सामाजिक दशा और दिशा: निर्भर है योग्य नेतृत्व पर

Gyan Darpan
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किसी भी समाज की आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक दशा की कसौटी आदर्श, ईमानदार, सिद्धांतो पर चलने वाले योग्य राजनैतिक व सामाजिक नेतृत्व पर निर्भर करती है। कोई भी समाज जब पतन और उत्थान के संक्रमणकाल से गुजर रहा होता है तब सबसे पहले उसे योग्य नेतृत्व की आवश्यकता की अनुभूति होती है। हमारे समाज की वर्तमान अधोगति का मुख्य कारण नेतृत्त्व ही रहा है। स्व. आयुवान सिंह हुडील के अनुसार - “योग्य नेतृत्त्व स्वयं प्रकाशित, स्वयं-सिद्ध और स्वयं निर्मित होता है। फिर भी सामाजिक वातावरण और देश-कालगत परिस्थितियां उसकी रुपरेखा को बनाने और नियंत्रित करने में बहुत बड़ा भाग लेती है। किसी के नेतृत्व में चलने वाला समाज यदि व्यक्तिवादी अथवा रुढ़िवादी है तो उस समाज में स्वाभाविक और योग्य नेतृत्व की उन्नति के लिए अधिक अवसर नहीं रहता। राजपूत जाति में नेतृत्व अब तक वंशानुगत, पद और आर्थिक संपन्नता के आधार पर चला आया है। वह समाज कितना अभागा है जहाँ गुणों और सिद्धांतो का अनुकरण न होकर किसी तथाकथित उच्च घराने में जन्म लेने वाले अस्थि-मांस के क्षण-भंगुर मानव का अंधानुकरण किया गया।”

समाज की वर्तमान दशा का कारण भी स्व.आयुवान सिंह जी द्वारा बताया गया उपरोक्त कारण प्रमुख है लेकिन आज भी हम नेतृत्व के मामले में रुढ़िवादी विचार रखते है, वर्षों से पालित और पोषित समाज को जिस कुसंस्कारित नेतृत्व ने वर्तमान दशा में ला पटका आज भी हम उसी रूढ़ीवाद का अनुसरण करते हुये उसी वंशानुगत नेतृत्व के पीछे भागते है। चुनावों में देश की सत्ता में भागीदारी के समय अक्सर देखा जाता है कि -हम किसी योग्य आम प्रत्याशी को छोड़ किसी बड़े राजनीतिक घराने के कुसंस्कारित प्रत्याशी के पीछे भागते है और हमारी यही कमी भांप राजनैतिक पार्टियाँ हमारी जातीय भावनाओं का वोटों के रूप में दोहन करने के लिए किसी राजनैतिक घराने या राजघराने के व्यक्ति को जिसके आचरण में कोई सिद्धांत तक नहीं होता, को टिकट देकर हमारे ऊपर थोप देती है और हम उनकी जयकार करते हुए उसके पीछे हो जाते है। और इस तरह एक सिधांतहीन और योग्य व्यक्ति को अपना नेतृत्व सौंप हम समाज को और गहरे गर्त में डाल देते है।

और जो व्यक्ति समाज को सही दिशा देने के लिए सिद्धांतो की अभिलाषा लेकर राजनीति में उतरता है वह अकेला रह जाता है। यह हमारे समाज की विडम्बना ही है कि इस तरह नेतृत्व करने के लिए आगे आने वाले युवावर्ग को समाज के स्थापित नेता कई तरह के कुत्सित षड्यंत्र रचकर आगे नहीं बढ़ने देते ताकि नया नेतृत्व खड़ा होकर उनके सिद्धांतहीन नेतृत्व को चुनौती नहीं दे सके।

साथ ही समाज में ऐसे भी व्यक्ति बहुतायत से मौजूद है जो सिद्धांतो का नाम लेकर अपनी नेतृत्व की भूख शांत करने हेतु संगठन बनाते है और चाहते है कि समाज उनका नेतृत्व स्वीकारे| अक्सर देखने को मिलता है कि चुनावों के समय कई सामाजिक संगठन सक्रीय हो जाते है और समाज के नेतृत्व का दावा करते हुये विभिन्न राजनैतिक पार्टियों के साथ सौदेबाजी करते है| कई बार समाज ऐसे लोगों के झांसे में आकर उनका समर्थन भी करता है तो वे उस समर्थन का प्रयोग अपने निजी हित साधन में करते है। लेकिन जब ऐसे ही नेताओं के सिद्धांतों, विचारधारा और कुकृत्यों को समाज समझने लगता है और उनका साथ छोड़ देता है| तब वो कोई सामाजिक मुद्दा उठा फिर समाज को बरगलाने की कोशिश करते है और जब समाज उनके पीछे नहीं आता तब वे समाज को ही दोषी ठहराने लगते कि समाज साथ नहीं देता।

लेकिन ऐसे लोग यह नहीं समझते कि समाज कोई भेड़ बकरी नहीं जो जिसके पीछे चल पड़े। यह हमारे समाज का सौभाग्य भी है कि समाज अब ऐसे लोगों को समझने लगा और उन्हें बहिष्कृत करने लगा है इसलिए आजकल देखा जा रहा कि ऐसे व्यक्तियों और उनके संगठन किसी भी मुद्दे पर दस-पांच से ज्यादा व्यक्ति नहीं जुटा पाते। कई बार अक्सर देखा जाता है कि किसी मुद्दे पर विरोध जताने के लिए तीस चालीस समाज बंधू इकट्ठा हुए है और जब मीडियाकर्मी संगठन का नाम पूछता है तब वहां बीस के लगभग संगठनों की सूची बन जाती है, कहने का मतलब साफ है कि संगठन बीस और आदमी तीस से चालीस, फिर इन संगठनों में उस कार्य की श्रेय लेने की होड़ भी मच जाती है, हर संगठन अपने अपने उद्देश्यों को वरीयता देकर प्रेस विज्ञप्ति जारी कर देता है| इस तरह के संगठन समाज को नई दिशा देने के बजाय उल्टा वर्तमान दशा बिगाड़ने का काम कर रहे है|

अतः समाज को चाहिये कि वह नेतृत्व के मामले में वंशानुगत, पद और आर्थिक संपन्नता व रूढिगत आधार पर चली आ रही व्यवस्था व मानसिकता से निकले और ऐसे व्यक्तियों को नेतृत्व सौंपे जिनकी विचारधारा में समाज के सांस्कृतिक मूल्यों की रक्षा, धर्म का पालन करते हुए सिद्धांतों पर चलने के गुण, समाज के प्रति पीड़ा, ध्येय व वचन पर दृढ़ता, अनुशासन, दया, उदारता, विनय, क्षमा के साथ सात्विक क्रोध, स्वाभिमान, संघर्षप्रियता, त्याग, निरंतर क्रियाशीलता आदि स्वाभाविक गुण मौजूद हो, ऐसे ही योग्य व्यक्ति समाज का नेतृत्व कर सही दिशा दे सकते है।

समाज का नेतृत्व कैसे लोगों के हाथों में हो का अध्ययन करने के लिए स्व.आयुवान सिंह हुडील द्वारा लिखित पुस्तक “राजपूत और भविष्य” पढनी चाहिए जिसमें वास्तविक नेतृत्व कैसा हो पर विस्तार से शोधपूर्ण लिखा गया है।

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4टिप्पणियाँ

  1. ब्लॉग बुलेटिन की मंगलवार ०५ अगस्त २०१४ की बुलेटिन -- भारतीयता से विलग होकर विकास नहीं– ब्लॉग बुलेटिन -- में आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ...
    एक निवेदन--- यदि आप फेसबुक पर हैं तो कृपया ब्लॉग बुलेटिन ग्रुप से जुड़कर अपनी पोस्ट की जानकारी सबके साथ साझा करें.
    सादर आभार!

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  2. रतनसिंहजी आप राजपूतों में एक कमी है- अगर कोई गरीब राजपूत जात-बाहर शादी कर ले तो वो दरोगा-गोला और पता नहीं क्या हो जाता है और उसे जीने नहीं दिया जाता लेकिन अगर किसी राज परिवार के सदस्य बाहर-जात या अपनी ही गौत्र में शादी कर लें तो कुछ नहीं वे फिर भी आपके समाज में कुंवरसा और बाईसा बने रहते हैं. क्या किसी गरीब राजपूत की बेटी जात-बाहर लव मैरिज कर ले तो आपके समाज का वही व्यवहार होता है जो राजपरिवारों की बेटियों चाहे वो सिद्धि कुमारी की बहन हो या दिया कुमारी के टाइम होता है? ज्यादातर मराठा राजवंश क्षत्रिय नहीं थे लेकिन लगातार राजपूत राजवंशों से सम्बन्ध बनाकर खुद को आज क्षत्रिय राजपूत बताने लगे? और ये दोगलापन हर जगह है. हमारे गाँव में लोग दलितों को हाथ तक नहीं लगाते लेकिन अर्जुनराम मेघवाल के पैर छुएंगे, मांचे(चारपाई) पे भी बिठाएंगे.

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