जातिय वैमनष्यता का दोषी कौन ????

Gyan Darpan
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कुँवरानी निशा कँवर
जितनी जातीय वैमनष्यता आज है इतनी ज्ञात इतिहास ,लोक कथाओं और किंवदन्तियो में कही भी देखने को नहीं मिलती है |जर्मनी का नाजीवाद इसका एक उदहारण विश्व इतिहास में जरुर नजर आता है किन्तु वह राज्य प्रायोजित था |किन्तु आज हमारे देश में एक नहीं अनेको संगठन लोगो के कल्याण और उद्धार के नाम पर जातीय कटुता को तीव्र से तीव्रतर कर राष्ट्रीय शांति और समता मूलक समाज ,सर्व समाज कि उन्नति में भयंकर अवरोध बन कर सामने आने कि साहस तो नहीं जुटा परहे है किन्तु अन्दर ग्राउंड रह कर चोरी छिपे फेसबुक और ऑरकुट जैसे आभासी दुनिया में नाम बदलकर अपनी साजिशों को अंजाम देने में लगे है लगे है | वे तरह तरह के मनगढ़ंत सवालिया निशान महापुरुषों के चरित्रों पर लगाते है और महापुरुषों के जीवन चरित्र को अपने स्वयं के कुचरित्र जीवन के मापदंड से मापने का हास्यास्पद प्रयास कर अपने अज्ञान ,अविद्या और पतित चरित्र को ज्ञान ,विद्या और चरित्र कि थाली में आम और भोले लोगों को परोसने का प्रयास कर रहे है |और जातीय वैमनष्यता को ढाल बना कर अपनी दूरगामी राजनैतिक रोटी सेंकने का काफी हद तक सफल प्रयास कर रहे है | तब आज यह सवाल उभर कर सामने आता है कि कि आखिर इस जातीय वैमनष्यता का दोषी है कौन ?
लोगो का तर्क है कि ब्राह्मणों का सभी धार्मिक पदों पर एकमात्र कब्ज़ा शायद इस राष्ट्रवादी विचारधारा में सर्वाधिक बाधक है |और इस दिशा में कुछ किया जाना चाहिए |ऐसे लोग तारक भी देते है कि इसमें कोई सुधर नहीं होरहा है इसलिए हम ने यह सनातन धर्म हि छोड़ दिया है और ऐसे लोग श्री राम और कृष्ण से लेकर सभी महापुरुष और देवियों का अपमान करने का कोई भी अवसर नहीं चुकते और अपने का राष्ट्र का सबसे बड़ा हितेषी कहने का ढिंढोरा पिटते है |किन्तु वास्तविकता तो यह है कि राष्ट्रवाद शब्द भी आज छल का ही एक रूप बन गया है |यह शब्द मोहित करता है लोगों को उसी तरह जैसे कभी धर्म के नाम पर पाखंड हुआ था,या काफी हद तक आज भी जारी है| ब्राह्मणों का उन धार्मिक पदों पर यह कब्ज़ा शायद इसलिए है कि किसी भी घर को सुधारने के लिए उस घर से बहिष्कृत या उस घर को ठोकर मार चुके व्यक्ति यदि घर की भलाई के लिए भी सुझाव दें तब भी कोई भी घरवाला व्यक्ति, उन अच्छे सुझावों पर भी ध्यान केवल इसलिए नहीं दे पाता, क्योंकि वे इस पूर्वाग्रह से ग्रसित होते है कि यह यानि पलायनवादी , अपनी करनी को, यानि पलायन को येनकेन सही सिद्ध करने में लगे हुए है |
दूसरा कारण है कि हमे शत्रु को उसी के शस्त्र से काटना पड़ेगा यानि हमें भी संस्कृत भाषा और धर्म शास्त्रों का ज्ञान उसी श्रेणी का होना चाहिए,जितना की शत्रु को था |और जहाँ जहाँ भी धर्म शास्त्रों में दूषण किया गया है उसको तुरंत ही अस्वीकार करना पड़ेगा ,जैसे भगवान बुद्ध,महावीर स्वामी और महात्मा ईशा ने किया |किन्तु उनके अनुयायियों ने मूल धर्म और अध्यात्म(आत्म की अधीनता यानि ,आत्म माने मै स्वयं अपने अधीन या अपने अनुसार ,,अत: दीपो भव अपना प्रकाश स्वयं बनो ) को छोड़कर पाला बदलने कर जो भूल की, उससे बचना होगा वरन तो जो भावुक लोग है ,वे फिर भी ठगे जाते रहेंगे और यही ब्राह्मणवादी तत्व हर धर्म को दूषित कर देते है जैसा आज है |आज प्रचलित किसी धर्म में चाहे हो अत्याधुनिक बिश्नोई समाज हो या अति प्राचीन शैव और शाक्त,,या सदा से विरोधी रहे ब्रह्मण-धर्म और क्षात्र-धर्म हो सत्यता से अभी कोई नजदीकी नहीं है इनके अनुयायियों में |मनुष्य जितनी भी कल्पना कर सकता है वो भूतकाल में होचुका होता है और भविष्यकाल में भी संभव है क्योंकि असंभव तो केवल मौत का टालना ही है |सत्य वही है जो तीनो कालों में अस्तित्त्व में हो | कोई भी धर्म वास्तव में आज धर्म है ही नहीं विश्व बन्धुत्त्व की भावना और सर्वत्र प्रेम की बात जिसमे न हो वे केवल पंथ है धर्म के आगे कोई उपसर्ग नहीं लग सकता क्योंकि धर्म अपने आपमें एक पूर्ण शब्द है जोकि अपने अंतर्मन की गुफा में खोजा जा सकता है |जो इसे खोजे वही गजमुख होता है उसे ही गणेश कहते है कालांतर में लोगों गणेश जी नामक देवता की रचना करली, और उसके हाथी की सूंड लगा ली ,जबकि गजमुख का अर्थ केवल और केवल अन्दर की और मुख वाला यानि सत्य को अपने में ही खोजने वाला होता है |
ऐसे ही कुछ लोगो ने एक जगह साबित करने का प्रयास किया कि "श्री राम ने माता सीता को मदिरा पान कराया था |" श्री राम और सीता के लिए तो बात करना ही महापाप है ही | बल्कि क्षत्रिय कभी भी मदिरा--पान नहीं किया करते थे ! यह सोमरस का पान होगा सोमरस ,सोम नामक एक लता का अर्क(रस) होता है जो क्षत्रियो को वैज्ञानिक और प्राकृतिक रूपसे आवश्यक पेय है, क्योंकि इससे प्राण बलवान बनता है,क्षत्रिय की उत्पत्ति हृदय से हुयी है और यहीं प्राण का भी निवास-स्थल |
एक और बात,भ्रम कुछ ही दिन फैलाया जासकता है, उसके जरिये मानवता के शत्रुओ को हराना कोरी कल्पना है |किसी के लुभावने नारों से कोई ज्यादा दिन नहीं ठगाया जासकता | आखिर लोग सवाल तो करेंगे ही की आर्यों के डीएनए तो यूरेशियाई से मिला लिए लेकिन इससे यह कहाँ साबित हुआ कि आर्य वहा से यहाँ आये ??? इससे तो यह भी तो साबित होगया कि युरोशियाई और सम्पूर्ण विश्व पर भारतीय क्षत्रियो का ही साम्राज्य था |चक्रवर्ती सम्राट तो होता ही वह है, जिसके राज्य में कभी सूर्य अस्त ही नहीं हुआ करता ?????? और यह कोई संयोग नहीं होसकता कि महाराज अम्बरीष ही पहले चक्रवर्ती सम्राट है ,क्योंकि उन्होंने ही वर्तमान अमरीका जो सही मायने में अम्ब्रीषा का ही अपभ्रंस है, पर सभ्यता (आर्यत्व )स्थापित किया था |और आपको जानकर दुःख होगा कि भारत कि अधिकांश जातियां जो आजकल अपने को मूलनिवासी होने,का ढिंढोरा पीट रही है, के डीएनए अफ़्रीकीयों से मिलते है |तब क्या यह नहीं समझा जाये कि यह लोग अफ्रीका से भारत आये है | इसलिए अपनी जानकारी को सही दिशा में लेजाने कि जरुरत है |जिनके डीएनए यूरेशियाईयों से मिलते है वे आर्य भी यही से वहा गए है | और अफ्रीका के द्रविड़ भी भारत से ही गए है जो देवी के उपासक थे वे देविद से द्रविड़ कहलाये और जो कभी भी किसी एक देवता के उपासक नहीं रहे ,यानि बहुदेवी-देवताओं का उपासक,और अनीश्वरवादी यानि सिर्फ प्रकृति के उपासक भी रहे वे सभ्य और सुसंस्कृत लोगो के लिए एक शब्द आर्य का प्रयोग होने लगा | आर्य शब्द का संधि विच्छेद है आ+रिय ,यहाँ "आ"धातु से व्युत्पित है और यहाँ आ आचरण का लघु रूप धोतक है ठीक वैसे ही जैसे उ.प्र. उत्तर-प्रदेश ,और म.प्र.,मध्य-प्रदेश का लघुरूप है |एक जगह आपने कमेन्टकिया था की श्री राम ने माता सीता को मदिरा पान कराया था |क्षत्रिय कभी भी मदिरा--पान नहीं किया करते थे ! यह सोमरस का पान होगा सोमरस ,सोम नामक एक लता का अर्क(रस) होता है जो क्षत्रियो को वैज्ञानिक रूपसे आवश्यक पेय है क्योंकि इससे प्राण बलवान बनता है,क्षत्रिय की उत्पत्ति हृदय से हुयी है और यहीं प्राण का भी निवास-स्थल |

अपने आपको भारत का मूलनिवासी और अपनी संख्या भारत कि जनसँख्या का ८५% बताने वाले क्या यह नहीं जानते हैकि इस देश में १९ करोड़ तो केवल राजपूत (हिन्दू,मुश्लिम, और सिक्ख राजपूत सहित ) ही है| इसके अलावा खत्री ,मराठा,जाट ,गुर्जर ,अहीर, मीणा(मत्स्य वंशी क्षत्रिय) ,लोध राजपूत ,कुर्मी और धाकड़ भी निश्चय ही क्षत्रियो के वंशज और केवल इन्ही की जनसँख्या कम से कम ४०% से ज्यादा है, तब केवल अपने को क्षत्रिय मानने वालो की जनसँख्या भी ५५%से ज्यादा है |फिर इनका ८५% का आंकड़ा किसे भ्रमित कर रहा है ?? कुछ लोग शिशोदिया राजपूत महाराज शिवाजी की तो पूजा कर रहे है, जबकि उसी कुल के महाराणा प्रताप को कोई स्थान नहीं |जबकि उस महान व्यक्ति ने जीवन भर दलितों के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर संघर्ष किया ,मेवाड़ के राज्य चिन्ह में भील समिलित है |महाराज शिवाजी निसंदेह पूजनीय है किन्तु उनके ऊपर ब्राह्मणों का इतना अधिक प्रभाव था, कि कुछ समय बाद उस भोसले(शिशोदिया) वंश का राज्य ही ब्रह्मण पेशवाओ ने अधिकृत कर लिया |
ऐसी ही बहुत सी बहुत सी बाते लोगो में भ्रम फ़ैलाने के लिए प्रचलित कि हुयी है |कुछ लोगतो यह भी सपना पाल रहे है कि अर्यो को भारत बहार से भगा देंगे ,,ऐसा सोचने मुर्ख तो है ,साथ भारत को एक गृहयुद्ध के लिए भड़का रहे है |क्योंकि जिस आर्य समुदाय में ५५% से ज्यादा क्षत्रियो कि संख्या हो, उस समुदाय को भगाने के लिए तो सम्पूर्ण विश्व कि शक्ति भी बहुत ही कम पड़ेगी |जब तक ऐसी कपोल कल्पना से लुभावने नारे दिए जाते रहेंगे तब तक जातीय वैमनष्यता और भी मजबूत होती जाएगी वैसे भी आरक्षण का बिष तो इसमें घुला ही हुआ है |

यदि जब भ्रमित-लोग श्री राम को और कृष्ण को गाली देंगे तो उन्हें अपना पूर्वज मानने वाले समस्त क्षत्रिय जाट ,राजपूत ,गुर्जर,मीणा,भील अहीर के आपस की विभेदता को भूलकर इनका मुकाबला करने के लिए एक जुट होजाएंगे |उसका परिणाम किसी भी दृशी से राष्ट्र और समाज के लिए उचित नहीं होसकता |इसलिए नफ़रत फ़ैलाने वाले चाहे राष्ट्रवाद के नाम पर और फिर चाहे खोखले मूलनिवासी केनाम पर नफरत फैलाये !!!!!!!!,यह जातीय-वैमनष्यता औरभी मजबूत होती जाएँगी |और ब्रह्मान्वादियो को साजिश करने का पर्याप्त समय मिलता रहेगा |क्योंकि हमारी शोध-संस्थान इस नतीजे पर पहुंची है कि सभी धर्म शास्त्रों में जो जोड़तोड़ हुआ है वो महाभारत के बाद महाराज परीक्षित की नागवंशी तक्षक के द्वारा मृत्यु के बाद, महाराज जन्मेजय के नागवंश को समाप्त करने के लिए किये गए युद्धों में व्यस्त होजाने और तब से लेकर लगातार युद्धों के कारण ही धर्म शास्त्रों में जोड़-तोड़ किया गया तभी वर्तमान छुआछुत की जननी मनुस्मृति(प्रचलित) ब्रह्मण शासक पुष्यमित्र शुंग द्वारा महाराज मनु के नाम पर दिक्षित कर प्रचलित की गयी थी| इसी काल में मूल जय ग्रन्थ(महाभारत),पौलस्त्य-वध(रामायण) और समस्त धर्म ग्रंथो को गायब कर उन्हें दूषित कर वर्तमान विरोधाभाषी ग्रन्थ सामने ला दिए गए |

आपको यह सभी बाते इसलिए बताई है, क्योंकि मुझे लगता है कि ज्ञान दर्पण के पाठक वही हैं जोकि ज्ञान (सास्वत-सत्य) की खोज में है और यदि आपका प्रयास सही दिशा में होगा तो निश्चित रूपसे आज नहीं तो कल ,और कल नहीं तो फिर कभी आप उस ज्ञान (शास्वत-सत्य) को खोज ही लेंगे| किन्तु यदि आदमी की दिशा सही नहीं हो तो ,समय बहुत ज्यादा लगजाता है |और यदि बार -बार दिशा बदले तो शायद वह फिर सत्य को कभी खोज भी नहीं पाए |बहुतसे लोग ऐसी ही एक संस्था "बामसेफ" नामक भ्रमजाल के उसी तरह मानसिक गुलाम है जैसे अधिकांश सवर्ण बुद्धिजीवी (जो बुद्धि को व्यवसाय बना ले )पंडा-वाद के मानसिक गुलाम है |और वे कुतर्क करते हुए तर्क-शास्त्र की कला में अपने आपको को माहिर मानते है |जबकि उन्हें यह नहीं मालूम की तर्क और कुतर्क दो अलग अलग एक दुसरे के विपरीत गुणों वाले और परिणाम दायक है | तर्क का परिणाम संतुष्टि और शांति होती है जबकि कुतर्क का परिणाम असंतुष्टि और अशांति निश्चित है | अतः जातीय वैमनष्यता के पनपने में जितना दोष बुद्धिजीवी पंडा-वाद का है उतना ही दोष जाति आधारित राजनितिक दल एवं सुधारवाद के नाम पर घृणा प्रसारक संगठनों का भी है |

"जय क्षात्र-धर्म"

कुँवरानी निशा कँवर
श्री क्षत्रिय वीर ज्योति

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6टिप्पणियाँ

  1. नमस्ते आप पुष्मित्र के बारे मे क्या जानते है .....अशोका वन्धन से पुष्यमित्र के बारे मे बताइए ...ओर पुष्मित्र ने सनातन धर्म की रक्षा की थी हतियार तो अशोक था ....

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  2. मूल निवाशी लेखक स्वप्निल कुमार की पुस्तक पड़ना कभी हसते हसते लोट पॉट हो जाउगे ...उसके कुछ बातें यहा लिख रहा हु " मनु मुल्निवाशी थे ,,,,लेकिन आज कल के मुल्निवाशी मनु को गाली देते है ....अग्नि ओर अश्वनी आदि देवता मूल निवाशी थे ...

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  3. hmara ye blog avashya pdna http://ambedkaritemyths.blogspot.in/

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  4. बुध ग्रंथो मे ब्राह्मण वाद महापदाना सुत्तंत एक बोद्ध ग्रंथ है
    शायद मनुस्मृति के साथ इसे भी जलाना चाहिए अम्बेद्कर्वादियो को
    क्युकी इसके अनुसार गौतम बुद्ध कहते है की जितने भी बुद्ध है
    यानि बोद्ध धर्म में 29 बुद्ध है
    वे सब केवल ब्राह्मण और क्षत्रिय कुल में जन्म लेते है ।
    सच्चा जातिवाद विरोधी अगर कोई है तो उसे इस ग्रंथ का विरोध करना चाहिए
    मैं तुम्हे एक और बोद्ध ग्रंथ का नाम बताता हु जो है ललितविस्तर सुत्त
    उसका अध्याय 3 और 21वा पैराग्राफ या श्लोक पड़े
    अध्याय 3 का नाम ही है ' परिवार की पवित्रता '
    इसमें तो बुद्ध कहते है की
    "बोधिसत्व केवल पवित्र कुल यानि ब्राह्मण और क्षत्रिय में ही जन्म लेते है ,मिश्रित कुल या मजदूरी करने वालो के कुल में नहीं ।"
    तो बताइए
    कब इस ग्रंथ का विरोध करने वाले है आप
    मैं भी आऊंगा वहा

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