सत्रहवीं शताब्दी के महान संत सुधारक बाबा कीनानाथ जी का जन्म सन 1684 ई. में वाराणसी जिले के चंदौली तहसील के रामगढ में हुआ था। बचपन से ही बाबा साधना में रूचि रखते थे। इनके पिताजी अकबरसिंह एक प्रतिष्ठित जमींदार थे। इनकी माता का नाम मंशादेवी था जो सिकरवार कुल की कन्या थी। वे हमेशा एकांत में रहना, कम बोलना और लोगों से दूर रहते थे। निरन्तर भगवान राम का नाम मुख पर रहता था। घर वालों ने बचपन में इनका विवाह कर दिया, मगर गौने के पहले ही इनकी पत्नी का निधन हो गया। आप संयोगी वैष्णव शिवाराम के संरक्षण में अघोर साधने करने लगे। तंत्र साधना के कुल सोलह मार्ग है और उन सौलह मार्गों के अलग अलग सम्प्रदाय है। घोर का अर्थ संसार और अघोर का तात्पर्य है संसार में रहते हुए भी संसार से पूर्णतया विरक्त रहना।
उस समय ऐतिहासिक संघर्ष के कारण इससे भी अधिक अनाचार, व्याभिचार फैला हुआ था। यह सब बाबा कीनानाथ से नहीं देखा गया और उन्होंने अघोर साधना के विशुद्ध रूप को समाज के सामने लाने का संकल्प लिया। उन्होंने सम्पूर्ण भारत को एकता के सूत्र में बांधने का कार्य किया। पूर्व में कोलकाता, दक्षिण में हैदराबाद और गुजरात तक उनकी कीर्ति फैली हुई थी। अनेक राजाओं के दरबार में इनका सीधा दखल रहता था। इनके संदर्भ में बहुत सी चमत्कारिक कहानियां प्रचलित है। आपने चार मठ अपने पैतृक गांव रामगढ (चंदौली), अपने ननिहाल देवला (गाजीपुर), क्रीकुण्ड (वाराणसी) और हरिपुर (जौनपुर) में स्थापित किये जो आज भी विद्यमान है। इसके अलावा आपने 84 कुटियों की भी स्थापना की थी।
परमपूज्य अघोराचार्य बाबा की पांच प्रमुख रचनाएँ प्रसिद्ध है- विवेकसार, गीतावली, राम रसाल, उन्मुनी राम और राम गीता। ये पुस्तकें आज पूर्वांचल विश्वविद्यालय जौनपुर के स्नातक कलावर्ग में पढ़ाई जा रही है।
’’मारन, सोहन वशीकरण, उच्चाटन निजमन्त्र,
राम बिना मिथ्या सबै, राम नाम निज तंत्र।’’
इस प्रकार बाबा एक उच्चकोटि के कवि भी थे और अपनी रचनाओं के माध्यम से पीड़ित समाज की सेवा करते थे। इनका निधन सन 1844 ई. में 104 वर्ष की अवस्था में हुआ था। हालाँकि यह अघोरमत के विद्वानों के मतानुसार है। आपने जिन्दा समाधी ली थी इसलिए आपको कालजयी कहा जाता है।
बाबा के संदर्भ में जो भी प्रमाणित तथ्य उपलब्ध है उससे यह ज्ञात होता है कि बाबा कीनाराम अपने समय के महान पुरुषों में थे जिन्होंने अध्यात्म के बल पर उस समय के पीड़ित समाज को नई राह दिखाकर दिशा दी। आज भी काशी क्षेत्र एवं पूर्वी बिहार में बाबा के लाखों समर्पित अनुयायी मिलते है, जो उनकी प्रसिद्धि प्रमाणित करती है।
लेखक : सुनील कुमार सिंह सिकरवार
देवल, गाजीपुर (उ.प्र.) फोन- 7309275421