ऐसे मिला था तिमनगढ़ किले के राजा को पारस पत्थर

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पिछले लेख में हमने आपको बताया था कि तिमनगढ़ के राजा के पास पारस पत्थर था जिसकी सहायता से वह लोहे को सोने में बदल लेता था| लेकिन राजा के पास वह पत्थर आया कैसे ? आईये आज चर्चा करते है कि राजा के हाथ आखिर पारस पत्थर लगा कैसे और बाद में वह पारस पत्थर गया कहाँ ?

तिमनपाल के पिता बयाना के राजा विजयपाल पर मालवा के सुलतान के सेनापति अबूवक्र शाह ने बड़ी फौज के साथ आक्रमण किया। इस आक्रमण में विजयपाल का पतन हो गया। विजयपाल के कुछ पुत्र युद्ध में शहीद हो गए, कुछ अन्यत्र चले गए, पर तिमनपाल पिता का राज्य पाने के लिए इधर उधर घूमता रहा। एक दिन डांग में सूअर का पीछा करते हुए वह एक पहाड़ी की गुफा में पहुंचा। थोड़ी देर गुफा के द्वार पर इंतजार करने के बाद गुफा से एक साधू निकला और तिमनपाल से कहा कि- हमारी गाय के पीछे क्यों पड़े हो? तिमनपाल को समझते देर नहीं लगी कि यह कोई चमत्कारी पुरुष है। उसने साधू से क्षमा मांगते हुए अपनी बर्बादी की कहानी सुनाई और सहायता मांगी।

तिमनपाल के चेहरे के तेज को देखकर साधू को रहम आ गया और उसने आशीर्वाद देते हुए एक पारस पत्थर दिया और अपना भाला देते हुए कहा कि जहाँ तुम्हारा घोड़ा रुक जाए वहां भाला गाड़ देना, वहां अगाध जल की प्राप्ति होगी। उपरांत इसी पारस पत्थर की सहायता से उसी जल के किनारे अपने नवीन राज्य की नींव डालना। तिमनपाल ने ऐसा ही किया, जहाँ उसने भाला गाड़ा वहां जलस्रोत फूट पड़ा, जिसे सागर नाम दिया गया। उसी सागर के ठीक ऊपर तिमनपाल ने पारस पत्थर की सहायता से अपने पिता के राज्य के पतन के ठीक बारह वर्ष बाद किला बनवाया। जिसे आज तिमनगढ़ के नाम से जाना जाता है। कभी इस दुर्ग को तहनगढ़, त्रिपुरानगरी के नाम से भी जाना जाता था।

कहाँ गया पारस पत्थर : स्थानीय लोक कथाओं के अनुसार राजा तिमनपाल एक बार किसी बात से अपने पुरोहित पर बहुत खुश हुआ और राजा ने पारस पत्थर को कपड़े में लपेटकर अपने उस पुरोहित को दान कर दिया। पुरोहित वह दान लेकर खुशी खुशी किले से बाहर आया, जब उसने सागर किनारे खड़े होकर बड़ी उत्सुकता के साथ यह देखने के लिए रेशमी वस्त्र में लिपटे दान को देखने के लिए पोटली खोली तो उसमें उसने पत्थर का टुकड़ा पाया। पुरोहित उस पारस पत्थर पहचान नहीं पाया और पत्थर देख वह बड़ा क्रोधित हुआ। उसने गुस्सा खाते हुए वह पारस पत्थर जलाशय में फैंक दिया।

राजा को जब इस घटना का पता चला तब उन्हें बड़ी वेदना हुई और उन्होंने पारस पत्थर जैसी अमूल्य निधि की तलाश हेतु तुरंत हाथियों को लोहे की भारी सांकलों से बाँध कर सागर जलाशय में उतारा गया। पारस पत्थर को तलाशने में सफलता तो नहीं मिली, पर कहा जाता है कि हाथियों के बंधी जो लोहे की साँकले पारस पत्थर से छू गई थी, वे सोने में बदल गई थी। स्थानीय लोगों को भरोसा है कि राजा का वह पारस पत्थर आज भी जलाशय में मौजूद है।

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