अखबारों की सुर्खिया कहती है

pagdandi
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तुम्हारे थोड़े से राशन बचाने से ,बच नहीं जाएगी उसकी लाज
टूट पड़ेगा गिद्ध सा , घर से भूखा निकला हैं वो आज
ये क्या बचकानी हरकते करती हो तुम ?
कुछ सेंडविच ज्यादा क्यों नहीं बना लेती
हर बार थोड़ा थोड़ा बचाती रहती हो
बासी हो जाएगी ये ब्रेड ,
तब भी तो फैंकना ही पड़ेगा ना
खाना थोड़ा ज्यादा बनाया करो
पतीला थोड़ा बड़ा चढ़ाया करो
तुम्हारी दिनचर्या में शामिल कर लो
देखो ख्याल रहे
ये तुम्हारा गबरू जवान बेटा
और पति घर से भूखा ना निकले
कि अखबारों की सुर्खियाँ कहती है ऐसा
भूखे भेड़ियों से टूट पड़े थे वो
उस मासूम पर
कोमां में है वो
होश आयेगा पर ,ताउम्र उसका दर्द नहीं जायेगा
फ्रिज में रखा करो कुछ फ़ास्ट फ़ूड जैसा
तुम्हारा फ्रिज भरा रहेगा , तो किसी का घर आबाद रहेगा
इतने में भी ना मिटे , अगर भूख उसकी
तो अपने उतरे कपड़े मुँह मे ठूस दो इसके
चिपका दो अपने घर की दीवारों पर
इनकी बेटियों और बहनों की अर्धनग्न तस्वीरे
देख कर अगर चीखे , तो ला खड़ा करना उस बाप को सामने
जो अभी अभी अपनी चिड़िया के कतरे पंख .. समेट के आया है
तुम्हारा इनको बचाना .. किसी का सब लुट जाना है
एक औरत की चुप्पी ,दूसरी की चीख हो जाएगी

उषा राठौड़

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9टिप्पणियाँ

  1. क्या बात है उषा बहुत खूब लिखा है ? यदि तुमने ही लिखा है तो यकीं करना मुश्किल है ..इतना हंसने वाली ...जिंदादिल उषा के दिल में इतना आक्रोश ..सही है

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  2. तमाचा जडता सच ………आपकी ये रचना शेयर कर रही हूँ फ़ेसबुक पर उम्मीद है नाराज़ नहीं होंगी।

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  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  4. आधुनिक समाज को आखे दिखाती कविता है!

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  5. मन का क्रोध व्यक्त करना ही ठीक है, परिस्थितियाँ शान्त बैठने की भी नहीं है।

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  6. जज्बातों को बहुत ही स्पष्टता और सटीकता से अभिव्यक्त किये आपने.

    रामराम.

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  7. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    --
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शुक्रवार (28-12-2012) के चर्चा मंच-११०७ (आओ नूतन वर्ष मनायें) पर भी होगी!
    सूचनार्थ...!

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