गुजराती बुखार और गुलर

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Gujrati Bukhar aur Gular

वि सं. 1908 के किसी एक दिन मेहरानगढ़ (जोधपुर दुर्ग) में दरबार लगा था| जिसमें मारवाड़ के सभी सामंत, जागीरदार उपस्थित थे| उनमें गुलर ठिकाने के जागीरदार ठाकुर बिशनसिंह भी शामिल थे| कई अन्य दरबारियों व जागीरदारों से वार्ता के बाद मारवाड़ के तत्कालीन महाराजा तख़्तसिंह (1843-73) ठाकुर बिशनसिंह की ओर मुखातिब हुए और रुष्ट होते उन्हें चेतावनी के रूप में कहा-
“ठाकरां जाणो छो कै नी हूं गुजराती छूं” (ठाकुर साहब जानते हो ना कि मैं गुजराती हूँ|)

महाराजा के कथन का अभिप्राय था कि मेरा जन्म गुजरात में हुआ है। गुजरात वाले बड़े क्रोधी और कठोर होते है। कहीं नाराजगी से आपका नुकसान न हो जाये|
ठाकुर बिशनसिंह ने तत्काल निर्भीकता पूर्वक उत्तर दिया-

“खमा ! महाराजा, हूँ जाणु छूं धणी गुजराती छै। पण हूँ गूलर रौ ठाकुर छूं|”

(ठाकुर बिशनसिंह ने तत्काल कटु व व्यंग भरा जबाब दिया कि- क्षमा करें महाराजा ! मैं जानता हूँ कि स्वामी गुजराती है पर मैं भी गुलर का ठाकुर हूँ|)
दरअसल गूलर के रस में सिक्त फूहे से गुजराती बुखार (निमोनिया) चला जाता है। ठाकुर के इस कटु किन्तु व्यंग्य भरे सत्य उत्तर से महाराजा तख्तसिंह की भृकुटी तनी की तनी रह गई।

महाराजा के हाव-भाव देखकर व ठाकुर बिशन सिंह का कटु और व्यंग्यपूर्ण जबाब सुनकर सभी जागीरदार देखकर अवाक रह गए| सभी के मन में आशंका घर कर गई कि भले आज महाराजा तख़्तसिंह चुप रह गए हों पर आने वाले समय में गुलर ठिकाने के खिलाफ सैन्य कार्यवाही अवश्य करेंगे|
दरअसल ठाकुर बिशनसिंह महाराजा तख़्तसिंह जी की अंग्रेज परस्त नीतियों के कटु आलोचक व विरोधी थे तथा अपने क्षेत्र में अंग्रेजों के खिलाफ गतिविधियों में संलग्न थे| महाराजा तख़्तसिंह जी ने उन्हें कई बार अंग्रेजों के विरोध की नीति छोड़ने के लिए समझाया पर स्वातंत्र्यचेता ठाकुर बिशनसिंह ने महाराजा की एक ना सुनी और वे सदैव अंग्रेजों व महाराजा के खिलाफ क्रांतिकारियों के साथ रहे| आखिरी वि. सं. 1910 में महाराजा ने कुशलराज सिंघवी के नेतृत्व में एक सेना गुलर भेजी| इस सेना का ठाकुर बिशनसिंह ने वीरतापूर्वक स्वागत करते हुए कड़ा प्रतिरोध किया परन्तु अपने स्वामी की अथाह ताकत के आगे आखिर ठाकुर बिशनसिंह ने गुलर का दुर्ग त्याग कर छापामार युद्ध प्रणाली अपनानी पड़ी| ठाकुर बिशनसिंह आउवा पर अंग्रेज सेना के आक्रमण के समय क्रांतिकारियों की सहायता के लिए आउवा में उपस्थित थे|

ठाकुर बिशन सिंह पर ज्यादा जानकारी के लिए राजस्थान के मूर्धन्य साहित्यकार इतिहासकार ठाकुर सौभाग्यसिंह जी शेखावत द्वारा लिखा गया लेख यहाँ क्लिक कर पढ़ा जा सकता है|

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