ?
सेठ की बेटी बोली - " महाराज ! बताया तो मुझे भी किसी ने नहीं पर जब आप रूपनगढ़ महल के झरोखे में खड़े होकर खंखारा करने के बाद मूंछो पर ताव देते हुए मेरे मायके मालपुरा की और देख रहे थे तब मैं समझ गयी थी कि आज महाराणा मालपुरा पर धावा बोलेंगे | क्योंकि महाराणा राजसिंह जी का खंखारा कभी खाली नहीं जाता | दूसरा मालपुरा जयपुर राज्य में है जिनकी आपसे दुश्मनी भी है और मालपुरा में मोटे सेठ रहते है उनके पास अतुल धन है और आपकी नजर मालपुरा की और एक टक देख रही थी यही सब बातों को ध्यान में रखकर मैंने आपकी योजना का अनुमान लगाकर तुरंत पत्र लिख कर अपने नौकर को अपने पिता के पास भेज दिया था |
सेठ कन्या की बात सुनकर महाराणा उसकी बुद्धिमानी पर चकित हो गए बोले - " सुलक्षणा औरत में बत्तीस लक्षण होते है यह लड़की वाकई बत्तीस लक्षणी है |
कुछ वर्षो बाद महाराणा एक तालाब खुदवा रहे थे उसकी नींव रखने के लिए ब्राह्मणों ने कहा कि -"इसकी नींव तो किसी बत्तीस लक्षणी औरत से लगवानी चाहिए |"
तब महाराणा को तुरंत वह सेठ कन्या याद आई | उसे ससम्मान बुलवाकर महाराणा राजसिंह जी ने उस तालाब (राजसमंद ) की नींव उसके हाथ रखवाई |
तालाब (राजसमंद )की नींव रखने के बाद उस सेठ कन्या ने भी अपना सारा संचित धन तालाब पर बने जैन मंदिर "दयालदास रा देवरा" में लगा दिया |
नौ चौकी नौ लाख री, दस किरोड़ री पाळ
साह बंधाया देवरा , राणे बंधाई पाळ |


नोट - राजसमंद की नींव रखवाने सम्बन्धी और भी कई बाते प्रचलित है |
(सन्दर्भ- महारानी लक्ष्मीकुमारी की राजस्थानी कहानी पर आधारित )

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18टिप्पणियाँ

  1. बहुत बढ़िया रहा....कितनी ही अनसुनी कहानियाँ आपसे सुन रहे हैं.

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  2. बहुत सुंदर कथा,लेकिन एक बात समझ मे नही आई की महाराणा भी डाका डालते थे?

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  3. @ राज भाटिया जी
    पुराने समय में राजा महाराजाओं द्वारा धन के लिए दुसरे राजा के राज्य में हमला कर वहां के व्यापारियों को लूटना आम बात होती थी | यदि मराठा और पिंडारी राजस्थान में आ आकर लुट पाट नहीं मचाते तो राजस्थान के राजा अंग्रेजों से इतनी जल्दी संधियाँ नहीं करते | पर मराठों की लुट पाट से तंग राजस्थान के राजाओं में अंग्रेजों से लड़ने की हिम्मत ही नहीं रही थी | मेरा कहने का मतलब शासक वर्ग चाहें कहीं का हो वो आजतक लुट पाट करता ही आया है |

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  4. सेठ जी ! मुझे पता है मालपुरा के आप सबसे धनी सेठ हो आपके पास लाखों का माल है | पर मेरे लुटते वक्त आपका माल गया कहाँ ? मैंने इस लुट की योजना अपनी जबान तक पर नहीं आने दी थी फिर आपको मेरे आने का कैसे पता चला ? आपके सारे गुनाह माफ़ है, आपतो सही सही बातये कि आपको मेरी योजना का कैसे पता चला ?"

    लोककथाएं अपने समय की सामंती व्यवस्था का सच वाक़ई बड़ी ख़ूबसूरती से बयान करती हैं. इससे राजाओं की वीरता का सच पता चलता है.

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  5. एक और बेहतरीन कथा... आभार।

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  6. राज समंद की नींव -बढियां कथा

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  7. बचपन याद दिला दिया आपने ...
    उन नानी,दादी की जानकारियों से भरी कहानियों का ...
    आभार !
    अशोक सलूजा !

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  8. बहुत ही रोचक कहानियों से परिचित करा रहे हैं…………आभार्।

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  9. रतन सिंह जी , अब से आगे हमें आपको डॉ. रतन सिंह शेखावत कहना चाहिये Phd राजस्थानी इतिहास. गजब सा गजब !

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  10. सही मायनो में आप जैसे लोग साहित्य सेवा कर रहे है. ब्लॉग एक प्याऊ(जहाँ निशुल्क पानी पिलाया जाता है ) की तरह है जहाँ लोग जाकर अपनी ज्ञान पिपासा तृप्त कर लेते हैं.

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  11. THANKS , SHREE RATAN SINGH JI BAHUT HI SUNDER STORY HAI YEH HUKAM ..ESTRY {WOMAN} ME KUCH NA KUCH DEVIK GUN MOJUD RAHTE HAI TABHI TO ESKO SHAKTI KA DRZA MILA HUA HAI

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  12. bahut badia paryas logo ko rajasthan ka goravmayi itihas batane ka. hardik subhkamna

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