सुहाग पर भारी पड़ा राष्ट्र के प्रति कर्तव्य

Gyan Darpan
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रावल अखैसिंह की मृत्युपरांत सन १७६२ में रावल मूलराज जैसलमेर की राजगद्दी पर बैठे | उनके शासन काल में उनका प्रधानमंत्री स्वरूपसिंह जैन जो वैश्य जाति का था बहुत भ्रष्ट व स्वेछाचारी था | उसके षड्यंत्रों से सभी सामंत बहुत दुखी व नाराज थे पर प्रधान स्वरूपसिंह जैन ने रावल मूलराज को अपनी मुट्ठी में कर रखा था,रावल मूलराज वही करते जो स्वरूपसिंह कहता,वही देखते जो स्वरूपसिंह दिखाता | स्वरूपसिंह ने शासन व्यवस्था का भी बुरा हाल कर रखा था | उसके कुकृत्यों से जैसलमेर का युवराज रायसिंह भी बहुत अप्रसन्न था | अत: कुछ सामंतो ने युवराज रायसिंह को सलाह दी कि- "स्वरूपसिंह की हत्या ही इसका एक मात्र उपाय है | इसी में जैसलमेर रियासत और प्रजा की भलाई है |"

युवराज इस बात से सहमत हो गए और भरे दरबार में जाकर रावल मूलराज के समीप बैठे प्रधानमंत्री स्वरूपसिंह जैन की तलवार के एक ही वार से हत्या करदी | अकस्मात हुई इस घटना से विचलित और अपनी हत्या के डर से रावल तुरंत उठकर अंत:पुर में चले गए |
दरबार में उपस्थित अन्य सामंतो ने युवराज रायसिंह से रावल मूलराज का भी वध करने का आग्रह किया पर युवराज ने अपने पिता की हत्या को उचित नहीं माना | और इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया | पर इस प्रस्ताव को रखने वाले सामंतों को अब डर सताने लगा कि रावल की हत्या का प्रस्ताव रखने के चलते रावल उन्हें माफ़ नहीं करेंगे सो रावल से नाराज सामंत मण्डली ने युवराज रायसिंह को सिंहासन पर बैठा उनका राजतिलक कर दिया | रायसिंह ने सामंत अनूपसिंह को अपना प्रधान मंत्री नियुक्त किया और उसकी सलाह पर अपने पिता रावल मूलराज को कैद कर कारावास में बंद कर दिया |

अनूपसिंह ने भी प्रधानमंत्री बनने के बाद अपनी चलाई तीन महीने में ही उसकी अदूरदर्शी नीतियों व भ्रष्ट कार्यों के चलते जैसलमेर राज्य में अव्यवस्था फ़ैल गयी | अनूपसिंह की पत्नी जो राठौड़ों की महेचा शाखा की पुत्री थी को रावल मूलराज को कैद और अपने पति की करतूतों की वजह से राज्य में अशांति ठीक नहीं लगी | वह अपने पति प्रधानमंत्री अनूपसिंह के क्रियाकलापों व रावल को कैद से उद्वेलित थी और रावल को कैद और राज्य में अशांति की वजह अपने पति को मानती थी | उस राठौड़ रमणी माहेची का दृदय देशभक्ति में व्याकुल हो गया | उसने किसी तरह से रावल मूलराज को कैद से आजाद कराकर वापस राजगद्दी पर बैठाने की ठान ली पर उसके इस देशभक्ति से परिपूर्ण कार्य में सबसे बड़ी अड़चन उसका खुद का पति था |
उसका मन बहुत उद्वेलित था एक तरफ अपनी मातृभूमि का कल्याण था दूसरी तरफ उसका अपना पति, एक तरफ देश के प्रति कर्तव्य था तो दूसरी तरफ उसका अपना सुहाग , एक तरफ उसके मन में अपने राज्य को अशांति से निजात दिलाने का पवित्र कर्तव्य था तो दूसरी तरफ इस कार्य में रूकावट बने अपने पति की हत्या कर अपना घर अपनी जिन्दगी तबाह कर लेना था |
आखिर सुहाग पर देश भक्ति भारी पड़ी ,प्रणय के आगे कर्तव्य भारी पड़ा और उस राजपूत वीरांगना ने तय कर लिया कि -" अपनी मातृभूमि के प्रति कर्तव्य के बीच में यदि उसका सुहाग आड़े आता है तो उसकी भी हत्या कर देनी चाहिए |" और उस माहेची राठौड़ वीरांगना ने सबसे पहले रावल को कैद से मुक्त कराने में अड़चन बने अपने पति अनूपसिंह की हत्या करवाने की ठान ली |

उस वीरांगना ने अपने पुत्र जोरावरसिंह को बुला कर कहा -" पुत्र तुम्हारे पिता ने जैसलमेर के शासक को बंदी बनाने में अपनी महत्तवपूर्ण भूमिका निभा देशद्रोह का कार्य कर अपने कुल को कलंकित किया है और उस कलंक को अब तुम्हे धोना है अपने देशद्रोही पिता की हत्या कर |"
पुत्र तुम्हे रावल को आजाद कराना है यही तुम्हारा मातृभूमि के प्रति कर्तव्य है और इस कर्तव्यपालन के बीच तुम्हारे पिता सबसे बड़ी अड़चन ,इसलिए सबसे पहले उन्हें ही मार डालो और दुष्ट रायसिंह को राजसिंहासन से उतार दो |"

अपनी वीर माता का कठोर संकल्प सुनकर पुत्र जोरावरसिंह ने अपनी सहमती देते हुए माता के आग्रह पर रावल को कैद से मुक्त कराकर वापस सिंहासन पर आरूढ़ कराने की प्रतिज्ञा की |

पुत्र से प्रतिज्ञा करवाने के बाद उस वीरांगना ने अपने देवर अर्जुनसिंह व बारू के सामंत मेघसिंह को भी बुलाकर रावल मूलराज का उद्धार कर जैसलमेर राज्य को बचाने की प्रतिज्ञा करवाई | जोरावरसिंह ने अपने चाचा अर्जुनसिंह व सामंत मेघसिंह के साथ सेना लेकर कारागार में घुस रावल मूलराज को तीन माह चार दिन की कैद के बाद मुक्त करा दिया और उसे वापस जैसलमेर के राजसिंहासन पर बिठा दिया |
रावल मूलराज ने सिंहासन पर वापस बैठने के बाद अपने पुत्र रायसिंह को देश निकाला दे दिया |
इस तरह एक राजपूत वीरांगना ने अपने देश के प्रति कर्तव्य निभाने हेतु देश में अशांति व भ्रष्टाचार फ़ैलाने के उतरदायी अपने पति की भी हत्या करवा दी |

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9टिप्पणियाँ

  1. राजस्थान का इतिहास कैसी कैसी घटनाओ से परिपूर्ण है और हमारे नेता बच्चो को विदेशी लोगो की कथायें पढ़ाते है पता नही कब इन मूर्खो को अकल आयेगी

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  2. ये हमारे देश की महिला ऐसी होती है,

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  3. पढ़कर बहुत अच्छा लगा और गर्व हुआ।

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  4. ohhhhh ........garv h mujhe mere desh p aur mere rajsthan p

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  5. हस्ती मिटती नहीं हमारी.............
    इन्ही के दम पे है कायम हिन्दोस्तान हमारा

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  6. प्रणाम... राजस्थान की धरती को ...

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  7. khamma ghani hkm...jaisalmer re itihas ri mahatvpuran jankari dirai..bahoot hi umda

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  8. जय माताजी हुकुम आभार आपका और जो आपने लिखा हे की मूलराज को केद में डालकर उनके पुत्र का राजतिलक हुआ वह सही नहीं हे खाली राज्य भार उन्होंने संभाला था बाद में अनोपसिंह ने स्वरूपसिंह को मरवाया था उन्ही के पुत्र ने रामसिहोत हम सब और झिनझिनयाली के अनोपसिंह के पुत्र जोरावरसिंह ने मिलकर उनको केद से मुक्त करवाया बाद में मूलराज ने स्वरुसिंह के क्रूर पुत्र सलिम्सिंह को अपना मंत्री बनाया जिसने सारे राज्य का सत्यानाश कर दिया उनके पुत्रों का वध करवा दिया कई सामंत गणों का और पालीवालों को जैसलमेर के 84 गाँव खाली ऐक हि रात में खाली करा दिया

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