अब गूंजने वाला है एक नारा : पितृसत्ता धोखा है धक्का मारो ....

Gyan Darpan
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कल जैसे ही हम घर से निकलकर पास ही के पार्क में पहुंचे तो पड़ौसी वर्मा जी का बेरोजगार बेटा पिंटू अपने कुछ साथियों के साथ खड़ा दिखा| लेकिन आज हमें उसका दल बल सहित पार्क में खड़ा होना अखरा नहीं, कारण भी था अक्सर पार्क में अपने छिछोरे साथियों के साथ लड़कियों पर फब्तियां कसने के लिए खड़ा रहने वाला पिंटू आजकल इसी मानसिकता के खिलाफ आंदोलन में सक्रीय था| हम जैसे कुछ पड़ौसी उसके हृदय परिवर्तन से अचम्भित थे तो कुछ उसकी इस बदली मानसिकता को राजनीति में आधार बनाने की कुटिल राजनैतिक चाल समझ रहे थे| तो कुछ पड़ौसियों ने उसके इस कृत्य पर कयास लगाया कि इस आन्दोलन के जरीय लड़कियों में अपनी छवि सुधार कर पिंटू किसी को फांस अपना मतलब निकाल लेगा|

खैर ... हमें देखते ही पिंटू बोल पड़ा- “अंकल जी ! आजकल हमने पितृसत्ता के खिलाफ अभियान चलाया है आपका भी समर्थन चाहिए| उसका वाक्य पुरा हुआ ही था कि उसके एक साथी ने नारा बुलंद कर दिया- “पितृ सत्ता धोखा है, धक्का मारो मौका है|”

हमने पिंटू से पूछा- ये पितृ सत्ता कौनसी सत्ता है ? हमने तो आज पहली बार नाम सुना है| हाँ पुरुष प्रधान समाज में पुरुष सत्ता आदि शब्द तो सुने है पर हमारे लिए ये शब्द नया है इसलिए इस पर विस्तार से कुछ रौशनी डालो तो हम जैसे अल्प बुद्धि को कुछ समझ आये|

तभी पिंटू टीम का एक सदस्य कंधे उचकता हुआ हमें पितृ सत्ता की परिभाषा समझाने लगा-“ दरअसल पितृसत्ता एक असंतुलन की स्थिति है जिसमे परिवार कोई एक पुरुष पुरे परिवार व परिवार के सभी सदस्यों के बारे मे निर्णय लेता है और इसमें स्त्री या स्त्री भावनाओं की कोई भूमिका नहीं होती जबकि परिवार और समाज मे केवल पुरुष ही नहीं बल्कि स्त्री भी पक्ष है इसलिए उस पक्ष को नजरंदाज करने से ये असंतुलन पैदा होता है क्योंकि निर्णय लेने वाला पुरुष अधिकतर पिता होता है इसलिए इस व्यवस्था को पितृसत्ता कहा जाता है।

इस पर हमने अपनी प्रतिक्रिया दी- “ऐसी तो किसी पुरुष प्रधान समाज के किसी परिवार में समस्या हो सकती है अत: यह तो पुरुष सत्ता की परिभाषा हुई इसमें पितृ सत्ता की बात कहाँ हुई ?

पिंटू की आंदोलनकारी टीम का सदस्य फिर बोला- “जी ! परिवार का मुखिया अक्सर पुरुष होता है औरवह पिता भी होता है इसलिए हमनें इसे पितृ सत्ता का नाम दिया है फिर पुरुष तो हम भी है अपने आपके खिलाफ आंदोलन कैसे करें ?

हमनें कहा-“ अच्छा है फिर हमें मांग करनी चाहिए कि-“घर की सत्ता पुरुषों से छीनकर स्त्रियों को दे दी जाय| क्योंकि वैसे भी पुरुषों को तो धन कमाने व घर के बाहरी कामों से भी फुर्सत नहीं मिलती, स्त्रियां घर को ज्यादा समय देती है वे घर में सत्ता चलाने में ज्यादा प्रभावी रहेगी|”

हमारी ये बात सुनकर पिंटू टीम का एक दूसरा सदस्य मुंह बनाता हुआ बोला- “यहाँ ध्यान देने वाली बात ये भी है की ये व्यवस्था समाज मे इतनी रच बस गई है की यदि परिवार की सत्ता किसी स्त्री के हाथ मे भी आ जाती है तो उसके निर्णय भी इसी व्यवस्था से प्रभावित होते हैं। स्वयं स्त्री होकर भी वह स्त्री भावनाओं के साथ न्याय नहीं कर पायेगी।“ उसकी बात का समर्थन करता हुआ एक दूसरा टीम सदस्य बीच में ही बोल पड़ा- “हाँ ! यह सही कह रहा है माता श्री के हाथ सत्ता आ गई तो वो भी हमें रोज संस्कारों के पाठ पढायेगी और इसकी आड़ में पब, डिस्को, लड़के लड़कियों के साथ डेट पर जाने आदि जैसे कामों से रोकेगी और हमारी स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का हनन करने से नहीं चुकेगी| माताश्री के हाथों में भी घर की सत्ता आई तो ये पितृसत्ता की परिभाषा में ही आएगी|”

कहते हुए टीम पिंटू सदस्य ने पितृ भाषा को इस तरह परिभाषित किया- “पितृसत्ता का अर्थ है जो अपनी लड़कियों को पब में ना जाने दे, ब्वाय फ्रेंड न बनाने दे, छोटे कपड़े नहीं पहनने दे, आजादी ना दे, आधुनिक न बनने दे | अपितु परम्पराओं की बेड़ियों में बांधे उसके लिए मर्यादाओं की रेखा खींचे, उसको उसकी जिंदगी के फैसले खुद न करने दे, इत्यादि इत्यादि|”

हमने कहा – “फिर तो आप लोगों को सबसे पहले पिता द्वारा द्वारा दी गई उन सभी सुविधाओं का बहिष्कार करना चाहिए जो आप लोगों ने बिना ये जाने कि – पिता ने तुम्हें ये सुविधाएँ उपलब्ध कराने के लिए एकत्र किया धन कहीं उस भ्रष्टाचार से एकत्र तो नहीं किया गया है जिस भ्रष्टाचार के खिलाफ तुम लोग अक्सर मोमबत्ती मार्च निकालते रहते हो|

हमारी बात सुन अबकी बार पिंटू बोल पड़ा- आप शायद पितृसत्ता को धक्का मारने का आशय समझ नहीं पाए ! चूँकि पिता अपने कमाये धन से परिवार के सदस्यों को सुविधा देता है इसलिए वो अपनी पत्नी, बेटी और बेटे को अपना गुलाम बना लेगा| जबकि आप जैसे लोगों की मानसिकता है कि- “चूँकि पिता अपनी पुत्री,पुत्र व पत्नी को सुविधाएँ मुहैय्या कराता है तो उसकी हर बात को ये लोग शिरोधार्य करते रहें| पिता द्वारा सुविधाएँ उपलब्ध कराने के बदले अपने पुत्र, पुत्री से कोई उम्मीद रखना तो व्यवसायिकता हुई ना! इस तरह हम पिता द्वारा उपलब्ध कराई सुविधाओं के पिता का कहना माने तो हमारे और नौकरों के बीच क्या फर्क रह जायेगा ? इसलिए हम चाहते है कि ये पितृ सत्ता में पिता द्वारा खर्चे धन के बदले हमसे की जाने वाली व्यावसायिकता रूपी उम्मीद व मानसिकता छोड़कर पिता हमारे लिए कैसे भी करके हमारे लिए गीता के ज्ञान के अनुसार सुविधाएँ जुटाने के लिए बिना फल की इच्छा करते हुए कर्म करता जाय| तभी नजदीक ही पार्क में धूप सेकने बैठे शर्मा जी जो बड़े ध्यान से कान लगाकर हमारा वार्तलाप सुन रहे थे से रहा नहीं गया और वे कुछ उत्तेजित और टीम पिंटू के विचारों से आहत होकर बीच में बोल पड़े- “भाई जी ! आप कहाँ इन छिछोरों के बीच में फंस गए ? ये तो सिर्फ ये चाहते है कि इनका बाप कैसे भी मर पचकर इनके लिए कमाता रहे और ये उसकी कमाई से पब में जाए जम कर पियर पीकर अंग्रेजी गानों की धुन पर नाचे, फ़िल्में देखने जाए, माल में पार्क में आइसक्रीम खाते हुई गर्ल फ्रेंड घुमाए और पढ़ाई लिखाई छोड़कर किसी भी बहाने मोमबत्तियाँ लेकर जुलुस निकाल मीडिया में कभी अपना थोबड़ा दिखा दे| अब पितृ या मातृ सत्ता में तो पढ़ने पड़ेगा, संस्कार सिखने पड़ेंगे, अपने गांव, समुदाय, शहर में अपने मुहल्ले की लड़कियों को बहन मानना पड़ेगा| ये सब झमेले ये क्यों सहन करे ? कहते हुए शर्मा की उत्तेजना बढ गई और उन्होंने टीम पिंटू के सदस्यों को छिछोरों की मण्डली कहकर लताड़ते हुआ जय श्री राम का नारा लगा दिया|

राम का नाम सुनते ही पिंटू बोल पड़ा- “शर्मा जी ! आज आपकी असली असलियत का पता चला कि आप कौन है ? हमारी लाल किताब में आप जैसे राम का नाम लेने वालों के लिए एक शब्द लिखा है –“साम्प्रदायिक लोग|” और आप तो इतने घोर साम्प्रदायिक निकले कि आगे से हम कभी आपसे बात करना तो दूर आपकी शक्ल भी नहीं देखेंगे| कहते हुए रोष में भरी पिंटू आंदोलनकारी टीम अपने अपने पिताओं द्वारा उपलब्ध कराई मोटरसाइकिलों पर बैठकर चल दी|

उनके भागते ही शर्मा जी ने कहा- देखा भाई जी ! राम का नाम सुनते ही कैसे भाग खड़े हुए छिछोरे !

हमनें कहा- “शर्मा जी ! अब जैसे भी है है तो अपनों के ही! आज इन्हें समझाने का कोई फायदा नहीं ये तब समझेंगे जब ये खुद बाप बनेंगे और अपनी औलाद को सही रास्ते पर लाने के लिए जब ये पिता के दायित्व निभाने की कोशिश करेंगे तब इन्हें पता चलेगा कि ये पितृसत्ता है या अपनी औलाद के लिए पिता द्वारा की जाने वाली पुत्र सेवा|

शर्मा जी भी पिंटू टीम को हड़का कर भगाने की उपलब्धि में विजय भाव से अपने घर चल दिए और हम पार्क में बैठे सोचते रहे कि- “यदि हमारे ऊपर ये पितृ सत्ता नहीं होती हो हम कहाँ होते ? हमें वे दिन याद आने लगे जब हमें भी भ्रष्टाचार का धन कमाने का मौका मिला था पर दादोसा ने पितृ सत्ता का उपयोग करते हुए हमें साफ चेतावनी दे डाली थी कि- “जिस दिन गलत पैसा या गलत चरित्र की कोई शिकायत आ गई तो फिर हम आपसे रिश्ता तोड़ लेंगे| और उनके इसी डर से हमने कभी कोई गलत कार्य करना तो दूर सोचा भी नहीं|

पिताजी ने भी हमारे संस्कारों पर भरोसा कर हमारे द्वारा किये गए निर्णयों पर कभी आपत्ति नहीं की और कई बार तो ये जानते हुए भी कि-“पुत्र अपने इस निर्णय से आर्थिक नुकसान उठायेगा फिर भी पितृ सत्ता का उपयोग कर हमें कभी रोका नहीं| ये सोचकर कि पुत्र ये समझकर कि –कहीं पितृ सत्ता के दुरूपयोग का आरोप ना लग जाए|

पर जब कभी इस तरह के निर्णय से आर्थिक नुकसान हुआ तब मैंने हर बार सोचा काश पिताजी अपनी पितृ सत्ता का उपयोग कर मेरा निर्णय बदलवा देते और मुझे इस आर्थिक नुकसान से बचा लेते| इस तरह के अनुभव के बाद अब किसी भी निर्णय से पहले पिता की पितृसत्ता और माताश्री की मातृ सत्ता को नमन करते हुए उन दोनों से सलाह मशविरा जरुर करता हूँ और उनकी सहमति के बाद ही निर्णय को अंतिम रूप देता हूँ| और ऐसे निर्णय में आजतक कभी विपरीत परिणाम देखने को नहीं मिले| आखिर अब मेरे निर्णयों में उनका अनुभव जो होता है|


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7टिप्पणियाँ

  1. बहुत सही लिखा आपने, बुजुर्गों का उम्र का अपना एक अनुभव होता है और जो उनकी बात मानता है वो जीवन में कभी गलत रास्ते नही चल सकता, बहुत शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  2. आपकी इस पोस्ट की चर्चा 10-01-2013 के चर्चा मंच पर है
    कृपया पधारें और अपने बहुमूल्य विचारों से अवगत करवाएं

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  3. उत्सवप्रिय समाज के नागरिक हैं हम।

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  4. हा,,हा,,हा,,ऐसे ही मैंने एक मूर्ख को कहा जय श्री राम और उसने मुझे ब्लॉक कर दिया,,,,जय श्री राम

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  5. परिवार और समाज का आधार है माता-पिता..जहाँ तक परिवार की बात है तो....वहाँ कोई सत्ता नहीं होती ...हर कोई उच्च पद पर आसीन होता है समय और कार्यानुसार....हर बार सिर्फ़ पिता नहीं, कई बार माता भी या कभी -कभी तो बच्चे भी ...

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  6. ढेरों पिंटू घूम रहे हैं,
    हवा जिधर है, झूम रहे हैं।

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