टका वाळी रौ ई खुणखुणियौ बाजसी

Gyan Darpan
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टका वाळी रौ ई खुणखुणियौ बाजसी = टका देने वाली का ही झुनझुना बजेगा |

सन्दर्भ कथा --- एक बार ताऊ मेले में जा रहा था | गांव में ताऊ का सभी से बहुत अच्छा परिचय था सो गांव की कुछ औरतों ने अपने अपने बच्चो के लिए ताऊ को मेले से झुनझुने व अन्य खिलौने लाने को कहा और ताऊ सबके लिए खिलोने लाने की हामी भरता गया | इनमे से एक गरीब औरत ने ताऊ को हाथों हाथ ४ आने देकर अपने बच्चे के लिए एक झुनझुना लाने का आग्रह किया | सभी औरते ताऊ का मेले से लौटने का इंतजार करती रही और अपने बच्चो को बहलाती रही कि ताऊ मेले गया है तुम्हारे लिए खिलौने मंगवाए है | आखिर शाम को ताऊ मेले से लौट कर आया तो सभी औरतों और उनके बच्चो ने ताऊ को घेर लिया पर उन्हें आश्चर्य के साथ बड़ा दुःख हुआ कि ताऊ तो सिर्फ एक झुनझुना लाया था उस बच्चे के लिए जिसकी माँ ने पैसे दिए थे | ताऊ ने सभी से मुस्कराकर कहा "मैंने मेले में दुकानदार से सभी के लिए खिलौने मांगे थे पर बिना पैसे खिलौने देना तो दूर कोई बात तक नहीं करता | जिसने पैसे दिए ,उसी का बच्चा झुनझुना बजायेगा |

मानवीय संसार में सर्वत्र धन का बोलबाला है धन के अभाव में तो बच्चो के लिए झुनझुना आता है और ही जवान और बुजुर्गों के लिए सुख-सुविधा के साधन उपलब्ध हो सकते है | धन नहीं तो कुछ भी नहीं |

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13टिप्पणियाँ

  1. सही है। धन जरूरी है। वह श्रम से अर्जित होता है जो हर कोई कर सकता है। अर्जित भी करे और कुछ बचा कर भी रखे।

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  2. धन जरूरी है,लेकिन ताऊ बहुत उस्ताद है .

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  3. एक पुराना गीत याद आ गया "तू जो नहीं है तो कुछ भी नहीं है", शायद धन के लिए यह लागू होता है.

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  4. अच्छी सीख ......
    ना बाप ना भइया ....सबसे बड़ा रूपया .

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  5. बहुत रोचक किस्सा.. देसी बोली में इस्तेमाल होने वाली कहावतों को पेश करने के लिए आभार..

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  6. हां सही कहा आपने. पैसा तो हाथ क्का मैल है पर साबुन सेनहाने के लिये ये मैल होना भी बहुत जरुरी है.

    रामराम.

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  7. कहावत का अर्थ कहानी के द्वारा सभी पाठ्को को समझ मे आ गया । औ साथ मे ताऊ कि तो बात ही निराली है कही एसा ना हो कि ताऊ छाप माचीस ,ताऊ छाप गुट्खा आदि भी बाजार मे आ जाये ।क्यो कि ब्लोगीवुड मे ताऊ सुपर स्टार है

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  8. बहुत खूबृ रतन सिंह जी आप क्‍यों न मेरे अंचल कहावतें http://kahawatein.blogspot.com/ ब्‍लॉग में ऐसी कहावतें दें। आपके ब्‍लॉग के साथ कहावतें में भी यह छपेगी तो बड़ा संदर्भ कोष तैयार होगा। आप अनुमति दें तो मैं आपको लिंक भेज देता हूं।

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  9. व्यवहारिक कथा है , अगर सकोंचवश अपने पैसों से उनके बच्चो के लिए खिलोने खरीद भी लिए जाते तो अगली बार फिर वही
    फरमाइश होती . तभी तो कहा है " पैसों के लें दें में हिसाब तो बाप बेटे का भी होता है ". मेरा एक दोस्त करीब 20 साल बाद ऑरकुट से जैसे तैसे मिल गया , में बहुत खुश हुवा ,दोनों में काफी दिन फ़ोन पे बात होती रही . करीब एक महीने के बाद उसने मुझसे पैसे मांगे .मुझे बहुत अटपटा लगा . हमें मिले हुए २० साल का लम्बा समय बीत चूका था . उस दिन के बाद में उसका फ़ोन रिसीव करना बंद कर दिया और उसके फ़ोन आने भी बंद हो गए . पता नहीं मेने अच्छा किया या बुरा मगर अफ़सोस हुवा की पैसो की खातिर हम फिर दूर हो गए .

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