कर्नल टॉड को राजस्थान का इतिहास लिखने की चुकानी पड़ी थी ये कीमत

Gyan Darpan
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कर्नल जेम्स टॉड ने राजस्थान का इतिहास लिखा। इसके लिए उसने अनेक प्रमाणिक संसाधन एकत्रित किये। जैसे पुराण, रामायण, महाभारत, अनेक राज्यों व राजवंशों की ख्यतें, पृथ्वीराजरासो, खुमाणरासो, हमिरारासो, रतनरासो, विजयविलास, जयविलास, सूर्यप्रकाश, हमीरकाव्य और ना जाने कितने क काव्य, नाटक, व्याकरण कोश, ज्योतिष, शिल्प, महात्म्य, जैन साधुओं द्वारा लिखित अनेक पुस्तकें, कई शिलालेखों का विवरण और राजपरिवारों के दस्तावेज। इन दस्तावेजों को समझने के लिए, उनका अनुवाद करवाने के लिए संस्कृत, प्राकृत व प्राचीन राजस्थानी भाषाओं के अच्छे ज्ञाता जैन यति ज्ञानचन्दजी को उसने गुरु बनाया और उनके सानिध्य में राजस्थान के इतिहास को समझा। चूँकि कर्नल जेम्स टॉड बड़े पद पर था, राजा-महाराजाओं के सीधे सम्पर्क में था, सो उसे जो चाहिए था, मिला। फिर उसके पद के चलते उसके पास भी इन चीजों को एकत्र करने के लिए पूरे संसाधन थे। लगभग साढ़े चार साल के सेवाकाल में तब उपलब्ध सुविधाओं का लाभ उठाते हुए उसने राजपूतों का राजनैतिक इतिहास, उनकी संस्कृति, साहित्य आदि को अधिकाधिक जानने समझने का भरसक प्रयास किया। और जगह जगह घूमकर ऐतिहासिक तथ्य व सामग्री एकत्र की। अपनी इसी विपुल सामग्री के आधार पर उसने राजस्थान का इतिहास लिखा जो विश्व प्रसिद्ध हुआ।

एक तरफ उसने राजस्थान को उसका व्यवस्थित इतिहास उपलब्ध कराया दूसरी ओर उसने चारणों, भाटों, ब्राह्मणों, पण्डितों, बुजुर्ग व्यक्तियों से सुनी सुनाई बातें इतिहास में जोड़ कर कई गलत तथ्य पेश कर ऐतिहासिक विकृतियाँ भी पैदा कर दी। हो सकता है उसका ऐसा का कोई मकसद नहीं रहा हो। फिर भी उसके लेखन की वजह से कई विसंगतियों का जन्म हुआ जो आज विवाद का विषय बनते रहते है। एक ओर उसके इतिहास लेखन की वजह से कई आधुनिक इतिहासकारों ने उसे यशस्वी लेखक के विशेषण से आभूषित किया, वहीं बहुत से इतिहासकार उसकी ऐतिहासिक भ्रांतियां फैलाने के लिए कटु आलोचना भी करते है।

कर्नल टॉड ने जहाँ अपने इतिहास लेखन से विश्व इतिहास में प्रसिद्धि पाई, उसी इतिहास लेखन की वजह से उसे अपने सेवाकाल के अंतिम वर्षों में अपने ही अधिकारीयों व सरकार की नाराजगी झेलनी पड़ी। यही नहीं उसके लिखे इतिहास को पढने के बाद उस पर भ्रष्टाचार का सन्देह भी व्यक्त किया जाने लागा। कर्नल टॉड कृत ‘राजस्थान का पुरातन एवं इतिहास’ पुस्तक की प्रस्तावना में इतिहासकार जहूरखां मेहर लिखते है- ‘‘इतिहास लेखन में राजपूतों के प्रति प्रशंसात्मक भाव रखने के कारण भारत में कार्यरत कम्पनी के उच्च-पदाधिकारी उसके सेवाकाल के अंतिम वर्षों में उससे पूर्ण रूप से संतुष्ट नहीं थे।’’ विशप हैबर ने सन 1824 ई. में लिखते हुए यह स्वीकार किया कि ‘‘राजपुताना के सम्पूर्ण उच्च एवं माध्यम वर्ग के लोगों में श्रीमान टॉड के प्रति सम्मान एवं स्नेह का भाव है। लेकिन उनका दुर्भाग्य रहा कि उनके द्वारा देशी राजाओं के निरंतर पक्षपात के कारण कारण कलकत्ता की सरकार को यह सन्देह हो गया कि वे भ्रष्टाचार में लिप्त चुके हैं। परिणामतः सरकार ने उनकी शक्तियों को सीमित करने के लिए उनके साथ दूसरे अधिकारी लगा दिए। सरकार के इस व्यवहार से उनका मन आक्रोश से भर उठा और उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया।

इस तरह कर्नल टॉड को राजस्थान के इतिहास में राजपूतों की वीरता का बखान कर उसे विश्व के सामने उजागर करने की सजा उनके जीवनकाल में ही उन्हीं की सरकार के हाथों भुगतनी पड़ी।

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