यहाँ मन्नत मांगी जाती है छ: सौ वर्ष पुरानी बैलगाड़ी से | Lok Devta Hadbuji Sankhla

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विविधताओं से भरे हमारे देश में देवताओं, इंसानों, पशुओं, पक्षियों व पेड़ों की पूजा अर्चना तो आम बात है| लेकिन आज हम एक ऐसे स्थान की जानकारी देंगे जहाँ एकबैलगाड़ी की पूजा अर्चना की जाती है| लोगों की मान्यता है कि लगभग ६०० वर्ष पुराणी इस चमत्कारी बैलगाड़ी के निचे से निकलने पर कई रोगों से छुटकारा भी मिलता है| और यहाँ पुजारी जी दावा करते हैं कि ये गाड़ी पहले अपने आप रात में मंदिर से निकलकर गांव में भ्रमण करती थी|

मंदिर में रखी इस गाड़ी की दूर दूर से लोग पूजा करने और मन्नत मांगने आते हैं | पुजारी का दावा है कि इस गाड़ी के नीचे से निकलने पर कई रोगियों के असाध्य रोग ठीक हुए हैं | आस-पास के लोग ही नहीं दूर दराज के लोग भी यहाँ आकर मत्था टेकते हैं और लाभान्वित होते हैं|

मंदिर में रखी ये गाड़ी राजस्थान के प्रसिद्ध के लोक देवता हड़बू जी सांखला की है | हड़बू जी सांखला जोधपुर के संस्थापक राव जोधा के समकालीन थे| राव जोधा का जन्म सन 1416 ई. में हुआ था और निधन 1489 ई. में, इस तरह हड़बू जी सांखला की यह गाड़ी आज से लगभग 600 वर्ष से ज्यादा पुरानी है|

हड़बू जी की इस गाड़ी के बारे में कहा जाता है कि ये बिना बैलों के ही चलती थी| इस गाड़ी को सांप और सियार चलाते थे| हड़बू जी परोपकारी संत थे वे गाड़ी में अनाज भरकर अकालग्रस्त, भूखों और गरीबों को बांटा करते थे, साथ ही गायों की सेवा किया करते थे| उनकी इस गाड़ी के बारे में दावा किया जाता है कि इसमें कभी अन्न आदि ख़त्म नहीं होता था | हड़बू जी अपनी तपस्या और सत्संग आदि के साथ अनवरत गरीबों की सेवा करते थे|

पंच पीरों में गिने जाने वाले महान सिद्ध पुरुष हड़बू जी सांखला शकुन विद्या के तगड़े जानकर थे | हड़बू जी का जन्म नागौर में भूड़ेल के शासक मेहराज जी सांखला के घर 13 सदी के उत्तरार्ध में 1391 ई को हुआ। सिरड़ गांव के तालाब पर मिले शिलालेख के अनुसार मेहराज सांखला व रणकदेव भाटी एक युद्ध में लड़ते हुए जुझार हुए। छह भाइयों में सबसे बड़े हड़बूजी अपने पिता की भांति वीर योद्धा थे। भूड़ेल छोड़ने के पश्चात् हड़बू जी ने सिरड़ गांव के समीप एक जाल के वृक्ष के नीचे डेरा लगाया। वह जाल का वृक्ष हरभमजाल कहलाया। वहीं पर उन्हें मौसेरे भाई बाबा रामदेवजी मिले और उनके कहने पर उन्होंने अस्त्र शस्त्रों का त्याग कर योगी बालीनाथ को अपना गुरु बनाया, तपस्या की और योद्धा से योगी बने। वहां से चलकर हड़बू जी ने बेंगटी गांव को अपनी कर्मस्थली बनाया।

हड़बू जी का विवाह सिद्ध पुरुष व तत्कालीन मालानी के शासक रावल मलीनाथ जी महेचा राठौड़ की पौत्री जो वीर जगमाल की बेटी थी, के साथ हुआ। हड़बूजी को मलिनाथजी ने दहेज में ये गाड़ी दी थी जो आज भी हड़बू जी के मंदिर बैंगटी में मौजूद है|

राठौड़ रणमल की हत्या कर मारवाड़ की राजधानी मंडोर पर मेवाड़ वालों ने कब्ज़ा कर लिया था| रणमल राठौड़ का पुत्र, जोधपुर का संस्थापक राव जोधा मंडोर को मेवाड़ से आजाद कराने के लिए गुरिल्ला युद्ध के रूप में संघर्ष कर रहे थे| उसी संघर्ष के दौरान राव जोधा की जंगल में हड़बू जी सांखला से भेंट हुई| राव जोधा ने हड़बू जी से मेवाड़ के खिलाफ अपनी आजादी की जंग में सफलता का आशीर्वाद मांगा| हड़बू जी ने राव जोधा को मारवाड़ में उसका पुन: राज्य स्थापित होने का आशीर्वाद देते हुए भविष्यवाणी की कि "जोधा तुम्हारा राज्य मेवाड़ से जांगलू तक फैलेगा|" हड़बू जी के आशीर्वाद के बाद राव जोधा मंडोर पर अपना शासन स्थापित करने में सफल रहे वहीं हरभूजी की जांगलू तक उसके राज्य प्रसार की भविष्यवाणी तब सच हुई जब राव जोधा के पुत्र बीका ने काका कांधल के सहयोग से जांगलू प्रदेश पर अधिकार कर बीकानेर बसाया और उसे अपनी राजधानी बनाया, जहाँ भारत की आजादी तक उनके वीर वंशजों का शासन रहा|

राव जोधा ने मंडोर का राज्य मिलने के बाद हड़बू जी को बैंगटी गांव भेंट किया | जो फलोदी के पास स्थित है और इसी गांव में हड़बू जी का मंदिर बना है जिसमें यह चमत्कारी गाड़ी पूजी जाती है | बैंगटी गांव में बने इस मंदिर का निर्माण सन 1721 ई में जोधपुर के शासक अजीतसिंह जी ने करवाया था, उस समय इसकी लागत सात हजार रूपये आई थी|

जन श्रुतियों के अनुसार हड़बू जी सांखला ने रामदेवरा में बाबा रामदेव तंवर की समाधी में ही जीवित समाधि ली थी|

हरभूजी सांखला क्षत्रिय थे| सांखला परमार क्षत्रियों की एक शाखा हैजोधपुर के मंडोर उद्यान में स्थित देवताओं की साल में लगी विभिन्न लोकदेवताओं की प्रतिमाओं में हड़बू जी सांखला की भी प्रतिमा लगी है जो चट्टान काटकर उत्कीर्ण की गई है| हड़बू जी सांखला को शकुन विद्या में महारथ हासिल थी, शकुन देखकर उन्होंने कई भविष्यवाणीयां की थी, जिन पर जानकारी अलग लेख में देंगे|

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