जीवा :- बाबा जी ! बाबा जी !! दरवाजा खोलिए |
बाबा जी :- अरे कौन ?
जीवा :- बाबा जी ! मै जीवो !
बाबाजी :- बेटा ! अब घर में ही घोटो और पीवो |
मुफ्त का माल समझ सेवन करने वाले ऐसे ही आदि हो जाते है अतः मुफ्त के माल का सेवन करने में भी मितव्यता बरतनी चाहिए |
सही है कब तक मुफ्त का माल उडाने देते
जवाब देंहटाएंwahh bahut achha Ratan Singh Ji.
जवाब देंहटाएंरतनसिंह जी आपने जाटों की दुखती हुई रग पर हाथ रखा है। जाट आज की तारीख में शिक्षा के क्षेत्र में बहुत आगे हैं, लेकिन ऐसी शिक्षा किस काम की, जो संस्कार विहीन हो। अगर आप साक्षर हैं, पढ़े-लिखे हैं, तो आप अपना, अपने परिवार का और अपने समाज का अच्छा या बुरा समझ सकते हैं। लेकिन.... (log on - http://jujharujat.blogspot.com/2009/11/blog-post.html?showComment=1258273714154#c7864400390827945270
बहुत सुंदर जी....
जवाब देंहटाएंबिलकूल सही, अपनी मेहनत से खरीदा समान ही हमारे लिये बहुत मुल्यवान होता है और मुफ्त मे मिलने वाले समान कि किमत ना लेने वाला करता है और ना ही देने वाला।
जवाब देंहटाएंहा हा!! बाबा जी तो शायर हो गये!! :)
जवाब देंहटाएंलत तो लग ही गई क्या घर क्या बाहर . नशा ऎसे ही फ़ैलाया जाता है . पहले फ़्री फ़िर ....
जवाब देंहटाएंबेटा ! अब घर में ही घोटो और पीवो |
जवाब देंहटाएंबहुत जोरदार.:)
रामराम.
रतन सिग जी, जब आपकी पोस्ट आई थी तो घोटणे लगे थे(नेट बंद) अब जाके माल तैयार हुआ है, आओ पधारो पहली धार की है-स्वागत है।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया!
जवाब देंहटाएंजब माल-पानी खत्म हो जायेगा तो बात करेंगे!
रोचक और मजेदार जवाब दिया बाबाजी ने। लेकिन जीवो वापस कत्तई नहीं गया होगा। नशा कैसा जो छूट जाय..? :)
जवाब देंहटाएंमुफ्त का चंदन घिसो मेरे नंदन.. पर कब तक..
जवाब देंहटाएंबहुत जोरदार.:)
जवाब देंहटाएंहा हा हा हा अरे ये पोस्ट तो मजेदार निकली तो भांग के पौधे भी लगा ही डालें । ताकि मेहमानों की खातिरदारी जरा झूमझाम के की जाए । व्हाट एन आयडिया सर जी
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