जुझारसिंह बुन्देला

Gyan Darpan
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वीर बुन्देले
हाल बता बुन्देल धरा तेरे उन वीर सपूतों का।
केशरिया कर निकल पड़े थे मान बचाने माता का।

Raja Jhujhar Singh Bundela जुझारसिंह बुन्देला ओरछा के राजा थे। अपने पिता वीरसिंह बुन्देला की मृत्यु के बाद ओरछा के राजा बने| ये गहरवाल वंश के थे| जुझारसिंह शासन का भार अपने पुत्र विक्रमाजीत को सौंप कर स्वयं शाहजहाँ की सेवा में आगरा चले आये। शाही दरबार में उसका मनसब चार हजार जात और चार हजार सवार का था। जुझार सिंह बुन्देला एक शक्तिशाली शासक थे। विक्रमाजीत ने वि.सं. १६८६ (ई.सन १६२९) में विद्रोह कर दिया। जुझारसिंह भी अपने पुत्र के पास चले गए। वहाँ अपने आप को स्वतन्त्र शासक घोषित कर दिया। शाहजहाँ ने विद्रोह को कुचलने के लिए एक विशाल शाही सेना भेजी। इस सेना के साथ महावत खाँ अब्दुला खाँ और शाहजहाँ लोदी को भेजा। शाही सेना ने ओरछा पर आक्रमण कर विद्रोही बुन्देलों का विद्रोह शान्त कर दिया। इस युद्ध में बुन्दलों की पराजय हुई। ओरछा के कुछ इल अपने अधीन कर शाहजहाँ ने बुंदेलों को क्षमा कर दिया| संधि के अनुसार जुझारसिंह दक्षिण में शाही शिविर में चले गए, वहां शाही सेवा स्वीकार कर ली|

जुझारसिंह ने पाँच वर्ष तक दक्षिण में पूर्ण स्वामीभक्ति से कार्य किया| वह स्वतंत्र प्रवृति के व्यक्ति थे| दक्षिण से बिना इजाजत ओरछा आ गए| वि.सं. १६९२ (ई.स. १६३५) में शाहजहाँ के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। वि.सं. १६८६ में जो क्षेत्र मुगलों ने अधीन कर लिए थे, उन्हें पुनः प्राप्त करने का प्रयत्न करने लगे। जुझारसिंह ने चौरागढ (मध्यप्रदेश) के किले पर आक्रमण कर दिया। वहाँ के राजा भीमनारायण (प्रेमनारायण) को परास्त किया। भीम नारायण गोंड को मार कर चौरागढ राज्य पर अधिकार कर लिया। शाहजहाँ इस कार्यवाही से कुध हुआ क्योंकि उसने चौरागढ (गोंडवाना) पर हमला न करने की चेतावनी दी थी। शाहजहाँ ने जीता हुआ क्षेत्र और लूटा हुआ पाँच लाख रूपये गोंड राजा के पुत्र को लौटा देने का आदेश दिया। एक शाही सेना भेजी और कहा कि एक जिला और क्षतिपूर्ति के ३० लाख रुपया सम्राट को भेंट कर क्षमा प्राप्त कर ले। परन्तु जुझारसिंह अडिग रहे। उन्होंने इस आदेश की अवहेलना की। इस पर कुद्ध होकर शाहजहाँ ने शाहजादे औरंगजेब को सेना के साथ ओरछा भेजा। इस सेना का वह मुकाबला न कर सके। मुगलों ने अक्टूबर 4, ई.स.1635 में राजधानी ओरछा पर अधिकार कर लिया| मुग़ल सेना के साथ चंदेरी के राजा देवीसिंह भी थे| देवीसिंह को यहाँ का राजा बना दिया गया| अपने परिवार के साथ जुझारसिंह धामुनी के किले में चले गए| धामुनी का किला सुदृढ़ था| इसके तीन तरफ दलदल और एक तरफ खाई होने के कारण सुरंगें खोदना मुश्किल था। रात्रि में शाही सेना के सिपाहियों ने निसेनियों (सीढियों) के सहारे गढ़ में प्रवेश कर वहाँ पर अधिकार करने के लिए युद्ध किया। जुझारसिंह ने शाही सेना का मुकाबला किया। यहाँ से जुझारसिंह अपने परिवार और खजाने सहित चौरागढ़ के किले में पहुँचने में सफल हुए। जुझारसिंह के योद्धा किले में रहकर युद्ध करते रहे, परन्तु अन्त में उन्हें परास्त होना पड़ा।
मुगल सेनाएँ लगातार उसका पीछा करती रही। औरंगजेब चौरागढ में भी आ गया। यहाँ से जुझारसिंह चाँदा और देवगढ़ के प्रदेश से होते हुए दक्षिण की ओर निकल जाने का प्रयत्न करने लगे। परन्तु यहाँ भी पीछा करती हुई मुगल सेना एकाएक आ पहुँची, अब बचकर निकलना असम्भव था। हताश होकर अपनी स्त्रियों का मान सुरक्षित रखने के लिए जुझारसिंह बुन्देले ने उन्हें तलवार तथा कटार भोंककर मार डालना चाहा, क्योंकि वे मुगल सेना से घिर चुके थे। इतना समय भी नहीं था कि जौहर करवा सकें। शाही सैनिक तभी उन पर टूट पड़े। इस युद्ध में बहुत से बुन्देले मारे गए और स्त्रियों को बन्दी बना लिया गया। जुझारसिंह और विक्रमाजीत जंगल में चले गए। जहाँ उन्हें गोंडो ने मार डाला और उनके मस्तक काटकर शाहजहाँ के पास भेज दिए गए। जहाँ बादशाह के आदेशानुसार ये कटे हुए मस्तक सीहोर नगर के दरवाजे पर टांग दिए गए।

पुत्र दुर्गभान, पौत्र दुर्जनशाल और स्त्रियों को शाहजहाँ के सामने पेश किया गया। दो राजकुमारों को मुसलमान बना दिया गया। एक पुत्र ने मुसलमान बनने से इन्कार कर दिया था, उसे कत्ल कर दिया गया। वीरसिंह देव की विधवा रानी की अत्यधिक घायल हो जाने से मृत्यु हो गई। अन्य स्त्रियों को धर्म परिवर्तन कराकर मुगल हरम में अपमानजनक जीवन व्यतीत करने को भेज दिया गया। दो पुत्रों उदयभान और दूसरा बालक था, ने अपने सेवक सहित गोलकुण्डा राज्य में शरण ली। गोलकुण्डा सुल्तान ने इन्हें बन्दी बना कर शाहजहाँ के पास भेज दिया। उदयभान और सेवक ने इस्लाम अपनाना स्वीकार नहीं किया अतः इन्हें कत्ल कर दिया गया। वीर बुन्देलों की वीरता का गुणगान पूरे देश में गौरव के साथ किया जाता है।
लेखक : छाजू सिंह, बड़नगर

Raja Jhujhar Singh Bundela history in Hindi

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