वो वीर मर मिटा नकली बूंदी पर भी

Gyan Darpan
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मेवाड़ के महाराणा लाखा किसी बात पर बूंदी राज्य के हाड़ों से नाराज हो गए और उन्होंने प्रण कर लिया कि जब तक वे बूंदी नहीं जीत लेते अन्न जल ग्रहण नहीं करेंगे | महाराणा के सरदारों ने महाराणा लाखा को बहुत समझाया कि इतनी जल्दी किसी राज्य को जीतना इतना आसान नहीं और वो भी बूंदी के विकट वीर हाड़ा राजपूतों को | जिनके शौर्य का डंका हर कहीं बजता है | पर महाराणा लाखा तो प्रण कर चुके थे अब मेवाड़ के सरदारों के सामने एक भीषण समस्या उत्पन्न खड़ी हो गयी थी न तो इतनी जल्दी बूंदी के हाड़ा राजपूतों को हराया जा सकता था और न ही बिना जीते महाराणा अपने प्रण से पीछे हटने वाले थे |
आखिर मेवाड़ के सरदारों ने आपसी मंत्रणा कर एक बीच का रास्ता निकाला और महाराणा लाखा के आगे प्रस्ताव रखा कि अभी चितौड़ के किले के बाहर बूंदी का एक मिटटी का नकली किला बनवाकर उस पर आक्रमण कर उसे जीत लेते है इस तरह बूंदी पर प्रतीकात्मक तौर पर विजय हासिल कर आप अपना प्रण पूरा कर लीजिये | असली बूंदी बाद में कभी भी जीत ली जाएगी | महाराणा को भी अपने सामन्तो की यह बात जच गयी | और चितौड़ किले के बाहर बूंदी का एक प्रतीकात्मक मिटटी का नकली किला बनवा दिया गया |
बीस पच्चीस घुड़सवारों व अपने कुछ सामंतो के साथ महाराणा लाखा इस नकली "बूंदी" को फतह करने निकले और बूंदी के नकली किले पर आक्रमण के लिए आगे बढे | तभी एक सप्प करता हुआ तीर अचानक महाराणा लाखा के घोड़े के ललाट पर आकर लगा | घोड़ा चक्कर खाकर वहीं गिर गया और महाराणा कूद कर एक और जा खड़े हुए,तभी दूसरा तीर आया और एक सैनिक की छाती को बिंध गया | उन्हें समझ ही नहीं आया कि इस नकली बूंदी से कौन उनका विरोध कर रहा है ? ये तीर अचानक कहाँ से आ रहे है ?
तभी महाराणा का एक सामंत दूत बनकर बूंदी के नकली किले की और रवाना हुआ ताकि पता लगाया जा सके कि उस नकली बूंदी के किले से कौन तीर चला रहा है, दूत ने जाकर देखा कि वहां एक बांका नौजवान अपने कुछ साथियों सहित शस्त्रों से सुसज्जित केसरिया वस्त्र धारण किये उस नकली किले की रक्षार्थ मौर्चा बांधे खड़ा है | ये बांका नौजवान बूंदी का हाड़ा राजपूत कुम्भा था जो महाराणा की सेना में नौकरी करता था पर आज जब उसके देश बूंदी व हाड़ा वंश की प्रतिष्ठा बचाने का समय आया तो वह अपने दुसरे हाड़ा राजपूत वीरों के साथ मेवाड़ की सेना का परित्याग कर उस नकली बूंदी को बचाने वहा आ खड़ा हुआ |
सामंत ने कुम्भा को समझाया और महाराणा का प्रण याद दिलाया कि यदि महाराणा का प्रण पूरा नहीं हुआ तो बिना अन्न जल उनके जीवन पर संकट आ सकता है तुम महाराणा के सेवक हो उनका तुमने नमक खाया है इसलिए यहाँ से हट जाओ और महाराणा को नकली बूंदी पर प्रतीकात्मक विजय प्राप्त कर अपने प्रण का पालन करने दो | ताकि उनके प्रण का पालन हो सके |
इस पर कुम्भा ने कहा - "महाराणा का सेवक हूँ और उनका नमक खाया था इसीलिए तीर महाराणा को नहीं उनके घोड़े को मारा था,आप महाराणा से कहिये बूंदी विजय का विचार त्याग दे | बूंदी मेरा वतन है इसीलिए ये मेरे देश व हाड़ा वंश की प्रतिष्ठा से जुड़ा है |"
" पर यह तो नकली बूंदी है जब असली बूंदी पर महाराणा चढ़ाई करे तब तुम उसकी रक्षा व अपने वंश की प्रतिष्ठा बचाने के लिए चले जाना |"
"मेरे लिए तो ये असली बूंदी से कम नहीं उससे भी बढ़कर है , जो नकली बूंदी के लिए नहीं मर सकता वह असली बूंदी के लिए भी नहीं मर सकता है | महाराणा जब असली बूंदी जीतने पधारेंगे तो वहां अपनी प्रतिष्ठा बचाने वाले और कई हाड़ा मिल जायेंगे | इसलिए जाओ और महाराणा से कहो अपना ये विचार त्याग दे |"
"तुम नमकहरामी कर रहे हो कुम्म्भाजी |" सामंत ने कहा |
" महाराणा का नमक खाया है वे मेरे इस सिर के मालिक तो है पर इज्जत के नहीं | यह प्रश्न केवल मेरी इज्जत का नहीं, हाड़ा वंश और अपनी मातृभूमि की इज्जत का है, इसलिए महाराणा मुझे क्षमा करें |"
आखिर कुम्भा हाड़ा के न हटने पर महाराणा घोड़े पर सवार हुए और सैनिको को नकली बूंदी पर आक्रमण का आदेश दिया तभी कुम्भा जी ने महाराणा से पुकारा - " ठहरिये अन्नदाता ! आपके साथ कम सैनिक है इसलिए कदाचित आप इस नकली बूंदी को भी नहीं जीत पाएंगे | एक प्रतिज्ञा पूरी न होने पर दूसरी प्रतिज्ञा पूरा करने का आपको अवसर ही नहीं मिलेगा इसलिए आप किले से एक बड़ी सैनिक टुकड़ी मंगवा लीजिये | बूंदी की भूमि इतनी निर्बल नहीं जिसे आसानी से विजयी की जा सके |
महाराणा कुछ देर के लिए अपनी सैनिक टुकड़ी के आने के इन्तजार में ठहर गए |
उधर चितौड़ के दुर्ग की प्राचीर व कंगूरों पर खड़े लोग नकली बूंदी विजय अभियान देख रहे थे | उन्होंने देखा सैकड़ो घोड़े और हाथी सजधज कर नकली बूंदी की और बढ़ रहे है एक पूरी सेना ने बूंदी के नकली किले को घेर लिया है और उस पर आक्रमण शुरू हो गया | हर हर महादेव का उदघोष चितौड़ किले तक सुनाई दे रहा था | सभी लोग अचम्भित थे कि - नकली बूंदी के लिए यह युद्ध कैसा ? कोई उसे वास्तविक युद्ध समझ रहा था तो कोई उसे युद्ध का अभिनय समझ रहा था |
घड़ी भर महासंग्राम हुआ | दोनों और तीरों की बौछारें हुई मेवाड़ के कई सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए तो सैकड़ों हताहत हुए | आखिर महाराणा की नकली बूंदी पर विजय के साथ प्रतिज्ञा पूरी हुई | और दूसरी और हाड़ों की देशभक्ति व उनकी प्रतिष्ठा की रक्षा हुई ; पर तब तक कुम्भा हाड़ा व उसके साथी तिल-तिल कर कट चुके थे |

एक तरफ कुम्भा जी जैसे देशभक्त लोग थे जो अपनी मातृभूमि की प्रतिष्ठा के लिए कट गए पर अपनी मातृभूमि जो बेशक नकली व प्रायोजित थी को भी आसानी से किसी को कुचलने नहीं दिया और दूसरी ओर आज के हमारे देश वे भ्रष्ट नेता,अधिकारी,व्यापारी व सत्ता के दलाल है जो देश की इज्जत आबरू की दलाली करने के लिए कोई मौका नहीं चुकते और इस देश की इज्जत के साथ सम्पदा लुट कर विदेशी बैंको में काले धन के रूप में जमा करते है,क्रिकेट जैसे खेल में करोड़ों कमाने वाले खिलाड़ियाँ का चरित्र भी हम देख चुके है करोड़ों रूपये मिलने के बावजूद भी ये मेचफिक्सिंग के जरिये चंद रुपयों के लिए देश की प्रतिष्ठा दांव पर लगा दी जाती है |
आज देश के युवा वर्ग के सामने देश के लिए आत्मबलिदान करने की प्रेरणा के स्थान पर सिर्फ हड़ताल,धरने व आमरण अनशन करने की प्रेरणा ही दी जाती है जिसके चलते जब कभी देश के लिए बलिदान की जरुरत पड़ेगी तब हमारा युवा वर्ग दुश्मन की गर्दन काटने व अपनी कटवाने के स्थान पर सिर्फ भाषणबाजी,निंदाप्रस्ताव व हड़ताले ही करेगा |

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10टिप्पणियाँ

  1. rtn bhaai haadoti ki bhaaduri ke qisson ki yad taazaa kar di isi ko raashtrbhkti khte hen . akhtar khan akela kota rajsthan

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  2. यह कथा कोई तीस-चालीस बरस पहले तक यहाँ हाड़ौती में बच्चे-बच्चे को पता हुआ करती थी। लेकिन आज की पीढ़ी इस से अनभिज्ञ है। आप का आभार कि आप इसे अंतर्जाल तक ले कर आए।

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    1. Dwivediji, Indian govt do not want us to remember our past. They are trying to overwrite it with what they want to see in Rajasthan's future.

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  3. अद्भुद वीरता... अतुलनीय समर्पण... देश भक्ति का नायाब नमूना.... आज के युवाओं को सीख लेनी चाहिए अपने स्वर्णिम इतिहास से

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  4. राष्ट्रभक्ति का अप्रतिम उदाहरण।

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  5. यह कहानी स्कूल के समय हिन्दी की किताब में भी थी | आज आपके यंहा दुबारा पढकर याद आ गयी |

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  6. जय हो वीरों की. आज वही देश है और आगे क्या कहूं... वीर जनने बन्द कर दिये क्या इस माता ने..

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  7. कभी बचपन में पढ़ी थी यह वीरगाथा। आपने दोबारा आज याद दिलाया। धन्यवाद

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  8. dharti veer to abhi bhi paida krti hai lekin reservation ne rok laga rkhi hai hmmm

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  9. Repentance is remembrance!! Glad to read the tale of glorified past of Bundi. Thank you for publishing such true event.

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