उनके ऊंट की पूंछ पर लटकता था ब्रिटिश आर्मी का झन्डा

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सीकर जिले के पटोदा गांव के भूरसिंह शेखावत अति साहसी व तेज मिजाज रोबीले व्यक्तित्व के धनी व्यक्ति थे उनके रोबीले व्यक्तित्व को देखकर अंग्रेजों ने भारतीय सेना की आउट आर्म्स राइफल्स में उन्हें सीधे सूबेदार के पद पर भर्ती कर लिया था| भूरसिंह शेखावत जो शेखावाटी में भूरजी के नाम से जाने जाते है एक अच्छे निशानेबाज व बुलंद हौसले वाले फौजी थे| स्वाभिमान उनमें कूट कूटकर भरा था | अंग्रेज अफसर अक्सर भारतीय सैनिकों के साथ दुर्व्यवहार करते थे ये भेदभाव भूरजी को बर्दास्त नहीं होता था सो एक दिन वे इसी तरह के विवाद पर एक अंग्रेज अफसर की हत्या कर सेना से बागी हो गए और अंग्रेज समर्थित शासकों व व्यापारियों को लूटकर उनका धन गरीबों में बाँटना शुरू कर दिया| उनके इस अभियान में उनके बड़े भाई बलसिंह शेखावत जिन्हें स्थानीय लोग आज भी बलजी कहते है शामिल हो गए|

उनका यह समूह बलजी-भूरजी के नाम से इतिहास में प्रसिद्ध है| इन अनोखे स्वतंत्रता सेनानियों की एक अनोखी बात इन पर म्यूजिकल एलबम बनाने वाले गजेन्द्र दाधीच ने बताई कि- भूरजी को गूंग (कुछ खास करने की जिद) चढ़ती थी| चूँकि वे अंग्रेजों की आउटर आर्म्स राइफल के बागी थे| अंग्रेज सेना व पुलिस उन्हें पकड़ने को उनके पीछे लगी रहती थी| सो एक दिन भूरजी को गूंग चढ़ी कि क्यों ना आउटर आर्म्स राइफल वालों को फिर सबक सिखाया जाय और इसी उद्देश्य को लेकर बलजी-भूरजी ने अपने क्रांतिकारी समूह के साथ आउटर आर्म्स राइफल के नसीराबाद स्थित मुख्यालय पर हमला किया और उनका झंडा लूट कर फरार हो गए| दाधीच बताते है कि वे आउटर आर्म्स राइफल के झंडे को अपने ऊंट की पूंछ पर बांध कर उसे लटकाये रखते थे|

ज्ञात हो गजेन्द्र दाधीच की दादी को बलजी-भूरजी ने एक दिन एक चांदी का रुपया भेंट किया था| दाधीच ने बचपन में अपनी दादी के मुंह से बलजी-भूरजी की वीरता के ढेरों किस्से सुने है, यही कारण था कि दाधीच बलजी-भूरजी को बचपन से अपना हीरो समझते थे और उन पर म्यूजिक एल्बम भी बनाया| दाधीच ने बलजी भूरजी पर फिल्म बनाने हेतु काफी शोध के बाद स्टोरी भी लिखी है पर आर्थिक समस्या के चलते अभी वे फिल्म नहीं बना सके|

जानकर बताते हैं कि आउटर आर्म्स राइफल को बाद में राजपुताना राइफल्स नाम दे दिया गया हालाँकि जानकारी के अभाव में हम इसकी पुष्टि नहीं करते पर गांवों में आज भी  जनश्रुति प्रचलित है कि  बलजी भूरजी ने उनकी रेजीमेंट का झन्डा लूट लिया था| इस रेजीमेंट के एक पूर्व जवान ने नाम नहीं बताने की शर्त पर बताया कि- बलजी-भूरजी ने झन्डा लूटने का चैलेन्ज दे रखा था| कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच वे अधिकारीयों की ड्रेस में आये और आराम से झन्डा उतार कर गाड़ी में ले गए| सुरक्षा कर्मी उन्हें सैल्यूट देते रहे| पूर्व जवान के अनुसार आज भी जब हम कई रेजिमेंट्स के जवान एक साथ होते है तो दूसरी रेजीमेंट के जवान हमारे ऊपर व्यंग्य कसते है कि पहले अपनी रेजीमेंट का झन्डा तो बरामद कर लाओ|

स्थानीय जनता के साथ सेना में भी इस जनश्रुति के चलन के बाद यह साफ़ है कि बलजी भूरजी ने अंग्रेजों की नसीराबाद स्थित आउटर आर्म्स राइफल को नीचा दिखाने के लिए उनका झन्डा लूटा और उसे अपने ऊंट की पूंछ पर लटकाकर घूमते थे| इनकी क्रांतिवीरों की गतिविधियों से तंग आकर अंग्रेजों ने जोधपुर पुलिस को किसी भी अन्य राज्य में घुस कर उनका सफाया करने का आदेश दिया जिसके तहत जोधपुर पुलिस के जाबांज अधिकारी बख्तावर सिंह महेचा ने 300 सिपाहियों के साथ बलजी भूरजी व गणेश  को घेर लिया| बख्तावर सिंह के घेरे के बाद इन तीन वीरों ने 300 सिपाहियों का बहादुरी से सामना किया और वीरतापूर्वक लड़ते हुए 30 अक्तूबर 1926 शहीद हो गए|

Dungji jawahar ji patoda story in Hindi

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