क्या आपने सुना है "लोटा विवाह परम्परा" के बारे में ?

Gyan Darpan
16
ज्ञान दर्पण पर मैंने अपने एक लेख में राजस्थान की खांडा विवाह परम्परा के बारे में लिखा था| इतिहास में ऐसे कई विवाह प्रकरण आते है जिन्हें पढकर मालूम होता है कि खांडा विवाह सिर्फ राजपूतों में ही नहीं वरन उस वक्त लगभग सभी जातियों में थी जो लोग सैन्य गतिविधियों से जुड़े थे वे अक्सर खांडा विवाह करते थे| इतिहास में कई जगह मुसलमान शासकों द्वारा भी शादी के समय अपनी तलवार भेजा जाना पढ़ने को मिलता है|

पर जो सैनिक जातियां नहीं थी या जिनका सैन्य पेशा नहीं था उनमे भी शादी के समय दुल्हे के उपलब्ध न होने की स्थिति में उसकी जगह लोटा(कलश) रखकर विवाह की रस्म पूरी कर देने की परम्परा थी|

अभी कुछ ही दिन पहले अपने ऑफिस में मैं राजस्थान की खांडा विवाह परम्परा के बारे में बातचीत कर रहा था तभी मेरे ऑफिस के स्टोर मेनेजर श्री टीकम सिंह चौधरी ने मुझे ये जानकारी दी| श्री चौधरी के अनुसार उनके क्षेत्र में पहले शादी के वक्त किसी वजह से दुल्हे के उपस्थित न होने पर बारात के साथ एक लोटा(कलश) भेज दिया जाता था जिसके साथ लड़की के फेरे लगवाकर शादी की रस्म पूरी करवा दी जाती थी| हालाँकि अब यह परम्परा एकदम विलुप्त हो चुकी है और नई पीढ़ी तो इस परम्परा से बिल्कुल अनजान है|

मेरे ये पूछने पर कि- क्या कभी अपने जीवन में ऐसी शादी देखि है?

मेरे प्रश्न का उतर देते हुए उन्होंने बताया कि- अब तो नहीं होती पर मैंने अपने बचपन में दो तीन शादियाँ इस परम्परा से होते देखि है|ज्ञात हो टीकम सिंह जी नंदगांव के पास भडोकर गांव के रहने वाले है|


नोट :- उपरोक्त जानकारी श्री टीकमसिंह जी के बताएनुसार दी गयी है मैं उनके क्षेत्र की संस्कृति से ज्यादा परिचित नहीं हूँ|

एक टिप्पणी भेजें

16टिप्पणियाँ

  1. बड़ी रोचक और प्रतीकात्मक परम्परायें।

    जवाब देंहटाएं
  2. हमने तो मनु स्मृति में आए विवाह के आठ प्रकार ही जाने हैं लेकिन यह भी जानते हैं कि अलग अलग इलाक़ों में अलग अलग लोक परंपराएं भी मौजूद हैं विवाह के लिए।
    लोटा परंपरा की जानकारी देने के लिए आपका शुक्रिया !
    अच्छी पोस्ट !!!

    जवाब देंहटाएं
  3. मैंने भी पहली बार सुना इस प्रथा के बारे...मगल और शनि का प्रभाव कम करने से समाबंधित पेड़ से शादी करवाने की बात तो सुनी थी मगर लौटे से..... आज आपकी पोस्ट पर आकर ही पता चला।

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह वाह पहली बार ऐसी प्रथा के बारे में सुना और आश्चर्यचकित रह गया की ऐसे भी पहले विवाह होते थे
    जानकारी के लिए धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!

    जवाब देंहटाएं
  6. मैं भी राजपूत जाति का हूँ ।.बिहार का रहने वाला हूँ । .मेरी जाति में भी लोटा विवाह का चलन है । जब दूल्हा किसी कारणवश शादी के समय आ नही सकता है तो उस स्थिति में लोटा या कलश रख कर पंडित लोग शादी की रश्म पूरी करवा देते हैं । पोस्ट अच्छा लगा । मेरे पोस्ट पर भाई जी आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

    जवाब देंहटाएं
  7. रतन सिंह जी..नई एवं अचंभित जानकारी के लिए आभार
    सुंदर पोस्ट ...बधाई ...

    मेरे नए पोस्ट -वजूद- में आपका स्वागत है...

    जवाब देंहटाएं
  8. आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा दिनांक 11-11-2011 को शुक्रवारीय चर्चा मंच पर भी होगी। सूचनार्थ

    जवाब देंहटाएं
  9. युद्ध काल में, तलवार भेज दी जाती थी,विवह की रस्में पूरी होजाती थीं.आपने इस नई प्रथा से अवगत कराया,धन्यवाद.

    जवाब देंहटाएं
  10. परम्पराएं प्रतीकों का संवर्धन करती हैं...!
    अनोखा है यह प्रचलन!

    जवाब देंहटाएं
  11. इस परम्‍परा की जानकारी पहली ही बार मिली। हमारा 'लोक' अपनी आवश्‍यकतानुसार ऐसी परम्‍पराऍं स्‍वयम् ही विकसित करता रहता है।

    जवाब देंहटाएं
  12. पहले तलवार के साथ विवाह तो सुना था पर इस प्रथा के बारे में पहली बार सुना |
    नई जानकारी देती रचना |
    बधाई |
    आशा

    जवाब देंहटाएं
एक टिप्पणी भेजें