भूमि परक्खो

Gyan Darpan
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बीस पच्चीस झोंपड़ियों वाले एक छोटे गांव का बूढ़ा बिलोच सरदार कांगड़ा खाट पर पड़ा मौत से जूझ रहा था पर उसकी सांसे निकलते निकलते अटक रही थी उसे एक छटपटाहट ने बैचेन कर रखा था,शिकारपुर के पठान सरदार कांगड़ा की घोड़ियाँ लुट ले गए थे और वह उन्हें न तो वापस ला पाया था और न ही शिकारपुर के पठानों से बदला ले पाया था | इसी नकायामाबी से वह अपने आप को अपमानित महसूस कर रहा था बिना बदला लिए कैसे मरे इसीलिए उसकी सांसे अटकी थी |
लड़का होता तो बदला लेता पर सरदार कांगड़ा के एक औलाद थी वो भी एक पन्द्रह वर्ष की लड़की " पिउसिंध " | पिउसिंध अपने बाप की मानसिक पीड़ा समझ रही थी उससे अपने बाप की आँखों में टपक रही घोर निराशा देखी ना जा रही थी सो उसने अपने बाप से कहा - "कि आप मुझे पुत्र से कम ना समझे,मैं आपको वचन देती हूँ कि शिकारपुर के पठानों से आपके अपमान का बदला लुंगी और आपकी लुटी गई घोड़ियाँ वापस लाऊंगी |"
बूढ़े बाप के कानों में बेटी के वीरतापूर्ण वचन सुन अमृत सा बरसा | " तो ला पंजा दे |" उसने खाट पड़े पड़े अपना हाथ पसारा |
पिउसिंध ने हाथ पर हाथ रखकर उसके अपमान का बदला लेने का वचन दिया तो कांगड़ा सरदार के प्राण संतोष के साथ निकल गए |
पिता की मृत्यु के बाद पिउसिंध ने अपने कंधो पर लटकते बालों का जुड़ा बाँधा,मर्दानी पौशाक धारण की,हाथ में तीरकमान लिए और घोड़े पर सवार हो बिलोच जवानों के साथ शस्त्र विधा का अभ्यास करना शुरू कर दिया | दूर दूर तक घुड़सवारी करना,कमान पर तीर चढ़ा निशाने साधना उसकी दैनिक दिनचर्या का अंग बन गया | शस्त्र विधा के अभ्यास व पिता को दिए वचन को पूरा करने की धुन में वह भूल ही गयी कि वह सोलह वर्ष की एक सुंदरी है वह तो अपने आप को बिलोच सरदार का बेटा ही समझने लगी |
बिलोच सैनिक पौशाक पहने,तीर कमान हाथ में लिए जब वह घोड़े पर बैठे निकलती तो देखने वालों की नजरे ही ठिठक जाती अधेड़ औरतों के मन में अभिलाषा जागती काश उनका बेटा भी उसकी तरह हो | कुंवारी लड़कियां पति के काल्पनिक चित्र में उसका रंग घोलने लगती | तीर चलाने की विद्या में तो वह इतनी पारंगत हो गयी कि किसी धुरंधर तीरंदाज का छोड़ा तीर पांच सौ कदम जाता तो उसका छोड़ा तीर सीधा हजार कदम जाकर सटीक निशाने पर लगता |
एक दिन घोड़ा दौड़ाती वह काफी दूर निकल गयी थी और थक हार कर एक तालाब के किनारे अपना घोड़ा बांध विश्राम कर रही थी तभी वहां पाटन गांव का रहने वाला भीमजी भाटी अपने साथियों सहित तालाब पर अपने घोड़ों को पानी पिलाने आया उसने देखा एक खुबसूरत नौजवान तालाब पर बैठा विश्राम कर रहा है | भीमजी भाटी ने अपना परिचय देते हुए उस युवक से परिचय पूछा |
युवक ने कहा- "वह बिलोच सरदार कांगड़ा का बेटा है |" पर आपतो सिंध की और के रहने वाले है ,कहो इधर कैसे आना हुआ ?
भीमजी ने बताया - शिकारपुर के पठानों के पास सुना है बहुत अच्छी घोड़ियाँ है सो वहीँ उन्हें लेने जा रहे है |
युवक बोला - शिकारपुर जाने के इरादे से ही हम आये है | हमने भी पठानों की घोड़ियाँ की बड़ी प्रसंसा सुनी है |
भीमजी ने कहा- मेरे साथ पचास घुड़सवार है आपके साथ ?
युवक मुस्कराते हुए बोला -
" कंथा रण में जायके,कोई जांवे छै साथ |
साथी थारा तीन है,हियो कटारी हाथ ||"

रण में तीन ही साथी होते है | साहस,शस्त्र और बाहुबल | ठाकुर ! मेरे तो बस ये ही तीन साथी है |
भीमजी युवक व अपने दल सहित शिकारपुर के पास पहुंचा | भीमजी के एक टोह लेने गए आदमी ने बताया कि पठानों की घोड़ियाँ को कुछ चरवाह चरा रहे है और यही मौका उन्हें लुटने का | मौका देख उन्होंने घोड़ियाँ लुट ली जिनकी संख्या बहुत थी |
शिकारपुर घोड़ियों की लुट का पता चलते ही पठान तीर कमान ले अपने घोड़ों पर सवार हो पीछा करने लगे | उनके घोड़ों के टापों से उड़ती खेह देख युवक बोला पठान आ रहे है घोड़ियाँ बहुत है इन्हें ले जाने का एक काम आप करो और पठानों को रोकने का दूसरा काम मैं करता हूँ |
भीमजी के आदमी घोड़ियों को तेज भागते ले जाने लगे और युवक ने एक ऊँचे टिबे पर चढ़कर पठानों को रोकने के लिए मोर्चा लिया और अपने घातक तीरों के प्रहार से कई पठानों को धराशायी कर दिया बाकी पठान उसके तीरों के घातक प्रहारों से डर भाग खड़े हुए | घोड़ियाँ के पैरों के निशान देखते देखते युवक पीछा करता हुआ भीमजी भाटी के पास पहुंचा और अपने हिस्से की आधी घोड़ियाँ मांगी |
पर भीमजी के साथियों ने बखेड़ा खड़ा किया | आधी कैसे दे दें ? तुम एक और हम इतने सारे !!
युवक ने कहा - आधी क्यों नहीं ? आधा काम तुम सबने मिलकर किया और आधा मैंने अकेले ने | तुमने घोड़ियाँ घेरी, मैंने पठानों को रोका |
भीमजी के आदमियों ने ना नुकर करने पर युवक ने कमान पर तीर चढ़ाया और कहा -फिर हो जाय फैसला, जो होगा सो देखा जायेगा |
भीमजी के साथी उसके तेवर देख हक्के बक्के रह गए आखिर भीमजी ने बीच बचाव कर घोड़ियों को दो हिस्सों में बाँट दिया पर एक घोड़ा अधिक रह गया,भीमजी के साथियों ने फिर झगडा किया कि यह घोड़ा तो हम रखेंगे पर देखते ही देखते युवक ने तलवार के एक वार से घोड़े के दो टुकड़े कर दिए कि अब ले लो अपना आधा हिस्सा |
अपने हिस्से की घोड़ियों को लेकर युवक कुछ सौ कदम ही जाकर वापस आया और भीमजी से कहने लगा - भीमजी मेरे हिस्से की घोड़ियाँ भी आप रखलो | मैं इन्हें ले जाकर क्या करूँगा ? वो तो अपने हक़ का हिस्सा लेना था सो ले लिया | अब सारी घोड़ियाँ आप अपने पास ही रखिये |
और अपने हिस्से की घोड़ियाँ भीमजी को दे बिलोच नौजवान अपने घोड़े पर चढ़ वापस रवाना हुआ |

क्रमश:....



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11टिप्पणियाँ

  1. aapki kahaniya .anokhi hoti h ..pahale kabhi nahi suni hoti h hukum .....par y karmash...........jaldi intjar rahega aage ki kahani ka

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  2. साहस साथ है तो कोई भी रण जीता जा सकता है।

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  3. अत्यंत साहसिक कहानी है, आपका बहुत आभार इस तरह की कहानियां यहां संजोने के लिये.

    रामराम

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  4. हक भी नही छोडना चाहिये, अगर कोई मार ले या चलाकी से छीन ले... ओर इस सुंदरी ने तो पिता को दिया वचन भी पुरा किया, बहुत सुंदर कहानी धन्यवाद

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  5. रण में तीन ही साथी होते है | साहस,शस्त्र और बाहुबल |

    ये है असली सार।

    राम राम

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  6. बहुत रोचक कहानी है | प्रेरणाप्रद।

    जवाब देंहटाएं
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