दिल्ली में बस सामूहिक बलात्कार कांड के बाद हर कोई उद्वेलित दिख रहा था इंडिया गेट व जंतरमंतर सहित सभी जगहों इस घिनौने दुष्कर्म कांड के खिलाफ आंदोलन अपनी चरम सीमा पर था| जो स्वाभाविक भी था आखिर ऐसा घिनौना दुष्कर्म कोई भी सभ्य समाज सहन नहीं कर सकता| हर कोई इस घिनौने कांड के बाद भावनाओं में बहकर गुस्से में बलात्कारियों के लिए मृत्यु दंड जैसी कठोर सजा देने की मांग कर रहा था|मैं भी इस तरह के अपराधों के लिए त्वरित कार्यवाही कर गुनाहगारों को कठोर सजा देने के पक्ष में हूँ| उस समय दिल्ली में उपजे उस माहौल में हर कोई व्यक्ति अपने आस-पास होने वाली चर्चाओं में अपने आपको सबसे ज्यादा संवेदनशील दिखाने के लिए कठोर से कठोर सजा की मांग कर था|
उस दिन जैसे मैं ऑफिस पहुंचा ही था कि दुष्कर्म आंदोलन पर चर्चा व दुष्कर्मियों को मृत्यु दंड देने की बहस सुनाई दी| मैं भी चुपचाप उस बहस वाले स्थल पर जाकर खड़ा हो सुनने लगा| अहमद भाई बोल रहे थे कि- कानूनों की हमारे देश में कमी ही नहीं है बस उन्हें त्वरित गति से लागू करने की जरुरत है नया कानून बनाने का कोई औचित्य नहीं|
अहमद भाई के बयान से शर्मा जी सहमत नहीं थे तो वर्मा साहब तो भड़क ही गए| बोले- “इन दुष्कर्मियों को आंदोलनरत लड़कों को सौंप देना चाहिए, वे इन्हें पत्थर मार मार कर सजा दे देंगे|"
अहमद भाई फिर बोल पड़े- “इस देश में एक न्याय प्रणाली है वही फैसला करेगी कि इन दुष्कर्मियों को कैसे व क्या सजा दी जाय, यहाँ कोई तालिबानी शासन थोड़े ही है जो बिना सुनवाई व जाँच के जो मर्जी जिसे चाहे सजा दे दे|”
पर अहमद भाई की बात से न तो शर्मा जी को कोई सरोकार था न वर्मा साहब को| बल्कि वर्मा साहब तो समझ रहे थे कि यहाँ उपस्थित सभी में वे मैनेजर की हैसियत वाले है तो सबसे ज्यादा अक्ल उन्हीं को है अत: वहां उपस्थित हर कोई उनकी बात मानें| बहस सुनकर उस दिन लगा रहा था जैसे इस ऑफिस में इस मामले में सबसे ज्यादा संवेदनशील ऑफिस के कार्मिक प्रबंधक वर्मा साहब ही है|
आगे बढ़ने से पहले चर्चा करते है वर्मा साहब के उच्च चरित्र पर –
वर्मा साहब ने इस दफ्तर में बड़े छोटे स्तर से अपना कैरियर शुरू किया था पर अपनी कुछ खासियतों मसलन चमचागिरी आदि के साथ दसवीं बारहवीं तक की पढ़ाई के बलबूते पर आज वे इस दफ्तर में कार्मिक प्रबंधक का कार्य सँभालते है| वे अपने कार्य के प्रति इतने कड़क व दफ्तर के प्रति इतने वफादार है कि कोई मजदुर या स्टाफ का कर्मचारी यदि सुबह एक दो मिनट ही देर हो जाए तो उसकी आधे दिन की गैर-हाजरी लगाने से वे नहीं चुकते बेशक वो कर्मचारी शाम को दफ्तर की छुट्टी होने के बावजूद रूककर घंटों दफ्तर का रुका काम नित्य करता हो| कई बार जब इस नेक कार्य के लिए उन्हें मौका नहीं मिलता तो वे सुबह अचानक चुपके से दफ्तर की घड़ी की सुइयां कुछ मिनट आगे कर देते है ताकि समय से आने वालों को देर हो सके| खैर.....
इसके अलावा भी वर्मा साहब कारखाने में कार्य करने वाली महिलाओं पर भी अपनी गलत नजर रखने के लिए जाने जाते है|हाँ उनकी बात मानने वाली महिला मजूदर का वे पुरा ख्याल रखते है| आजतक शादी से वंचित रहे वर्मा साहब को कारखाने की औरतों का यौन शोषण करने के चलते कभी शादी करने की भी जरुरत नहीं पड़ी| दफ्तर के पुराने लोगों के अनुसार आजतक वर्मा साहब को यौन सुख देने के बदले सुविधाओं का लाभ उठाने वाली महिलाओं की लंबी सूची है| हाँ ! कई महिलाएं ऐसी भी थी जिन्होंने वर्मा साहब की पेशकश ठुकराते हुए दफ्तर में ही वर्मा साहब के सिर पर जुते भी मारे है पर वर्मा साहब मालिकों के आगे उसका कारण कुछ और ही बता साफ़ बचते रहे है|
आजकल वर्मा साहब एक जवान (अपनी बेटी की उम्र) महिला मजदुर पर बहुत मेहरबान है अक्सर उसके कच्ची बस्ती स्थित घर पहुँच जाया करते है| अपनी इस महिला मित्र को उन्होंने पक्का मकान भी बना कर दिया है इसलिए वर्मा साहब का उसके घर आना-जाना उसके परिजनों को भी नहीं अखरता|
उस दिन एक चरित्रहीन व्यक्ति द्वारा बलात्कारियों को कठोर दंड देने व उन्हें आंदोलनकारियों के हाथों सुपुर्द करने के ढोंगी बयान सुनने के बाद हमसे भी बर्दास्त नहीं हुआ और हम भी बहस में कूद पड़े और सीधा वर्मा साहब से ही सवाल किया- “वर्मा साहब ! मान लीजिए आपने जिस महिला मजदुर को अपनी मित्र बना रखा है आप उसके घर जाते है यदि कुछ दिन बाद वह किसी वजह से या आपको ब्लैकमेल करने के उद्देश्य से आप पर दुष्कर्म का आरोप लगा देती है| और आरोप लगाने के बाद हम जैसे कुछ लोग उस मुद्दे को मीडिया में उठाकर व थोड़ी सी भीड़ इकट्ठा कर आपके खिलाफ एक आंदोलन छेड़ देते है और मांग करें कि आप जैसे दुष्कर्मी को हमारे हवाले किया जाय ताकि हम इसे पत्थर वाली सजा दे| तब आपकी क्या प्रतिक्रिया होगी ?
हमारे द्वारा अपने ऊपर सीधा प्रहार करने व अपने अंदर झाँकने की कड़वी नसीहत देने के बाद वर्मा साहब एकदम ऐसे चुप हो गए जैसे उन्हें सांप सूंघ गया हो| उस दिन के बाद वे दिल्ली दुष्कर्म पर चल रही किसी भी बहस में वहां हिस्सा नहीं लेते जहाँ हमारे पहुंचने की आशंका रहती है|
जब तक समाज का प्रत्येक व्यक्ति अपना स्वयं का सामाजिक चरित्र नहीं सुधरेगा तब तक किसी भी कानून के द्वारा बलात्कार जैसे अपराध नहीं रोके जा सकते| बलात्कार के आंकड़ों पर नजर डाली जाय तो कानून या पुलिस चौकसी से ऐसी घटनाओं का कुछ प्रतिशत ही रोका जा सकता है जो घर के बाहर अनजानों द्वारा अंजाम दी जाती है पर आज ५८ % बालात्कार की घटनाएँ पारिवारिक सदस्यों, रिश्तेदारों व जान-पहचान वालों द्वारा अंजाम दी जा रही है जिसे किसी भी तरह की कोई पुलिस चौकसी व कानून नहीं रोक सकता| इसे यदि कोई रोक सकता है वह है- “हमारा उच्च सामाजिक चरित्र|”
इसलिए इस तरह की घटनाओं पर उद्वेलित होने का अधिकार भी हमें तभी है जब हमारा चरित्र उज्जवल हो|
एक टिप्पणी भेजें
5टिप्पणियाँ
3/related/default
अपनी अपनी प्रकृति है,
जवाब देंहटाएंअपना अपना चाव..
नैतिकता बची ही कहाँ .
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने, जब तक खुद पर अनुशासन और नैतिकता नही होगी तब तक अकेले कानून के डंडे से भी यह सब रूकने वाला नही है.
जवाब देंहटाएंरामराम.
आपकी इसी पोस्ट का ईन्तजार था यह लेख हर किसी के मनन करने को मजबूर कर देगा कि हा हुल्ला मचाने से पहले हमे स्वमं को बदलना होगा
जवाब देंहटाएंटेलीविजन पर जैसे ही समाचार प्रसारित हुआ की पंजाब के भटिंडा में एक महिला के साथ सामूहिक बलातकार हो गया है, सुनते ही कई दिन से बेरोजगार बेठी दिल्ली की मोमबत्ती मंडली की तो जैसे बांछे ही खिल गयी। तुरंत 10-12 कार्टन मोमबत्तियो के बाजार से माँगा कर रवाना हो ली। सभी बहिने भटिंडा की और। पर हाय री किस्मत भटिंडा से पहले ही एक मनहूस खबर आ गयी की, बात झूठी है, जिस महिला के साथ बलात्कार हुआ वह 2 निर्दोषों को फंसाने के लिए मनगढ़ंत कहानी बना रही है। सिट सारी तेयारी धरी रह गयी बिचारियो की, बड़ी मुश्किल से तो टीवी चेनल्स पर चहरे चमकाने का एक और अवसर आया था। बच गए साले नरपिशाच फांसी से।
जवाब देंहटाएं