एक और तीस्ता : दलबीर कौर सरबजीत की कथित बहन

Gyan Darpan
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इस देश में समाज सेवा के नाम पर जो गोरखधन्धा चल रहा है, उससे कौन वाकिफ नहीं है| लेकिन अफ़सोस इस मामले में सब कुछ जानते हुए भी कुछ कथित समाजसेवी जनता व सरकार की आँखों में धूल झोंकने में कामयाब रहते है| देश की कुख्यात समाज सेविका तीस्ता सीतलवाड़ (Teesta Seetalwad) को आज कौन नहीं जानता, जिसने गुजरात दंगों के बहाने देश के नहीं, विदेशी नागरिकों की भावनाओं तक दोहन कर, खूब धन एकत्र किया और उस धन को समाज सेवा में लगाने के बजाय अपने ऐशोआराम व गुलछर्रे उड़ाने में खर्च किया|
तीस्ता ही क्यों इस देश में ऐसे समाज सेवियों की गैर सरकारी संस्थाओं (NGO) की कोई कमी नहीं, जो जनता से दान व सरकारी सहायता प्राप्त कर अपना स्वार्थ साधने में लगे है| आज NGO के नाम पर जो गोरखधंधा चल रहा है, उससे शायद ही कोई शिक्षित, जागरूक नागरिक अनभिज्ञ होगा| ऐसा ही एक मामला और सामने आया है कि एक समाज सेविका किसी परिवार की हमदर्द बन उस परिवार के हक़ पर डाका डाल गई|

पाकिस्तानी में मृत्यदंड की सजा पाये सरबजीत (Sarabjeet Singh) को इस देश में कौन नहीं जानता| अख़बारों में जब भी सरबजीत की चर्चा होती थी, उसकी रिहाई के लिए लड़ रही उसकी बहन दलबीर कौर (Dalbir Kaur) का नाम व फोटो सबसे पहले छपता था| अख़बार पढ़कर लगता था कि सरबजीत की यह बहन दलबीर कौर वाकई रिश्ते निभाने में भारतीय संस्कृति और परम्पराओं की वाहक है, जो शादी के बाद दूसरे घर जाने के बावजूद अपने भाई की पाकिस्तान से रिहाई के लिए पुरजोर संघर्ष कर रही है| लेकिन तब किसी को क्या पता था कि बहन के रूप में यह एक छद्म समाज सेविका निकलेगी, जो सरबजीत के बहाने अपनी लोकप्रियता और सरबजीत के प्रति देशभर में उपजी भावनाओं का दोहन करने के लिए अपने आपको बहन प्रचारित कर संघर्ष का अभिनय कर रही है और चाहती है कि किसी बहाने सरबजीत को फांसी हो जाये और फिर भारत सरकार से जो मिलेगा, वो बहन होने के नाते उसका है ही|

लेकिन कहा जाता है ना कि झूंठ एक दिन अपने आप सामने आ जाता है और इसी नियम के अनुसार अब दलबीर कौर का भांडा फूटा है| जी हाँ ! ख़बरों के अनुसार सरबजीत की बहन बलजिंदर कौर, भाई हरभजन सिंह व खुद दलबीर कौर के पति बलदेव सिंह ने आरोप लगाया है कि दलबीर कौर सरबजीत की बहन नहीं है| उसने सिर्फ झूठी सहानुभूति दिखाकर भारत सरकार से लाभ प्राप्त किया है| दलबीर कौर ने अपनी बेटी स्वपनदीप को सरबजीत की बेटी बताकर अनुकम्पा के आधार पर नायब तहसीलदार की नौकरी दिलवा दी, जबकि भाजपा पिछड़ा वर्ग श्रेणी के प्रभारी गोराया के अनुसार सरबजीत की एक मात्र पुत्री पूनम है, जबकि दलबीर कौर ने सरबजीत के वारिश के जितने सबूत पेश किये उनमें पूनम का कहीं नाम ही नहीं है|
इस तरह सरबजीत की कथित बहन दलबीर कौर, बहन के नाम पर एक स्वार्थी छद्म समाज सेविका निकली और उसने सरबजीत की पुत्री के हक़ पर डाका डालकर अपनी पुत्री को सरबजीत की बेटी बताकर नौकरी दिलवा दी| ख़बरों के अनुसार दलबीर कौर के पति ने भी इसे झूठी बताते हुए आरोप लगाया है कि सरबजीत की मौत के बाद दलबीर करोड़ों की मालिक बन बैठी, वहीं पाकिस्तान के मानवाधिकार कार्यकर्त्ता अंसार बर्नी ने भी सरबजीत की मौत के पीछे दलबीर का हाथ होने की आशंका जताई| समाचार पत्रों को दिए बयानों में सरबजीत के परिजन भी बताते है कि दलबीर ने उन्हें जुबान बंद रखने को कहा, अन्यथा सरबजीत की रिहाई नहीं होगी| उनके इस बयान से जाहिर है दलबीर कौर को सरबजीत के परिजनों को उसकी रिहाई की उम्मीदें दिखाकर चुप करा दिया और झूठी सहानुभूति दिखाकर उनकी हितैषी बन अपना स्वार्थ साधती रही|

यह आरोप लगने के बाद दलबीर कौर की एक नई कहानी अख़बारों में सामने आई है, इस कहानी के अनुसार अब दलबीर कौर कह रही है कि उसकी बेटी स्वप्नदीप सरबजीत की ही बेटी है| दलबीर कौर की कहानी के अनुसार जब स्वप्नदीप का स्कूल में दाखिला करवाया गया तब सरबजीत पाक जेल में था और उसकी पत्नी अनपढ़ थी, जबकि स्कूल प्रशासन पढ़े लिखे माता-पिता की संतान को ही दाखिला दे रहे थे अत: मज़बूरी में उसके पति ने स्वप्नदीप के माता-पिता के रूप में अपना नाम लिखा दिया|
यदि दलबीर कौर की इस कहानी पर भी भरोसा कर लिया जाय तब भी सरकारी नियमों के अनुसार स्वप्नदीप उनकी ही पुत्री मानी जायेगी सरबजीत की नहीं| फिर दलबीर कौर ने ऐसा क्या जुगाड़ किया कि स्वपनदीप को सरबजीत की वारिश घोषित करवा अनुकम्पा के आधार नायब तहसीलदार जैसी मलाईदार नौकरी दिलवा दी|
सच क्या है वो तो अब पुलिस जाँच व न्यायालय में सामने आयेगा और हो सकता है दलबीर कौर जांच को गुमराह कर अपने आपको सही साबित कर दे, हालाँकि हमारे देश की न्याय व जांच प्रणाली में ऐसा कम ही संभव है, पर यह तो सच है कि दाल में कहीं न कहीं काला जरुर है और दलबीर कौर जो एक कथित छद्म समाजसेविका है, ने सरबजीत की बहन होने का अच्छा अभिनय किया| इसी तरह का एक और मामला कुछ माह पहले भी देखने को मिला था, जिसमें हत्या के एक चर्चित अपराधी को सजा मिलने के खिलाफ एक राजनैतिक, सामाजिक महिला कार्यकर्त्ता अपने आपको उसकी बहन बता फैसले वाले दिन मीडिया में छाई रही| इस तरह ये मामले साबित करते है कि इस देश में कथित छद्म समाज सेवी अपने निजी स्वार्थों की पूर्ति व अपने आपको चर्चा में लाने के लिए न केवल लाशों पर खेल खेल सकते है बल्कि मृतक या पीड़ित के परिजनों की भावनाओं का दोहन कर उनके अधिकारों पर भी डाका डाल सकते है|

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