जिन्दा भूत

Gyan Darpan
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जोधपुर के महाराजा जसवंतसिंह राजस्थान के इतिहास के प्रसिद्ध व्यक्ति रहे है | वे शाहजहाँ व औरंगजेब के ज़माने में देश की राजनीती में बहुत प्रभावशाली व्यक्ति थे | उन्होंने काबुल व दक्षिण में कई सैन्य अभियान चलाये | यही नहीं एक बार युद्ध से विमुख होने पर उन्हें अपनी रानी से भी बहुत खरी खोटी सुननी पड़ी थी उस समय रानी ने उनके लिए किले के दरवाजे बंद करवा दिए थे |हालाँकि वे औरंगजेब के अधीन थे और औरंगजेब के लिए ही काबुल में वे तैनात रहे पर औरंगजेब उनसे हमेशा डरता रहा,यही वजह थी कि वह उन्हें कूटनीति के चलते मारवाड़ से दूर काबुल या दक्षिण में रखता था |

भारतीय इतिहास का प्रसिद्ध वीर शिरोमणि दुर्गादास राठौड़ भी इन्ही महाराजा का सेनापति था | दुर्गादास के अलावा उनके सामंतों व सरदारों में एक और जोरदार सामंत थे आसोप के ठाकुर राजसिंह जी | वे आसोप के जागीरदार होने के साथ ही जोधपुर के प्रधान भी थे और मारवाड़ राज्य के सबसे ज्यादा प्रभावशाली सरदार थे | उस समय मारवाड़ के प्रधान पद के लिए उनसे उपयुक्त व्यक्ति कोई दूसरा हो ही नहीं सकता था | हालाँकि ठाकुर राजसिंह महाराजा जसवंतसिंह के प्रधान थे पर उनके राज्य में प्रभाव व उनकी मजबूत स्थिति होने के कारण महाराजा जसवंतसिंह हमेशा उनके प्रति सशंकित रहते थे | कारण था औरंगजेब की कूटनीति व कुटिल राजनीती |
औरंगजेब महाराजा जसवंतसिंह से मन ही मन बहुत जलता था और महाराजा के खिलाफ हमेशा षड्यंत्र रचता रहता था | अत: महाराजा को लगता था कि कहीं औरंगजेब ठाकुर राजसिंहजी को कभी अपनी कूटनीति का हिस्सा ना बना लें | इसलिए जसवंतसिंह जी ठाकुर राजसिंहजी को मरवाना चाहते थे | जब उन्हें कोई उपाय नहीं सुझा तो उन्होंने ठाकुर राजसिंह को जहर दे कर मरवाना चाहा | उस ज़माने में हुक्म के साथ किसी को भी जहर का प्याला भेज उसे पीने हेतु बाध्य करने का रिवाज चलन में था | परन्तु राजसिंह जी जैसे प्रभावशाली व वीर के साथ ऐसा करना महाराजा जसवंतसिंह जी के लिए बहुत कठिन था |

एक दिन पता चला महाराजा जसवंतसिंह पेट दर्द को लेकर बहुत तड़फ रहे है | कई वैद्यों ने उनका इलाज किया पर कोई कारगर नहीं | महाराजा की तड़फडाहट बढती जा रही थी | पुरे शहर में महाराजा की बीमारी के चर्चे शुरू हो गए कोई कहे जमरूद के थाने (काबुल) पर रात को गस्त करते हुए महाराजा का सामना भूतों से हुआ था और तब से भूत उनके पीछे पड़े है तो कोई कुछ कहे | पूरे शहर में जितने लोग,जितने मुंह उतनी बातें | सारे शहर में भय छा गया |

उधर महाराजा का इलाज करने वैध तरह तरह की जड़ी बूटियां घोटने में लगे, मन्त्र बोलने वाले मन्त्र बोले , झाड़ फूंक करने वाले झाड़ फूंक में लगे , टोटका करने वाले टोटके करने व्यस्त,प्रजा मंदिरों में बैठी अपने राजा के लिए भगवन से दुवाएं मांगे ,ब्राह्मण राजा की सलामती के लिए यज्ञ करने लगे तो कभी भूत उतारने कोई जती (तांत्रिक) आये तो कभी कोई जती आकर कोशिश करे पर सब बेकार | उधर महाराजा दर्द के मारे ऐसे तड़फ रहे जैसे कबूतर फडफडा रहा हो | सभी लोग दुखी |

आखिर खबर हुई कि एक बहुत बड़े जती आये है उन्होंने महाराजा की बीमारी की जाँच कर कहा -" महाराजा के पीछे बहुत शक्तिशाली प्रेत लगा है वह बिना भख (बलि) लिए नहीं जायेगा | महाराजा को ठीक करना है तो किसी दुसरे की बलि देनी होगी | मैं मन्त्र बोलकर जो पानी राजा के माथे से उतारूंगा उस पानी में राजाजी की पीड़ा आ जाएगी और वह पीड़ा उस पानी को पीने वाले पर चली जाएगी | "
इतना सुनते ही वहां उपस्थित कोई पच्चासों हाथ खड़े हो गए - "महाराजा की प्राण रक्षा के लिए हम अपनी बलि देंगे ,आप मन्त्र बोल पानी उतारिये उसे हम पियेंगे |"
जती हँसता हुआ बोला -" तुमसे काम नहीं चलेगा| महाराजा के बदले किसी महाराजा सरीखे व्यक्ति की बलि देनी होगी | शेर की जगह शेर ही चाहिए | छोटी मोटी बलि से ये प्रेत संतुष्ट होने वाला नहीं |"

"इस राज्य में महाराजा सरीखे तो ठाकुर राजसिंहजी ही है|" सोचती हुई भीड़ में से एक जने ने कहा| और सैंकड़ों आँखे राजसिंहजी की और ताकने लगी| इस समय मना करना कायरता और हरामखोरी का पक्का प्रमाण था , सो राजसिंहजी उठे और बोले -

"हाजिर हूँ ! जती जी महाराज आप अपने मन्त्र बोलकर अपना टोटका पूरा कीजिये |"

जती ने पानी भरा एक प्याला लेकर मन्त्र बुदबुदाते हुए उस प्याले को महाराजा के शरीर पर घुमाया और प्याला ठाकुर राजसिंह जी के हाथ में थमा दिया |

महाराजा से खम्मा (अभिवादन) कर ठाकुर राजसिंह बोले - "मैं जानता हूँ इसमें क्या है ! आपको इतना बड़ा नाटक रचने की क्या जरुरत थी ? ये प्याला आप वैसे ही भेज देते, मैं ख़ुशी ख़ुशी पी जाता |"

अपनी प्रधानगी का पट्टा महाराजा की और फैंक कर जहर का वह प्याला एक घूंट में पीते हुए राजसिंह जी ने बोलना जारी रखा -" ये प्रधानगी आपकी नजर है | आगे से मेरे खानदान में कोई आपका प्रधान नहीं बनेगा | मैंने तन मन से आपकी चाकरी की और उसका फल मुझे ये मिला |" और कहते कहते जहर के कारण राजसिंह जी की आँखे फिरने लगी वे जमीन पर गिर गए | उन्हें तुरंत उनकी हवेली लाया गया | सारे शहर में बात आग की तरह फ़ैल गयी -

"आसोप ठाकुर साहब राजसिंहजी का प्रेत ने भख ले लिया,और राजाजी उठ बैठे हुए |"

और उसके बाद राजसिंहजी की प्रेत योनी में जाकर भूत बनने की बातें पूरे शहर में फ़ैल गयी | जितने लोग उतनी कहानियां | कोई उनके द्वारा परचा देने की कहानी सुनाता,कोई हवेली में अब भी उनकी आवाज आने की कहानी कहता, कोई उनके द्वारा हवेली में हुक्का गड्गुड़ाने की आवाज सुनने के बारे में बाते बताता,कई लोगों को राजसिंह का प्रेत हवेली खिडकियों से इधर उधर घूमता नजर आये, किसी को उनका प्रेत डराए तो किसी को बख्शीस भी दे दे | जितने लोग उतनी बाते, राजसिंह जी की प्रेत योनी की उतनी ही बाते |
पर दरअसल ठाकुर राजसिंहजी मरे नहीं वे जहर को पचा गए |

उसके बाद उनको आसोप हवेली के एक महल में महाराजा ने नजर बंद करवा दिया | इस घटना के बाद वे सात वर्ष तक जिन्दा रहे | इसीलिए कभी हवेली में वे लोगो को हुक्का गुडगुडाते नजर आ जाते तो कभी महल से उनके खंखारे सुनाई दे जाते | कभी कभी महल की उपरी मंजिल में घूमते हुए वे लोगों को किसी खिड़की से नजर आ जाते और उनको देखने वाले लोग डर के मारे उनसे मन्नते मांगते,चढ़ावा चढाते |

इस तरह महाराजा जसवंतसिंह जी ने ऐसा नाटक रचा कि ठाकुर राजसिंहजी को जिन्दा रहते ही भूत बना दिया | महाराजा ने लोगों के मन ऐसा विश्वास पैदा कर दिया कि अभी तक आसोप हवेली के पड़ौसी लोग राजसिंहजी के प्रेत को देखने की बाते यदा कदा करते रहते है |

कहानी की मूल लेखिका रानी लक्ष्मीकुमारी जी चुण्डावत है|

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16टिप्पणियाँ

  1. अजब नायक ,अजब इनकी कहानियां.जसवंत सिंह जी यदि चतुर शासक थे तो राज सिंह जी बुद्धिमान,वीर और सच्चे राजपूत.अक्सर आती हूँ.पढ़ती हूँ.राजस्थान से हूँ किन्तु हर बार जैसे पहली बार सुनी कोई बात पढ़,सुन कर जाती हूँ.

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  2. @ इंदु जी
    आप तो यहाँ आती रहें आपको यहाँ हमेशा नवीन एतिहासिक कहानियां मिलती रहेगी |

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  3. बहुत सुंदर प्रस्‍तुति, धन्यवाद

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  4. आऊँगी क्यों नही भाई? आप मुझे नही जानते किन्तु पदम (पद्मसिंह श्रीनेत जी ) से उनके यहाँ जब दिल्ली गई.एक सप्ताह तक रही तब उन्होंने खूब बताया आपके बारे में.फिर यहाँ आती रहती हूँ. मेरी दादी सीहोर राज घराने के दीवान की बेटी थी.उनकी परवरिश उसी ढंग से हुई थी. बहुत कुछ उनसे पाया मैंने और.........सच कहूँ आज भी मेरे व्यक्तित्व में ये राजपूती तेवर मिल जायेंगे आपको. इस कारण भी आपका ब्लॉग मुझे हमेशा अपनी ओर खींचता है.
    क्या करूं? सचमुच ऐसीच हूँ मैं भी.

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  5. ye haweli kahan per hain aisi hi kahaniyaan log bhangarh fort Alwar per bana rahe hain.

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  6. हां रतन जी,

    आपके ही ब्लाग पर ईतीहास वाली कहानीया मिलती है।

    औरंगजेब के बारे मे मैने एक किताम मे पढा था, वो किताब ट्रायल था ईसलिए थोडी सी ही जानकारी थी लेकीन अधीक रुची हिन्दी बोलने वाले राजा मे ही है।

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  7. सुन्दर एतिहासिक जानकारी |

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  8. kathy & avam rachanadharmita dono hi romanchak badhayiyan ji .

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  9. ब्लॉग जगत में पहली बार एक ऐसा सामुदायिक ब्लॉग जो भारत के स्वाभिमान और हिन्दू स्वाभिमान को संकल्पित है, जो देशभक्त मुसलमानों का सम्मान करता है, पर बाबर और लादेन द्वारा रचित इस्लाम की हिंसा का खुलकर विरोध करता है. साथ ही धर्मनिरपेक्षता के नाम पर कायरता दिखाने वाले हिन्दुओ का भी विरोध करता है.
    इस ब्लॉग पर आने से हिंदुत्व का विरोध करने वाले कट्टर मुसलमान और धर्मनिरपेक्ष { कायर} हिन्दू भी परहेज करे.
    समय मिले तो इस ब्लॉग को देखकर अपने विचार अवश्य दे
    .
    जानिए क्या है धर्मनिरपेक्षता
    हल्ला बोल के नियम व् शर्तें

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  10. बहुत सुंदर प्रस्‍तुति धन्यवाद ----------

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  11. औरंगजेब के बारे मे मैने एक किताम मे पढा था, वो किताब ट्रायल था ईसलिए थोडी सी ही जानकारी थी लेकीन अधीक रुची हिन्दी बोलने वाले राजा मे ही है।

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  12. आपसी रंजिश के चलते ही इस कौम में बिखराव की स्थिति पैदा हुई. हर कोई अपने को सर्वश्रेठ जताने की धुन में एक दुसरे को नीचा दिखाने का मौका नहीं छोड़ता था, नतीजनन आज किस्से कहानियों में सिमिट कर रहे गए

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