राष्ट्रीय अखबार “हिंदुस्तान” की पत्रकारिता का नमूना

Gyan Darpan
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आज सुबह “हिंदुस्तान” अखबार पढते हुए फरीदाबाद संस्करण के पेज संख्या 20 पर छपी एक खबर “हफ्ते में दो दिन कराएगी साइबरसिटी से खाटूनगरी के दर्शन” पर नजर पड़ते ही नजरें ठिठक कर उसी खबर पर रुक गई| बड़ी खुशी के साथ तन्मयता से पुरी खबर पढ़ी कि- बाबा श्याम की खाटूनगरी जाने वाले यात्रियों के लिए रेल्वे ने अब बेहतरीन इंतजाम किये है| और फिर आगे खबर में दिल्ली सराय रोहिल्ला से चलकर जोधपुर जाने वाली एक गाड़ी No. 22481/82 के खाटू में ठहराव की जानकारी दी गई थी|

खबर पढकर मेरी इस रेलगाड़ी के बारे में जानने की उत्सुकता और बढ़ गई कि- आखिर रेल्वे ने श्याम बाबा की नगरी खाटू पर ऐसी मेहरबानी कैसे कर दी कि जहाँ रेल पटरी ही नहीं है वहां रेलगाड़ी का ठहराव ही घोषित कर दिया गया है|
हालाँकि खाटू का नाम पढते ही मेरे दिमाग में तुरंत यह आशंका भी हो गई कि यह खबर अखबार के कार्यालय में बैठे संवाददाताओं के दिमाग की उपज मात्र है क्योंकि श्याम बाबा की खाटूनगरी किसी रेल्वे लाइन पर है ही नहीं| इस कस्बे के पास रींगस नाम का रेल्वे जंक्शन स्टेशन है अत: खाटू बाबा के दर्शन करने वाले रेल यात्री रींगस उतर कर बस या टैक्सी के माध्यम से खाटू नगरी पहुँचते है| रेल्वे ने जिस खाटू स्टेशन पर रेलगाड़ी के ठहराव की घोषणा की वह खाटू स्टेशन श्याम बाबा की खाटू नगरी से कोई लगभग 150 किलोमीटर दूर है| खबर में जिस रेलगाड़ी का जिक्र किया गया है वह खाटू नगरी जो सीकर जिले में है में भी नहीं घुसती और जिस खाटू स्टेशन पर ठहराव होना है वह नागौर जिले का खाटू स्टेशन है जो डीडवाना व डेगाना रेल्वे स्टेशनों के मध्य पड़ता है और श्याम बाबा की खाटू से लगभग 150 किलोमीटर दुरी पर है|

पर अखबार के संवाददाताओं ने सिर्फ खाटू का नाम सुनकर ही इसे श्याम बाबा के खाटू से जोड़ते हुए अपनी मन मर्जी से ही रेल्वे द्वारा श्याम बाबा के दर्शन हेतु सुविधा के लिए रेल के ठहराव की खबर बना छाप दिया गया| यदि खबर लिखने वाला थोड़ा भी दिमाग लगा लेता और इन्टरनेट पर इस रेलगाड़ी की जानकारी ले लेता तो अखबार की ऐसी फजीहत कराने वाली खबर बनाकर ना छापता| इस गाड़ी के बारे में यहाँ चटका लगाकर आप जानकारी ले सकते है|

यह उदाहरण साफ करता है कि अखबार व मीडिया के लोग अक्सर बिना पुरा मामला समझे या सुने अपनी मर्जी से ही घटना का आंकलन कर खबर बना प्रकाशित कर देते है जो लोगों को तो गुमराह करती है साथ ही मीडिया की विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़ा करती है| यही कारण है कि आज आम आदमी मीडिया की ख़बरों व मीडिया पर चलने वाली बहसों पर भरोसा करने के बजाय सोशियल साईटस पर मिलने वाली सूचनाओं और ख़बरों पर ज्यादा भरोसा करने लगा है| अब तक मीडिया द्वारा पेड ख़बरें छापना, सरकारी या अन्य किसी दबाव के चलते किसी खास दल, व्यक्ति या वर्ग की ख़बरें रोकने या पक्ष में छापने की बातें तो अक्सर सुनने में आती है साथ ही अपने अखबार के पन्ने भरने हेतु विभिन्न ब्लॉगस से ब्लॉग लेखक की बिना अनुमति लिए व बिना सूचित किये लेख छपते आप नित्य प्रति देख सकते है|

"हिंदुस्तान" अखबार भी ब्लॉगस से लेख लेकर अपने अखबार में छापता रहता है| ब्लॉग लेखक को इसके लिए कोई मानदेय देना तो दूर अखबार के कारिंदे उस लेखक को जिसका लेख छापते है एक ईमेल भेजकर सूचित करना तक जरुरी नहीं समझते| पर ऑफिस में बैठ मनघडंत ख़बरें छाप पाठकों को बेवकूफ बनाने का यह उदाहरण भी सामने आने से मन को और भी ज्यादा तकलीफ होती है और यह तकलीफ तब और बढ़ जाती है जब ऐसा कृत्य एक बड़े समूह के बड़े राष्ट्रीय अखबार के कर्मचारियों द्वारा किया गया हो|

आशा है अखबार के प्रबंधक इस लेख को पढ़ने के बाद दोषी पर आवश्यक कार्यवाही करेंगे| और कोई कार्यवाही नहीं कर आगे भी ऐसी फजीहत भरी ख़बरें छापते रहें तो मुझे क्या ? अखबार आपका, कर्मचारी आपके ! आप जाने !

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  3. अपने अखबार के पन्ने भरने हेतु विभिन्न ब्लॉगस से ब्लॉग लेखक की बिना अनुमति लिए व बिना सूचित किये लेख छपते आप नित्य प्रति देख सकते है|
    लेखकों के महत्‍वपूर्ण आलेखों को हिन्‍दुस्‍तान के साइबर संसार कॉलम में 100 शब्‍दों में बिना भुगतान के छापना, वे लेखक पर बड़ा उपकार मानते हैं। इस कॉलम में छपनेवाले कई आलेख संपादकीय पेज के मुख्‍यालेख हो सकते हैं। लेकिन नहीं, गलत-सलत विज्ञापनों से पैसा कमाना तो अखबारवाले बखूबी जानते हैं, पर लेखक को उचित भुगतान करने में इनकी कास्‍ट कटिंग वाली बातें उछलने लागती हैं। बड़ी दुर्दशा है भाई। ..............आपका आलेख आंखें खोलनेवाला है।


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  4. पत्रकारिता का गैर जिम्मेदाराना रवैय्या कुछ दिनों में बहुत बढ़ा है ।कई समाचारपत्र इधर -उधर से व् बिना ब्लॉग लेखक की अनुमति लिए समाचार पेस्ट कर दुकानदारी चला रहे है ।

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  5. बिना जाने समझे खबर छाप दी इसे पत्रकारिता का दिवालियापन हि कहा जाएगा !!

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  6. इन्हीं कारणों से अखबारों पर लोगों का भरोसा धीरे-धीरे उठता जा रहा है।

    इस समाचार को भी पढ़े "महात्मा गाँधी का दुर्लभ पत्र ब्रिटेन में होगा नीलाम।"
    ब्लॉग पता है :- smacharnews.blogspot.com

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  7. हा हा हा
    यही उम्मीद थी पत्रकारों की नई पीढ़ी से

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  8. बर्तमान समय में पत्रकारिता एक मिशन न होकर पूर्ण ब्यब्सायिक दुकानदारी हो रही है . यदि आपभी इस बात को मानते है तो हमने पत्रकारिता में निखर लेन व ईमानदार पत्रकारों का सम्मान करने के लिए ही शहीद गणेश गणेश शंकर विधार्थी प्रेस क्लब संस्था का पंजीयन कराया है।यह संस्था बर्तमान में सम्पूर्ण मध्य प्रदेश में कार्य करेगी इसकी सफलता के लिए एक साल का समय लग सकता है उसके बाद भारत देश में इसको विस्तार देगे . मेरी सोच में आप कितना साथ देगे ....? संतोष गंगेले अध्यक्ष 09893196874

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  9. आपकी पोस्ट देखकर हम भी चौंके थे कि आठ दस महिने में ही ये क्या चमत्कार होगया? लगता है अब ताऊ टीवी की तर्ज पर एक ताऊ अखबार भी शुरू करना पडेगा.:)

    रामराम.

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    1. ताऊ जी
      अख़बार शुरू करने से पहले ही ऐसे संवाददाता को तुरंत ताऊ टीवी में अपोइंट कर ही दीजिये ! स्टूडियो में बैठे बैठे ये स्टोरी बना लेगा ! बेचारे रामप्यारे की भाग दौड़ भी बच जाएगी :)

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  10. हे हे हे..
    कुछ समय पहले भास्कर के तमाम संस्करणों के मुखपृष्ठ पर यूएसबी कंप्यूटर के बारे में भ्रामक जानकारी छपी थी!

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  11. सत्ता पक्ष के पेज भर के विज्ञापन मिल जाते है उनकी बल से बाकी जाए भाड़ में !

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  12. छापने से पहले अखवार वालों को सूचना देनी चाहिए,,,,

    RECENT POST... नवगीत,

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  13. भई शेखावत जी सादर नमस्कार
    सच बात तो यह है कि अब पत्रकारिता के स्थान पर चल रही है नोट देने बालों की चाटुकारिता नेताओं की चाटुकारिता सो खबर की वास्तविकता क्या है चले बस तुरन्त सरकार को शावाशी दिलाने बाली खबर बनाने कि लोग समझे बाह कितनी अच्छी सरकार है जी कितना भक्तों का ख्यालकरती है कि देखो खाटू वाले श्याम के भक्तों के हित में कितना सुन्दर कदम उठाया है और फिर चाहे वेचारा भक्त मारा मारा फिरे 150 किलोमीटर तक चक्कर मारता हुआ सच पूछों तो इस पेपर बाले पर गलत सूचना देने के लिए भी कोई कानूनी कारवाई होनी ही चाहिये जिससे ये विना सर पैर की खवरे न छापें और अपने संबाददाताओं को ठीक दिशा नि्रदेश करें

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